SJS&PBS

स्थापना : 18 अगस्त, 2014


: मकसद :

हमारा मकसद साफ! सभी के साथ इंसाफ!!


: अवधारणा :


सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी!

Social Justice, Secularism And Pay Back to Society-SJS&PBS


: सवाल और जवाब :


1-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति में मूल सामाजिक व्यवधान : मनुवादी आतंकवाद!

2-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति का संवैधानिक समाधान : समान प्रतिनिधित्व।


अर्थात्

समान प्रतिनिधित्व की युक्ति! मनुवादी आतंकवाद से मुक्ति!!


28.12.19

भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं मनुस्मृति लागू है।-[देखें अनुच्छेद 13-1]-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा


भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं मनुस्मृति लागू है।-[देखें अनुच्छेद 13-1]-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा

जैसा कि मैंने अपनी मूल पोस्ट में लिखा है कि

''न मैं, न मेरे पूर्वज शूद्र थे। वर्तमान में तो कोई भी शूद्र नहीं है। [देखें अनुच्छेद 13-1] शूद्र असंवैधानिक और अपमानकारी संबोधन है।''

एक मित्र का कहना है कि कि ''भागवत हमे शूद्र साबित करने पे पड़ा हुआ है।''
एक अन्य मित्र का कहना है कि ''रामायण पढ़ लेना सब पता चल जायेगा।''

मुझे नहीं लगता कि संविधान पर रामायण या मनुस्मृति भारी हैं। देश रामायण या मनुस्मृति से नहीं, बल्कि संविधान से चलता है और संविधान के मुताबिक ऐसी सभी रामायण या मनुस्मृतियां जो किसी इंसान को शूद्र सिद्ध करें असंवैधानिक तथा कानून की नजर में शून्य हैं। क्या रामायण या मनुस्मृति के प्रावधानों को भारत में संविधान के उपबन्धों की भांति कानून द्वारा लागू करवाया जा सकता है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं। फिर ऐसी बेहूदी बातों का हवाला देकर हम क्यों खुद का तथा दूसरों का समय खराब करते हैं? मुझे लगता है, इस पर विस्तार से विमर्श करने की जरूरत है।

मेरा साफ कहना है कि भागवत शूद्र नहीं कह रहा है, वह ऐसा कहेगा भी नहीं। वह इतना नासमझ या मूर्ख नहीं है, उसके पास जनबल, धनबल और बाहुबल तीनों भौतिक ताकतें हैं। इन तीनों ताकतों को संचालित करने हेतु बुद्धिबल भी है। सबसे बड़ी बात अब तो सत्ता भी है। जिसके बल पर वह आसानी से बिकने वाले वंचित समुदाय के बहरूपियों को खरीद सकता है और खरीदता भी रहा है। खरीदने का मतलब रुपयों से ही खरीदना नहीं होता है। तब ही तो बेशक कुछ मित्रों को बुरा लग सकता है, मगर असल में हमें यानी इस देश के 85 फीसदी वंचितों को शूद्र सिद्ध करने में संघ के छद्म मित्र तथा इस देश के संविधान के असली दुश्मन बसपाई और बामसेफी दिनरात लगे हुए हैं। सबसे दु:खद तो यह है कि ऐसे लोग अपने आप को अम्बेड़करवादी भी कहते हैं। अम्बेड़कर के कंधों पर बैठकर अपनी कारिस्तानियों को छिपा रहे हैं। ऐसे लोग संविधान, अम्बेड़कर और सामाजिक सौहार्द के भी असली दुश्मन हैं।

हमें हवा में गोली दागने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें उन बातों तथा लोगों पर भी विचार करना चाहिये, जिनके जरिये 70 साल से भारत के वंचितों को लगातार ऐसे ढोंगी लोगों द्वारा गुमराह किया जाता रहा है। क्या कारण है कि संविधान लागू होने से पहले भारत में लागू आधी-अधूरी, मनुवादी व्यवस्था (आधी अधूरी इसलिये, क्योंंकि संविधान लागू होने से पहले भारत के बड़े हिस्से पर अंग्रेजी कानून लागू था तथा आदिवासियों पर अंग्रेजों या बामणों की मनुवादी व्यवस्था लागू नहीं थी) जब संविधान का अनुच्छेद 13 (1) लागू होते ही एक झटके में शून्य और असंवैधानिक धोषित हो गयी, उसके बावजूद भी इन बसपाई, बामसेफी छद्म संघियों या अम्बेड़कर के दुश्मन, ढोंगी अम्बेड़करवादियों का एक भी भाषण मनुस्मृति का नाम लिये बिना और देश की 85 फीसदी आबादी को शूद्र घोषित किये बिना मुक्कमल/सम्पूर्ण नहीं होता है?

समय आ रहा है, जब वंचित समुदायों की मसीहाईगिरी करने वाले इन ढोंगी बहरूपियों को वंचितों द्वारा ऐसे दुत्कारा जायेगा, जैसे दूध से मक्खी फेंकी जाती है। अत: वंचित समुदाय के सभी अच्छे और सच्चे लोगों को अपने विवेक का उपयोग करने की आदत डालनी होगी। भारत में न तो कोई शूद्र है और न हीं रामायण या मनुस्मृति लागू है। यह देश संविधान से संचालित होता है, लेकिन संविधान तथा अम्बेड़कर की दुहाई देने वाले ही अम्बेड़कर के संघर्ष तथा संविधान की गरिमा को पलीता लगा रहे हैं। ऐसे लोगों से दूरी बनाना ही, इनसे बचाव का उपाय है। अन्यथा सावधानी हटी और आपके दिमांग पर इनकी शूद्रत्व वाली गुलामी घटी।
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, 9875066111, 28.12.2019 (Between 10 to 18 Hrs.)

26.11.19

संविधान दिवस: आखिर ऐसे चुपचाप कब तक सिसकते रहोगे? (After all, how long will you keep sobbing quietly?)

संविधान दिवस: आखिर ऐसे चुपचाप कब तक सिसकते रहोगे?
(After all, how long will you keep sobbing quietly?)

सुबह जागते ही वाट्सएप, टेलीग्राम तथा फेसबुक पर संविधान दिवस मनाने की नोटंकी करने वाले अंधभक्तों के संदेशों की लाइन लग चुकी है। सबसे दु:खद पहलु संविधान दिवस पर संविधान को समझने या संविधान की वर्तमान हकीकत को समझने के बजाय, संविधान को पढे बिना ही संविधान की महिमा का बखाने करने या कथित संविधान निर्माता के गुणगान में अपना और दूसरों का समय बर्बाद कर रहे हैं।

जबकि वर्तमान दौर में संविधान से जुड़े अनेकों महत्वपूर्ण सवाल चीख रहे हैं:-


  • 1. नरेन्द्र मोदी सरकार ने संविधान दिवस मनाने की शुरूआत क्यों की?
  • 2. नरेन्द्र मोदी सरकार संविधान का कितना पालन और सम्मान करती है?
  • 3. 1950 से वर्तमान तक संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट ने वंचित समुदायों को इंसाफ दिलाने हेतु संविधान की क्या-क्या और कैसी-कैसी व्याख्याएं की हैं?
  • 4. नियम, कानून और लोकतंत्र के स्थापित मानदंडों की धज्जियां उड़ाने वालों प्रशासन और सरकार को संविधान नियंत्रित करने में क्यों असफल रहा है?
  • 5. डॉ. अम्बेड़कर जिन्होंने खुद को संविधान निर्माता नहीं, बल्कि भाड़े का टट्टे माना, और जो खुद संविधान को जलाना चाहते थे? उनके नाम को संविधान दिवस से जोड़ने का औचित्य?
  • 6. वर्तमान हालातों में संविधान की सर्वोच्चता को कैसे कायम रखा जा सकता है?
  • 7. संविधान के प्रावधानों के विपरीत न्यायपालिका पर कुछेक परिवारों के जजों का स्थायी कब्जा हो चुका है, ऐसे में न्यायपालिका को संविधान संरक्षक माना जाने का कोई औचित्य शेष रह गया है?
  • 8. संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति और राज्यपाल केन्द्र सरकारों के इशारों पर संविधान और लोकतंत्र विरोधी दस्तावेजों पर आंख बंद करके दस्तखत करने की मशीन बन चुके हैं! इस स्थिति पर संविधान के मौन को कैसे तोड़ा जाये?
  • 9. ईवीएम की संदिग्धता और चुनावी धांधली और प्रतिपक्ष के आश्चर्यजनक मौन के उपरांत सत्ता पर काबिज कथित जनप्रतिनिधि राष्ट्रीय संस्थानों को पंगु बनाने या सरकारी संस्थानों को बेरोकटोक पूंजीपतियों को बेचने में शामिल रहे और मीडिया सहित सम्पूर्ण संवैधानिक तथा लोकतांत्रित व्यवस्था मौन साध ले। फिर भी हम संविधान का गुणगान करते रहें। यह कितना उचित और भयावह है?
  • 10. संविधान के मुताबिक सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित सांसद-विधायक और आज एवं अजजा के लिये आरक्षित पदों पर चयनित प्रशासनिक अफसर संविधान की इज्जत का चीरहरण होते हुए देखकर भी सुविधाभोगी बन कर मौन साधे रहें या खुद भी इस दुष्कृत्य में शामिल हो जायें और आम जनता चुपचाप देखने को विवश रहे। इस स्थिति का संवैधानिक समाधान क्या हो?
  • 11. सबसे बड़ी बात जो संविधान स्वयं ही स्वयं की रक्षा नहीं कर सकता हो, संविधान दिवस के दिन उस संविधान का गुणगान करके हम क्या हासिल करना चाहते हैं?

यहां कुछ प्रतिनिधि और ज्वलंत सवाल ही लिखे गये हैं, यद्यपि सवालों की लिस्ट बहुत लम्बी है! फिर भी मेरा मानना है कि हो सकता है, कुछ अधिक अनुभवी, ज्ञानी और विद्वानों के अंतर्मन में इनसे भी अधिक चुभते हुए सवाल कौंध तथा उबल रहे हों, जबकि दूसरी ओर मेरे उक्त सवालों से कुछ विद्वानों की मान्यताएं भरभराकर टूटकर बिखरने को बेताब हों?

वजह और हालात जो भी हों, लेकिन यदि हम इंसाफ की आकांक्षा करते हैं, संविधान को लागू करने या करवाने की जरूरत को रेखांकित करते हैं और साथ ही लोकतंत्र को बचाना जरूरी समझते हैं तो सवाल तो उठाने ही होंगे! अन्यथा अंत में फिर से यही लिखूंगा कि आखिर ऐसे चुपचाप कब तक सिसकते रहोगे? (After all, how long will you keep sobbing quietly?) बोलोगो नहीं तो कोई सुनेगा कैसे? लिखोगे नहीं तो कोई पढेगा कैसे? लड़ोगे नहीं तो जीतोगे कैसे? और अंतिम बात अपने-अपने हिस्से का सच सबको खुद ही बोलना तथा लिखना ही होगा? क्योंकि देश, संविधान और आवाम को को बचाने हेतु कोई कृष्ण सुदर्शन लेकर नहीं आने वाला है?

आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल सामाजिक संगठन
9875066111, 8561955619 (10 से 22 बजे)
25 नवम्बर, 2019, जयपुर, राजस्थान।

1.5.15

हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन की स्थापना क्यों?

हक रक्षक दल (HRD) की स्थापना क्यों?
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देश में संविधान लागू है, कानून का राज है और पहले से अनेक सामाजिक संगठन संचालित हैं, फिर भी एक और नया संगठन, आखिर क्यों? यहाँ यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन की जरूरत क्यों?

क्या हम सब के लिए गम्भीर विचारणीय विषय नहीं है कि अब किसान नाम के लिए ही अन्नदाता रह गया है! कारखाने लगाने की जरूरत से बीस तीस गुना अधिक खेती की जमीन किसानों से ओनेपौने दाम पर छीनकर कार्पोरेट घरानों और विदेशी कम्पनियों को भेंट की जा रही हैं! असंवेदनशील सरकारों द्वारा कृषिबीमा के नाम पर बीमा कम्पनियों का संरक्षण और किसानों का भक्षण जारी है! दुष्परिणामस्वरूप हर दिन किसान मर रहे हैं।
देश का सबसे बड़े वंचित वर्ग ओबीसी का विधायिका में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना तो बहुत दूर, सरकारी नौकरियों में ओबीसी की वास्तविक जनसंख्या से आधा भी प्रतिनिधित्व/आरक्षण नहीं दिया जा रहा है और ओबीसी को पदोन्नति में आरक्षण की कोई व्यवस्था तक नहीं!

वास्तव में कड़वा सच तो यह कि ओबीसी में शामिल जातियों का वर्गीकरण जानबूझकर इस प्रकार से किया गया है कि ओबीसी जातियां आपस में ही लडती रहें और कभी भी एकजुट नहीं हो सकें!

जबकि इसके ठीक विपरीत आर्य जिनकी कुल आबादी बमुश्किल दस फीसदी होगी, वे नब्बे फीसदी सत्ता और संसाधनों पर स्थायी रूप से काबिज हैं! यही मूल वजह है, कि जाति आधारित जनसंख्या के आधिकारिक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये जा रहे हैं!

व्यवस्था पर काबिज आर्यों की यह बहुत गहरी साजिश है! जिसका सबसे बड़ा सबूत संविधान के अनुच्छेद तेरह के होते हुए मनुस्मृति सहित अनेक संविधान विरोधी और अमानवीय कथित धर्मग्रंथों का प्रकाशन, विक्रय और पठन-पाठन जारी रहना और इस मामले में न्यायपालिका, जन प्रतिनिधियों एवं मीडिया की चुप्पी अनेक सवाल खड़े करती है!

क्षत्रियों का इक्कीस बार सर्वनाश करने वाले संसार से सबसे बड़े और क्रूरतम हत्यारे परशुराम को धार्मिक आतंक के जन्मदाता मनु को सार्वजनिक रूप से भगवान की संज्ञा दी जा रही है! संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी एकलव्य से धोखा करने वाले द्रोणाचार्य को महागुरू और निहत्थे मोहनदास करमचन्द गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम को अपना आदर्श मानने वाले खुद को राष्ट्रभक्त घोषित कर चुके हैं! ऐसे लोग या तो खुद ही या अपने गुर्गों के मार्फ़त इस देश कि सत्ता और व्यवस्था को संचालित कर रहे हैं!

संसद और संविधान की सामाजिक न्याय की पवित्र भावना और लोक कल्याणकारी अवधारणा को दरकिनार करते हुए न्यायपालिका 1951 बार-बार और लगातार आरक्षण को कमजोर करने वाले निर्णय सुनाती आ रही है! माधुरी पाटिल केस में एक-एक आरक्षित को जाति प्रमाण पत्र जारी करने से पूर्व अपराधियों की भांति उसकी जाति की छानबीन और परीक्षण करने का निर्णय सुनाने वाली न्यायपालिका आज भी सम्पूर्ण रूप से आर्यों और अंग्रेजी के शिकंजे में कैद है!

आम और ख़ास के लिए न्याय की सोच और भाषा बदल जाती है! आरक्षित वर्गों का प्रशासन में प्रतिनिधित्व करने के लिए चयनित, आरक्षित वर्गों के उच्च पदस्थ लोक सेवकों को #आर्यों द्वारा अपने शिकंजे में कैद करके, आरक्षित वर्गों के हितों को संरक्षित नहीं होने दिया जा रहा रहा है! संविधान के विपरीत अजा एवं अजजा के लोक सेवकों को प्रथम श्रेणी मिलने के बाद पदोन्नति में आरक्षण से मनमाने तरीके से वंचित किया जा रहा है!

सरकारी सेवाओं को ठेकेदारी और आऊटसोर्सिंग के हवाले करके आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षित हजारों निम्न श्रेणी के पदों को परोक्ष रूप से समाप्त किया जा रहा है!

सरकारी विभागों में आरक्षित वर्गों के रिक्त पदों को दशकों तक दुराश्यपूर्वक रिक्त रखने वाले अनारक्षित वर्ग के उच्चाधिकारियों के विरुद्ध किसी तरह की कानूनी कार्यवाही नहीं करके, ऐसे अपराधियों को सरेआम असंवैधानिक कृत्यों के लिए संरक्षण प्रदान किया जा रहा है!

भ्रष्टाचार, अत्याचार, तानाशाही और मनमानी चरम पर है, लेकिन जिम्मेदारी, उत्तरदायित्व और त्वरित दांडिक कार्यवाही की कोई पुख्ता और असरकारी व्यवस्था नहीं है!

नौकरशाही विभागीय अनुशासनिक कार्यवाही की ओट में बड़े-बड़े अपराधों को अंजाम देकर भी सजा से बची रहती है!

इस सब का मूल कारण सत्ता उन वर्गों के लोगों के हाथ में होना है, जिनकी देश की आजादी में कोई भूमिका नहीं थी! जिन्होंने आजादी से पहले भी लोगों का शोषण किया और उनके वंशज आजादी के बाद भी देश की जनता का शोषण कर रहे हैं!

बांधों के नाम पर न्याय से वंचित, शोषित और दमित आदिवासियों के पूर्वजों की शमशान भूमि और कुल देवताओं को जलमग्न करके उनके पुनर्वास की कोई सकारात्मक योजना नहीं बनाई जाती, बल्कि न्याय मांगने वालों को नक्सली घोषित करके बेरहमी से मारा जा रहा है! आरक्षित वर्गों के जन प्रतिनिधि, वास्तव में जन प्रतिनिधि नहीं, बल्कि दल प्रतिनिधि बन चुके हैं! जिनके लिए जनता के दुःख और दर्द की कोई परवाह नहीं, बल्कि उनको अपनी पार्टी के हाई कमान के आदेशों की पालना की चिंता अधिक सताती रहती है!

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में जाने जाना वाली प्रेस, मनुवादियों और कार्पोरेट के शिकंजे में आकर अब मीडिया बन चुकी है! अर्थात प्रेस अब मध्यस्त चुकी है, जिसमें पेड न्यूज का बोलबाला है! मीडिया में दलित, दमित, शोषित, वंचित, अल्पसंख्यक, पिछड़े और आदिवासियों का नगण्य प्रतिनिधित्व है! ऐसे में लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था की स्थापना एक सपना बन कर रहा गया है! जनता के हक सरेआम कुचले जा रहे हैं!

अन्याय के गहरे और घने अंधकार के सामने इंसाफ का दीपक जलाने, इंसाफ की कमी को जनता के सामूहिक सहयोग से भरने के पवित्र इरादे से हम "हक रक्षक दल सामाजिक संगठन" के नाम से हाजिर हुए हैं! बावजूद इसके कि चतुर और चालाक मनुवादियों ने अनेक अनार्यों को मलाई खाने में सांकेतिक हिस्सेदारी देकर अपने साथ में बिठा रखा है, जिसके बदले में कुछ वर्गद्रोही अनार्य होकर भी, अनार्यों की जड़ काटने में लगे हुए हैं, फिर भी-उम्मीद पर दुनिया कायम है, देखते हैं कि हम क्या कर पाते हैं?

हम सभी अच्छे, सच्चे और स्वाभिमानी अनार्यों का आह्वान करते हैं-आइये वास्तविक आजादी और सामान भागीदारी की संवैधानिक जंग में आपकी हिस्सेदारी जरूरी है!

हमारे इरादे नेक और पूरी तरह से संविधान सम्मत हैं, फिर भी इस संगठन की स्थापना का मूल जानने से पूर्व हमारे इस आह्वान को जानना और समझना होगा कि मुठ्ठीभर मनुवादी आतताई इस देश के कर्मशील, ईमानदार और स्वाभिमानी लोगों को अकारण तंग नहीं करें, अन्यथा परिणाम सुखद नहीं होंगे! आर्यों को समझना होगा कि अब यदि उनके द्वारा अपने षड्यंत्रों और कुचक्रों बंद नहीं किया गया तो अनार्यों को अन्याय को ध्वस्त करने वाला इन्साफ का चक्र चलाने को विवश होना पड़ेगा!

अब आर्य मनुवादियों के हजारों सालों के विभेदकारी षड्यंत्रों को दफन करने का समय आ गया है, क्योंकि देशवासियों को समान भागीदारी, वास्तविक इंसाफ और हर क्षेत्र में सहभागिता के बिना देश में लोकतंत्र होने का कोई मतलब नहीं रह जाता है!

अभी तक मुठ्ठीभर आर्यों द्वारा दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़ों को आपस में लड़ाने के लिए जमकर साजिशें रची जाती रही हैं! साढ़े छ दशक बाद भी दलित और आदिवासियों को किसी भी क्षेत्र में उनकी जनसंख्या की तुलना में एक चौथाई प्रतिनिधित्व तक नहीं मिला है!

मानवता और समानता के वायदे करने वाले समाज में मेहतर जाति अभी भी मैला ढोने को विवश है! संडासों और सीवर लाइनों में कोई मनुवादी हिस्सेदारी नहीं माँगता है!

सरकारी सेवा में निचले पायदान पर कार्यरत लोक सेवकों (ग्रुप-डी) से उच्चपदस्थ अफसरों द्वारा अपने घरों पर गुलामों की भांति बेगार करवाई जाती है! जिससे आहत होकर अनेक लोक सेवक आत्महत्या तक करने को विवश हो रहे हैं!

सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक न्याय की प्राप्ति तथा भारत के संविधान में वर्णित समस्त मूल अधिकारों के क्रियान्वयन के साथ-साथ बराबरी की व्यवस्था कायम करने के लिए, देशभर में आम-ओ-ख़ास को शामिल करते हुए सतत जन जागरण अभियान चलाने और दलित, दमित, आदिवासी, वंचित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की संवैधानिक तरीके से रक्षा करने तथा करवाने के लिए अब हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन एक नेशनल रजिस्टर्ड संगठन के रूप में स्थापित हो चुका है!

केवल इतना ही नहीं, बल्कि हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन का दिल्ली से राष्ट्रीय स्तर पर रिकार्ड समय में रजिस्ट्रेशन हुआ है। दिनांक : 27.02.2015 को इस संगठन की विधिवत स्थापना हुई, 13 मार्च, 2015 को रजिस्ट्रेशन हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया और 29 अप्रेल, 2015 को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी हो गया।

श्री डॉ. पुरुषोत्तम मीणा-राष्ट्रीय प्रमुख
हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन 
हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन की संस्थापक राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल पदाधिकारियों के नाम और पदनाम इस प्रकार हैं :-

01. श्री डॉ. पुरुषोत्तम मीणा-राष्ट्रीय प्रमुख-जयपुर, राजस्थान
02. श्री शंकर सिंह दादूसिंह खोकड-राष्ट्रीय उप प्रमुख-अमरावती, महाराष्ट्र
03. श्री अमीनुद्दीन सिद्दीकी-राष्ट्रीय सहायक प्रमुख-दिल्ली
04. श्री रूपचन्द मीणा-राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष-सीकर, राजस्थान
05. श्री पवन मीणा-राष्ट्रीय उप कोषाध्यक्ष-कोटा, राजस्थान
06. श्री उम्मेद सिंह रेबारी-राष्ट्रीय सचिव-जयपुर, राजस्थान
07. श्री राजेंद्र तानाजी बागुल-राष्ट्रीय सचिव-नाशिक, महाराष्ट्र
08. श्री विनय सिंघल-राष्ट्रीय सचिव-कोटा, राजस्थान
09. श्री कांति लाल रोत-राष्ट्रीय सचिव-डूंगरपुर, राजस्थान
10. श्री मनोज कु. मीणा-राष्ट्रीय सचिव-भरतपुर, राजस्थान
11. श्री जयप्रकाश मीणा-राष्ट्रीय उप प्रवक्ता-दौसा, राजस्थान
12. श्री जगदीश बामनिया-राष्ट्रीय संगठन सचिव-नीमच, मध्य प्रदेश
13. श्री अशोक कु. मीणा-राष्ट्रीय संगठन सचिव-रायपुर, छत्तीसगढ़
14. श्री बदन सिंह मीणा-राष्ट्रीय कार्यालय सचिव-बड़ोदरा, गुजरात
15. श्री प्रदीप सिंह-राष्ट्रीय कार्यालय सचिव-मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश


इस अवसर पर हमारे सभी निन्दकों, आलोचकों, समालोचकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों, समर्थकों और आत्मीयजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संघठन,

30.4.15

हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन का रजिस्ट्रेशन

हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन का दिल्ली से राष्ट्रीय स्तर पर रिकार्ड समय में रजिस्ट्रेशन हो चुका है। दिनांक : 27.02.2015 को संगठन की विधिवत स्थापना हुई, 13 मार्च, 2015 को रजिस्ट्रेशन हेतु आवेदन प्रस्तुत किया और 29 अप्रेल, 2015 को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी हो गया। सभी निन्दकों, आलोचकों, समालोचकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों, समर्थकों और आत्मीयजनों को इस अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संघठन,

19.4.15

मनुवाद से मुक्ति, शुरूआत कैसे?

मनुवाद से मुक्ति,  शुरूआत कैसे?
मनुवादी-धार्मिक-अंधविश्वासों के चलते हर दिन सैकड़ों लोग बेमौत मारे जा रहे हैं!
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सोशल मीडिया के मार्फ़त देशभर में मनुवाद के खिलाफ एक बौद्धिक मुहिम शुरू हो चुकी है। जिसका कुछ-कुछ असर जमीनी स्तर पर भी नजर आने लगा है! लेकिन हमारे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विचारणीय सवाल यह है कि यदि हमें मनुवाद के खिलाफ इस मुहिम को स्थायी रूप से सफल बनाना है तो हमें वास्तव में इस देश के बहुसंख्यक लोगों को और विशेषकर आम लोगों को साथ लेना होगा, जिनको बामसेफ और बसपा वाले बहुजन कहते और लिखते हैं, लेकिन हकीकत में मनुवाद बामसेफ और बसपा के नेतृत्व द्वारा परिभाषित देश के बहुसंख्यक अर्थात बहुजनों के कंधे पर पर ही ज़िंदा है। इसलिए हमें ऐसा सरल और व्यावहारिक रास्ता निकालना होगा, जिससे कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक अर्थात सभी अनार्य भारतीय केवल कागजों पर ही नहीं, बल्कि दैनिक व्यवहार में भी मनुवाद के विरुद्ध स्वेच्छा से एकजुट हो सकें, जिसके लिए मनुवाद के विरुद्ध केवल अतिवादी सोच या अतिवादी लेखनी मात्र से कुछ नहीं होगा। बल्कि ऎसी अतिवादी सोच या लेखनी हमें हमारे आम लोगों से दूर भी ले जा सकती है। यह मुहिम दोधारी तलवार जैसी है। मेरा मानना है कि हमें हमारे अनार्य लोगों के साथ सीधा संवाद कायम करना होगा। वातानुकूलित कक्षों से बाहर निकलकर हमें लोगों के बीच जाना होगा, क्योंकि चालाक आर्यों ने मनुवाद को हजारों सालों से धर्म की चासनी में लपेट रखा है। समस्त अनार्य, आर्यों के मनुवादी षड्यंत्र के शिकार होते आये हैं। आज भी मानसिक रूप से हमारे लोग मनुवादियों के गुलाम हैं और सबसे दुखद तो यह है कि उनको इस गुलामी का अहसास ही नहीं है, बल्कि इस मानसिक गुलामी को अनार्य लोग धार्मिक स्वाभिमान और आस्था का प्रतीक मान चुके हैं। उनके अवचेतन मन पर मनुवाद ही धर्म के रूप में स्थापित हो चुका है। हमारे ही लोगों को मनुवाद का विरोध, पहली नजर में धर्म का विरोध नजर आता है, ऐसे में हमें यह विचार करना होगा कि हम किस प्रकार से अपने लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किये बिना, उनको किस प्रकार से मनुवाद से मुक्ति दिला सकते हैं? क्योंकि यदि हम बिना विचारे मनुवाद और मनुवादी धार्मिक प्रतीकों का सीधा विरोध करते रहे तो ऐसे में सबसे बड़ा खतरा यह है कि आर्य-मनुवादियों तथा अनार्य मनुवादी अंधभक्तों द्वारा हमारी मुहिम को कमजोर करने के लिए हमारे मनुवाद विरोधी सही, सच्चे और तार्किक विचारों को भी हिन्दू धर्म विरोधी करार दिए जाने के लिए पूरे प्रयास किये जायेंगे। बल्कि किये भी जा रहे हैं। जातीय खाप पंचायतों को हमारे खिलाफ खडा किया जा सकता है। जिनमें न तर्क सुने जाते हैं और न ही वहां पर, उनसे न्याय की अपेक्षा की जा सकती है! यही नहीं धर्म के नाम पर हमारे ही लोग हमारे खिलाफ खड़े हो सकते हैं! जिससे हमारी मुहिम पहले दिन से कमजोर हो जाती है। अत: हमको आत्मचिन्तन करना होगा कि मनुवाद के दुश्चक्र को कैसे परास्त किया जाए? इसके लिए हर उस व्यक्ति को जो मनुवाद से आहत है, उसको गहन चिन्तन और मनन करना होगा! यद्यपि मेरा निजी अनुभव है कि मनुवाद से सर्वाधिक आहत मेहतर जाति के लोग तक मनुवाद का खुलकर विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं! लेकिन यह भी सच है कि मनुवाद से मुक्ति के बिना भारत के अनार्यों, मूल निवासियों और वंचित वर्गों के लिए संविधान के अनुसार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना असम्भव है! इसलिए हमें हर हाल में, लेकिन बौद्धिक तरीके से मनुवाद मुक्त समाज की स्थापना के लिए अनेक स्तरों पर लगातार प्रयास करने होंगे! सबसे पहले हम धर्म के नाम पर संचालित अवैज्ञानिक-अंधविश्वासों और स्वास्थ्य के साथ किये जाने वाले खिलवाड़ के प्रति आम लोगों में जागरण लाना होगा! जैसे उदाहरण के लिए हमें हमारे लोगों को समझाना होगा कि-रात दिन मंदिर, मस्जिद या चर्च में रहने वाला पुजारी, मौलवी या पादरी जब बीमार होता है तो वह अपना उपचार करवाने के लिए सीधा डॉक्टर के पास जाता है, जबकि अनार्य अनपढ़ और भोले लोग बीमार होने पर पुजारी, मौलवी या पादरी के पास जाते हैं! जहां इनको-झाड, फूंक, व्रत, भजन, कीर्तन, पाठ, सवामणी, कथा, गंदा, ताबीज आदि उपचार बतलाये जाते हैं और इस प्रकार मनुवादी धार्मिक अन्धविश्वास के चक्कर में हमारे लोग अपनी बीमारी को असाध्य बना लेते हैं! दुष्परिणामस्वरूप बीमारी इतनी असाध्य हो जाती है, जिसका डॉक्टर भी उपचार करने से इनकार कर देते हैं! बीमार की अकाल मौत हो जाती है! लेकिन मनुवादी इसे भी ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करने और बीमार की अकाल मृत्यु पर भी पुण्य-दान करने की सलाह देते हैं! एक कडवी सच्चाई यह भी है कि ऐसे मनुवादी-धार्मिक-अंधविश्वासों के चलते हर दिन सैकड़ों लोग बेमौत मारे जा रहे हैं! ऎसी मौतों के बाद भी मनुवादियों द्वारा हमें बतलाया जाता है कि दान-पुण्य करने से मृतक को मोक्ष मिलेगा और मृत-आत्मा को पाप नीच योनी से मुक्ति मिलेगी! यदि और कुछ नहीं कर सकते तो हम ऎसी पोंगापंथी धूर्त मनुवादी कहानियों से तो हम अपने अनार्य बन्धुओं को बचा ही सकते हैं! शुरूआत में ऐसे प्रयोग मनुवादी शिकंजे से मुक्ति के पुख्ता आधार बन सकते हैं!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, 19.04.2015
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9.4.15

अलवर के किसानों की जमीन पर जापानी इन्वेस्टमेंट जोन स्थापित करने की सामन्ती घोषणा का विरोध!

प्रेषक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन 
राष्ट्रीय कार्यालय : 7, तंवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
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पत्रांक : /राजस्थान/पत्र/2               दिनांक : 09.04.2015
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प्रेषिति :
मुख्यमंत्री,
राजस्थान सरकार, जयपुर।

विषय : अलवर के किसानों की जमीन पर जापानी इन्वेस्टमेंट जोन स्थापित करने की सामन्ती घोषणा का विरोध!

स्थानीय समाचार-पत्रों के माध्यम से इस संगठन को प्राप्त जानकारी के अनुसार-

1. राजस्थान की मुख्यमंत्री की हैसियत से आप ने निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और जमीन के मालिकों से अग्रिम सहमति प्राप्त किये बिना जापान में इकतरफा घोषणा की है कि अलवर में जापानी कम्पनी को आप 500 एकड़ जमीन देंगी। इस खबर से राज्य के और विशेषकर आदिवासी बहुल अलवर जिले के सभी किसान बुरी तरह से भयाक्रान्त हो गये हैं।

2. राज्य के समस्त किसानों की ओर से आपसे यह संगठन जानना चाहता है कि आखिर लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ऐसा सामन्ती निर्णय क्यों? इससे ऐसा क्या राष्ट्रहित होने वाला है कि किसानों की जमीन पर जापानी इन्वेस्टमेंट जोन स्थापित होगा! खबर के अनुसार इसमें सैरेमिक्स, इलेक्ट्रोनिक सिस्टम और मैन्यूफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों पर फोकस होगा। इससे किसानों की आने वाली पीढियों को क्या स्थायी परिलाभ होगा?

3. सर्वविदित है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती हैं। इसलिये सरकार को जनता को यह बतलाना चाहिए कि-क्या आपके द्वारा उक्त निर्णय लिये जाने और जापान में घोषणा करने से पूर्व क्या इस तथ्य का आकलन किया गया है-कि जापानी कम्पनी को 500 एकड़ जमीन सौंपने के कारण अलवर के कितने किसान परिवार रोड पर आ जायेंगे और उनके सदस्य हमेशा को बेरोजगार हो जायेंगे?

4. यदि आपकी सरकार द्वारा ऐसा आकलन नहीं किया गया तो जनता को जानने का हक है कि क्यों नहीं किया गया? बिना आकलन घोषण क्यों की गयी? जिन किसानों की बेसकीमती उपजाऊ जमीन जापानी कम्पनी/कार्पोरेट को दी जा जाना प्रस्तावित है, उन किसान परिवारों के स्थाई पुनर्वास की क्या कोई वास्तविक और अनुभवसिद्ध योजना सरकार द्वारा बनाकर विधानसभा में अनुमोदित करवायी गयी है? यदि हॉं तो उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?

5. केंद्रीय सरकार द्वारा अलोकतान्त्रिक तरीके से लाये गए अध्यादेश के जरिये लाये गये भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी कानून (काले कानून) की आड़ में इस प्रकार से यदि किसानों की जमीनों को कम्पनियों/कॉर्पोरेट्स को बांटना शुरू किया गया तो आपकी सरकार द्वारा अगले सालों में न जाने कितने किसानों को आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया जाएगा?

अत: उपरोक्तानुसार जनहित में आप को अवगत करवाकर आग्रह है कि राज्य में लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा की जाये और राज्य की जमीन को विदेशियों को नहीं बेचा जाये। अन्यथा राज्य में बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, बीमारी, अशिक्षा और अनेक प्रकार के अपराधों को बढावा मिलेगा। जिससे समाज आगे बढने के बजाय पीछे ही जायेगा। यदि किसी बड़े राष्ट्रहित में किसानों की जमीन अधिगृहित की जानी अत्यावश्यक है तो कम से कम अगले सौ वर्ष की कृषि-उपज के बराबर राशि ऐसे जमीन मालिकों को दी जाये और प्रत्येक एक एकड़ जमीन पर प्रभावित जमीन मालिक परिवार के एक-एक व्यक्ति को न्यूनतम तृतीय श्रेणी में सरकारी नौकरी प्रदान की जाये। अन्यथा इस सामन्ती निर्णय के कारण राज्य के किसानों और आम जनता में पनपने वाले असन्तोष के परिणामों के लिये राज्य सरकारी खुद जिम्मेदार होगी। 

भवदीय 

(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
   राष्ट्रीय प्रमुख

23.3.15

पृथ्वीराज आत्महत्या प्रकरण : HRD ने की उच्च स्तरीय जांच, मुआवजे और अनुकम्पा नियुक्ति की मांग



पृथ्वीराज आत्महत्या प्रकरण : HRD ने की उच्च स्तरीय जांच, मुआवजे और अनुकम्पा नियुक्ति की मांग
प्रतिष्ठा में,
1. गृहमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली। 2. रेलमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली।
3. गृहमंत्री, कर्नाटक सरकार, बैंगलोर। 4. महानिदेशक-रेलवे पुलिस, कर्नाटका, बैंगलोर।
प्रतिलिपि-पुलिस अधीक्षक-हुबली, महाप्रबन्धक-दक्षिण पश्‍चिम रेलवे मुख्यालस्य,-हुबली, मण्डल रेल प्रबन्धक, हुबली एवं सर्व-सम्बन्धित।

विषय : श्री पृथ्वीराम मीणा गैंगमैन, हुबली को आत्महत्या करने को मजबूर करने वाले दोषियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता और अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत सख्त कानूनी कार्यवाही करने तथा मृतक के परिजनों को मुआवजा देने और मृतक के आश्रित को अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान करने के सम्बन्ध में।

इस संगठन (HRD) को प्राप्त जानकारी के अनुसार अनुसूचित जन जाति वर्ग के रेलकर्मी के श्री पृथ्वीराज मीना पिता का नाम श्री रतन लाल मीना, जाति-मीना, पता-मण्डावरी, तहसील-लालसोट, जिला-दौसा, राजस्थान का मूल निवासी था। वह गैंगमैने के पद पर आरोपी किशल लाल पद-एसएसई/पीडब्ल्यूआई, केसरलोक, डिवीजन-हुबली, दक्षिण पश्‍चिम रेलवे के अधीन सेवारत था। आरोपी द्वारा मृतक श्री पृथ्वीराज मीना के ऊपर घरेलु कार्य करवाने सहित, न जाने कितने अन्याय और अत्याचार किये गये, जिनके बारे में उच्च रेल अधिकारियों ने भी कोई कार्यवाही नहीं की। जिससे तंग आकर वह दि. 19.03.15 को आत्महत्या करने को मजबूर हो गया। इतनी घिनौनी घटना हो जाने का कारण है-रेलवे में ग्रुप-डी कर्मचारियों को रेलवे सुपरवाईजर्स और अफसरों द्वारा अपने निजी गुलाम समझने की औपनिवेशिक मानसिकता का आज भी जिन्दा रहना। रेलवे में अधिकतर अधिकारी और सुपरवाईजर ग्रुप-डी कर्मचारियों से रेलवे का कार्य लेने के बजाय अनाधिकृत रूप से अपना घरेलू काम करवाते हैं। जिसके तहत अपनी बीवियों और बेटियों के गंदे कपड़े धुलवाना, झूंठे बरतन धुलवाना, घर में पौचा लगवाना, शौचालयों की सफाई करवाना आदि काम करवाना साधारण बात है। जो भी कोई कर्मचारी यह सब नहीं करता है, उस पर इतने अत्याचार किये जाते हैं कि वो मृतक श्री पृथ्वीराज की भांति मौत को गले लगाने को मजबूर हो जाता है। जो रेलकर्मी रेलवे की उत्पादकता बढाने, रेलवे की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करने के लिये जनता से एकत्रित राजस्व से वेतन पाते हैं, उनसे घरेलु कार्य करवाया जाना रेलवे के साथ खुलेआम धोखा और भा. द. संहिता की धारा 409 के तहत आजीवन कारावास से दण्डनीय आपराधिक न्यायभंग (अमानत में खयानत) का अजमानतीय अपराध है। इस मनमानी गुलामी के लागू रहने के लिये रेलवे सुपरवाईजर से लेकर रेलवे बोर्ड के चेयरमैन तक सब के सब दोषी हैं। क्योंकि सभी, हकीकत जानते हुए भी मौन साधे रहते हैं, क्योंकि सबके घरों पर 4 से 10 तक की संख्या में इसी प्रकार से रेलवे के ग्रुप-डी कर्मचारी गुलामों की भांति दिनरात मुफ्त में बेगार करते रहने को विवश हैं। मृतक ने आरोपी के अत्याचारों के बारे में अवश्य ही उच्चाधिकारियों को शिकायत की होगी, लेकिन जब उसे कहीं से न्याय नहीं मिला, तो उसने मजबूरन मौत को गले लगाया होगा। इस प्रकार पहली नजर में आरोपी और रेलवे के सम्बन्धित सभी उच्च अधिकारी मृतक को आत्महत्या करने को विवश करने के लिये सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। 

आग्रह एवं अपेक्षा : अत: उपरोक्तानुसार सभी को अवगत करवाकर यह संगठन सर्व-सम्बन्धित से मांग करता है कि- 

1. आरोपियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा-306 एवं 409, अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा-3 एवं 4 और रेलवे एक्ट की सम्बन्धित धाराओं के तहत तुरन्त पुलिस द्वारा आपराधिक मामला दर्ज किया जावे।

2. आरोपी सहित सभी सम्बन्धित उच्च रेलवे अधिकारियों को तुरन्त निलम्बित किया जावे, जिससे विभागीय दस्तावेजों में वे किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने, साक्ष्यों को नष्ट करने और जॉंच को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं रहें।

3. इस गम्भीर और एक निर्दोष आदिवासी से जुडे़ आपराधिक मामले की जॉंच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो या समकक्ष उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच ऐजेंसी से करवाई जावे। क्योंकि इस मामले में अरोपी किशन लाल के अलावा, आरोपी को संरक्षण देने वाले और मृतक को इंसाफ नहीं देकर अत्महत्या करने को मजबूर करने वाले बहुत से गैर-अजा/अजजा के उच्च रेल अधिकारी भी संयुक्त रूप से लिप्त हैं।

4. रेलवे द्वारा सभी आरोपियों को आपराधिक मामले की जॉंच और अदालती प्रक्रिया की प्रतीक्षा किये बिना, तुरन्त मेजर जार्चशीट जारी करके, उन्हें तुरन्त नौकरी से बर्खास्त किया जावे।

5. मामले को नियमों और प्रक्रिया में उलझाने के बजाय, इस मामले को विशेष कोटि का अत्याचार मानते हुए मृतक के परिवार को तत्काल पर्याप्त मुआवजा प्रदान किया जावे और मृतक के परिवार के किसी व्यक्ति को मृतक के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान की जावे।

आशा है कि की गयी/प्रस्तावित कार्यवाही से निम्नहस्ताक्षरकर्ता को अवगत करवाया जायेगा।

सधन्यवाद। भवदीय

(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल
98750-66111


21.3.15

हक रक्षक दल की रैणी की सभा स्थगित, लेकिन क्यों? पढें और जानें।

हक रक्षक दल की रैणी की सभा स्थगित, लेकिन क्यों? पढें और जानें।
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बसपा के संस्थापक श्री कांशीराम जी ने बहुजन समाज के अग्रणी लोगों का आह्वान किया था कि वे ‘समाज का कर्ज चुकायें।’ इस अवधारणा को उन्होंने ‘पे-बैक टू सोसायटी’ नाम दिया था। इसी अवधारणा को आगे बढाने के लिये श्री देवराज मीणा ने अपने फेसबुक फ्रेण्ड्स को जोड़कर ‘पे-बैक टू सोसायटी’ अर्थात् पीबीएस नामक वाट्स एप ग्रुप बनाकर, इस अवधारणा को पुनर्जीवित किया। जिसके लिये 27 जुलाई, 14 को दौसा में एक मीटिंग रखी गयी। इस आयोजन के तत्काल बाद ही, 27 जुलाई, 14 की मीटिंग में शामिल एक संगठन प्रमुख ने पीबीएस के लोगों को बरगला कर अपने संगठन में जुड़ने के लिये प्रलोभित करना /तोड़ना शुरू कर दिया।

इसी दौरान अजा एवं अजजा संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्टीय स्तर पर सम्मानित विचारक एवं लेखक डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी से श्री देवराज जी ने इस बारे में मुलाकात की। डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी ने उनको समझाया कि मनुवादी ताकतें आजादी के बाद से लगातार सभी वंचित व आरक्षित वर्गों को तहस नहस करने के षड़यंत्र रचती रही हैं। इसलिये केवल मीणाओं के बल पर इस लड़ाई को सफलतापूर्वक नहीं लड़ा जा सकता, क्योंकि आर्यों का देशभर में ताकतवर गठजोड़ है और सभी अनार्य बिखरे हुए हैं। आर्य मनुवाद और हिन्दुत्व की ओट में अनार्यों को आपस में लड़ाते रहते हैं। अत: अब समय आ गया है कि देश के सभी अनार्यों को एक मंच पर एकजुट किया जाये। जिसके लिये पीबीएस की विचारधारा को विस्तार और संगठित रूप देने की जरूरत है। अत: 18 अगस्त, 15 को डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी के विचारों से सहमत होकर, करीब दो-तीन दर्जन लोगों की उपस्थिति में अनौपचारिक रूप से हक रक्षक दल का गठन किया गया और सर्वसम्मति से डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी को इसका रजिस्ट्रेशन करवाने और संचालन करने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी।

श्री देवराज मीणा जी की सलाह पर, श्री देवराज मीणा, श्री महेश मीणा, श्री नरशी मीणा और श्री रामकिशोर मीणा को डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी ने अपना सहयोगी नियुक्त किया। इसके साथ ही मीणा-मीना विवाद को हक रक्षक दल की प्राथमिकता सूची में प्रथम प्राथमिकता प्रदान करके सोशल मीडिया के मार्फत मीणा समाज को समझाया गया कि मीणा-मीना विवाद का समाधान अदालत के मार्फत सम्भव नहीं है, बल्कि संविधान में संशोधन करके, मूल अधिसूचना में संशोधन के जरिये ही मीणा-मीना विवाद का स्थायी समाधान सम्भव है। इस कारण कोर्ट के मार्फत मीणा-मीना विवाद को लड़ने की बात कह कर समाज को भ्रमित करने वाले और इस हेतु समाज से चन्दा एकत्रित करने वाले ऐलीट वर्ग ने हक रक्षक दल को निशाने पर ले लिया।

अत: विरोधी ताकतों द्वारा हक रक्षक दल में पदाधिकारियों की नियुक्ति को लेकर, 18 अगस्त 14 को उपस्थित रहे कुछ ना-समझ हक रक्षकों के मार्फत सवाल खड़े करवाये गये। साथ ही मीणा नेतागिरी नामक मीणाओं के फेसबुक ग्रुप पर हक रक्षक दल की ओर से लिखले वालों को ब्लॉक कर दिया गया।

इस सब को दरकिनार करते हुए हक रक्षक दल की ओर से मीणा-मीना विवाद की हकीकत जनता के सामने लाने के लिये हक रक्षक दल के समर्पित हक़ रक्षकों द्वारा एक लाख हस्ताक्षर करवाकर राजस्थान सरकार को ज्ञापन देने का अभियान शुरू किया गया। जिसके चलते गॉंव और ढाणियों तक लोगों को इस मुद्दे की हकीकत और गम्भीरता का पता चला। लेकिन विरोधियों ने हस्ताक्षरित फोर्मेट्स को फड़वाया दिया गया या जलवाया गया। गुमराह करने के कारण कुछ ने तो अभी तक हस्ताक्षरित फोर्मट जमा नहीं किये हैं। श्री विमल मीणा और श्री रामकिशोर मीणा द्वारा एक भी हस्ताक्षरित फोर्मट जमा नहीं किया गया। इस कारण अभी तक एक लाख हस्ताक्षर पूर्ण नहीं हो सके। 

इसी दौरान हक़ रक्षक दल टीम की ओर से सोशल मीडिया पर लिखना जारी रहा। जिसके लिये हक़ रक्षक दल द्वारा एक अन्य नये फेस बुक ग्रुप को सक्रिय सहयोग देकर, उस पर लिखना शुरू किया। जिससे वह ग्रुप खड़ा हुआ। हक रक्षक दल टीम के विचारों और कार्यों से प्रभावित होकर देशभर के लोगों का अप्रत्याशित समर्थन मिलने लगा। लेकिन हक रक्षक दल टीम द्वारा खड़े किये नये फेस बुक ग्रुप के संचालक ने हक रक्षक दल को अपने हिसाब से हांकने की असफल कोशिश की। यद्यपि बाद में ज्ञात हुआ कि वह श्री रामकिशोर मीणा के मार्फत श्री नरशी मीणा, श्री महेश मीणा और श्री देवराज मीणा को प्रभावित करके, श्री विमल कुमार मीणा को हक रक्षक दल में राजस्थान प्रदेश प्रभारी पद पर नियुक्त करवाने और हक रक्षक दल को अपने रिमोट से संचालित करने के इरादे को कागजी स्तर पर क्रियान्वित करने में सफल हो गया था। जिसकी जानकारी उस समय नहीं हो सकी। इस बीच हक रक्षक दल की आन्तरिक चर्चाएं लीक होने लगी और फेस बुक ग्रुप के उक्त संचालक तक पहुंचने लगी। श्री रामकिशोर मीणा द्वारा फेस बुक ग्रुप के संचालक के समर्थन में हक रक्षक दल के नेतृत्व के निर्णयों पर गैर-जरूरी और निराधार सवाल उठाये जाने गये। 

इसी बीच अगला बड़ा कदम उठाते हुए डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी के नेतृत्व में हक रक्षक दल की टीम ने जगह-जगह कार्यशाला और जनसभाओं के मार्फत आरक्षण, सामाजिक न्याय और मीणा-मीना मुद्दे की हकीकत को तथा कोर्ट में लड़ने की हकीकत को जनता के सामने रखा तो आश्‍चर्यजनक समर्थन मिलने लगा। यद्यपि श्री रामकिशोर मीणा, श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा ने व्यक्तिगत कारणों से एक भी मीटिंग में भाग नहीं लिया। सोशल मीडिया पर भी हक रक्षक दल की मुहिम को अपार समर्थन मिला, लेकिन समाज को गुमराह करने वाले और हमारी मुहिम से परेशान लोगों की ओर से हक रक्षक दल के विरुद्ध अनर्गल बातें लिखी जाने लगी। जिन पर प्रदेश प्रभारी होकर भी श्री विमल मीणा चुप्पी साधे रहे और ऐसे विरोधियों के अन्य आलेखों को समर्थन और प्रोत्साहित भी करते रहे। जिस पर हक रक्षक दल की ओर से की जाने वाली आपत्तियों को नकारते हुए श्री रामकिशोर मीणा के सहयोग से विवादों को जन्म देना शुरू कर दिया। जिसके लिये श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा को भी किन्हीं अज्ञात कारणों से भ्रमित किया गया। जिसका खुलासा तब हुआ, जबकि हक रक्षक दल के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू की गयी तो श्री देवराज मीणा जी के अथक प्रयासों के बावजूद भी श्री विमल मीणा, श्री रामकिशोर मीणा, श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा ने अपने दस्तावेज नहीं देने और अपने हस्ताक्षर नहीं करने के बहाने बनाना शुरू कर दिया। साथ ही सवाल उठाने शुरू किये कि डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी जानबूझकर रजिस्ट्रेशन में विलम्ब कर रहे हैं और शुरूआती सहयोगियों की अनदेखी कर रहे हैं।

इसी के साथ उक्त फेसबुक ग्रुप संचालक की ओर से हक रक्षक दल को बदनाम करने वाली सामग्री प्रमुखता से डाली जाने लगी, हक रक्षक दल समर्थक टिप्पणी व पोस्ट हटायी जाने लगी और हक रक्षक दल के प्रमुख समर्थकों को ग्रुप से ब्लॉक करना शुरू किया जाने लगा।

लेकिन संगठन संचालन के अनुभवी और परिपक्व नेतृत्व डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी और हक रक्षक दल की टीम ने देशभर में मीणाओं को जगाने और दिल्ली से राष्ट्रीय स्तर पर हक रक्षक दल का रजिस्ट्रशन करवाने के प्रयास जारी रखे। साथ ही सभी के सहयोग से नया फेस बुक ग्रुप ‘‘सच का आईना’’ बना दिया। जिस पर पहले महिने में ही करीब दस हजार सदस्य जुड़ गये। इसके बाद भी उक्त ग्रुप संचालक और अन्य विरोधियों द्वारा हक रक्षक दल को अपने कब्जे में लेने या बिखेर देने की सीधी सुनियोजित मुहिम छेड़ दी। सोशल मीडिया के मार्फत चन्दा एकत्रित करने के निराधार आरोप लगाये गये। जिसका सभा आयोजकों द्वारा सीधा जवाब देकर आरोप लगाने वालों का मुंह बन्द कर दिया। मगर श्री विमल मीणा और श्री राम किशोर मीणा चुप्पी साधे रहे। इसके बाद श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा को भी नेतृत्व के विरुद्ध भड़काने के लिये उक्त ग्रुप संचालक के मार्फत हक रक्षक दल, सच का आईना और हक रक्षक दल के नेतृत्व पर व्यक्तिगत आरोप लगाते हुए एक अत्यन्त शर्मनाक तथा समाज को तोड़ने वाली पोस्ट डलवाई गयी। जिसका श्री विमल मीणा और श्री राम किशोर मीणा ने खुलकर समर्थन किया। लेकिन श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा का खुला समर्थन नहीं मिला। बहुसंख्यक समाज हितैषी लोगों द्वारा इस पोस्ट की कड़े शब्दों में आलोचना की गयी। इस बीच श्री विमल मीणा को जब भी समझाया गया, उनकी ओर से हर बार इस्तीफा पेश करके, दबाव बढाने का प्रयास किया गया। श्री देवराज जी के अनुरोध पर सभी की मीटिंग करके समाधान करने के अनेकानेक प्रयास किये गये, लेकिन किसी न की बहाने मीटिंग नहीं होने दी गयी और सोशल मीडिया पर प्रचारित यह किया गया कि डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी मीटिंग नहीं होने देना चाहते हैं।

इस प्रकार उक्त सभी के द्वारा रजिस्ट्रेशन हेतु अन्त तक हस्ताक्षर नहीं किये गये तो 27 फरवरी, 2015 को अन्य समर्पित हक रक्षकों के सहयोग से और श्री देवराज मीणा जी के संगठन से बाहर रहकर काम करने के अनुरोध को स्वीकार करके, विधिवत हक रक्षक दल सामाजिक संगठन की स्थापना करके राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया।

इस बीच श्री महेश मीणा ने वाट्स एप पर "आमना-सामना ग्रुप" बनाकर हक रक्षक दल और हक रक्षक दल नेतृत्व पर खुलेआम अनर्गल आरोप लगाये गये। जिन्हें श्री आरव मीणा के द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया। सांगोद में मीटिंग की चर्चा के दौरान भी श्री महेश मीणा ने यही किया। अब जब 22 मार्च, 15 को रैणी, अलवर की मीटिंग निर्धारित की गयी तो श्री महेश मीणा ने एक ग्रुप बनाया, जिसमें हक रक्षक दल विरोधी और कोर्ट के मार्फत मीणा-मीना विवाद को उलझाने वालों के सहयोगियों को शामिल किया गया। जिसमें हक रक्षक दल और हक रक्षक दल के नेतृत्व पर घृणित आरोप लगाये गये। इन सभी चर्चाओं के दौरान श्री रामकिशोर मीणा, श्री विमल मीणा, श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा ग्रुप में शामिल होकर भी मौन साधे रहे। विरोध में एक शब्द नहीं बोले और जब उनसे कारण पूछा गया तो श्री विमल मीणा ने सातवीं बार त्यागपत्र लिखकर सार्वजनिक रूप से अनेकानेक फेसबुक ग्रुप्स पर पोस्ट कर दिया और उक्त ग्रुप संचालक के ग्रुप पर टिप्पणी में लिखा कि दबाव के कारण त्यागपत्र दिया है। बाद में बिना कोई कारण बताये त्यागपत्र हटा लिया गया, लेकिन श्री देवराज मीणा जी और अन्य अनेक हक रक्षक दल शुभचिन्तकों की ओर से श्री विमल मीणा, श्री महेश मीणा और श्री नरशी मीणा से सार्वजनिक रूप से बार-बार अनुरोध किया गया कि यदि वे वास्तव में हक रक्षक दल की मुहिम और समाज हित की  मीटिंग के विरोधी नहीं हैं तो और रैणी क्षेत्र के लोगों को मीणा-मीना विवाद और समाज हित की हकीकत से वाकिफ करवाना चाहते हैं तो वे तीनों आगे आकर रैणी की मीटिंग के आयोजन की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर लें। जिसके लिये तीनों ही लगातार हॉं कहते रहे, लेकिन इसके लिये किया कुछ नहीं। अन्तत: षड़यंत्र करने वाले समाज विरोधी सफल हुए और विरोधियों ने मिलकर रैणी के लोगों को जागरूक करने के लिये होने वाली सभा के पूर्वनिर्धारित स्थल पर, अन्य कार्यक्रम का आयोजन प्रस्तावित करवाकर, हक रक्षक दल की सभा को रोकने में सफल रहे।

अत: इन हालातों में श्री विमल कुमार मीणा का राजस्थान प्रदेश प्रभारी पद से सार्वजनिक रूप से दिया गया, त्यागपत्र स्वीकार किया जाता है और साथ ही स्पष्ट किया जाता है श्री विमल कुमार मीणा एवं श्री राम किशोर मीणा से हक रक्षक दल का कोई वास्ता नहीं है। साथ ही श्री नरशी मीणा और श्री महेश मीणा जो वर्तमान में न तो हक रक्षक दल के किसी पद पर हैं और न ही सदस्य हैं, लेकिन इनके द्वारा शुरूआत में हक रक्षक दल के लिये किये गये सहयोग को ध्यान में रखते हुए, इन दोनों से सार्वजनिक रूप से विनम्र आग्रह है कि आप दोनों विरोधियों की हक रक्षक दल की विरोधी मुहिम का हिस्सा नहीं बनें।

मनोज जौरवाल
राष्ट्रीय सचिव एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता
हक रक्षक दल
और
शशि मीणा
राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष,
हक रक्षक दल

19.3.15

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आरक्षित वर्गों के गले की हड्डी ना बन जाये?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आरक्षित वर्गों के गले की हड्डी ना बन जाये?

जाट जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग से बाहर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने आरक्षित वर्गों और जातियों के समक्ष अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं। आगे लिखने से पूर्व यह साफ करना जरूरी है कि जाट जाति आरक्षण की पात्र है या नहीं? इस बात का निर्णय करने का मुझे कोई हक नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिन तर्कों के आधार पर जाट जाति को आरक्षित वर्गों की सूची से बाहर करने का फरमान सुनाया गया है, उसकी समीक्षा करने का हक हर एक नागरिक को है।

भारतीय न्यायपालिका के सामाजिक न्याय से जुड़े निर्णयों के इतिहास पर पर नजर डालें तो ये बात बार-बार प्रामाणित होती रही है कि सुप्रीम कोर्ट का रवैया आरक्षित वर्गों के प्रति संवेदनशील होने के बजाय अधिकतर मामलों में कठोर और नकारात्मक ही रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अनेक बार आरक्षण को छीनने और कमजोर करने वाले निर्णय सुनाये हैं। जिन्हें भारत की संसद द्वारा अनेकों बार रद्द किया है। इसके बावजूद भी सुप्रीम कोर्ट हर बार किसी न किसी नयी दलील के आधार पर आरक्षण को कमजोर करने या आरक्षित वार्गों के हितों को नष्ट करने वाले निर्णय सुनाता आ रहा है। जिसकी बहुत लम्बी सूची है। देराईराजन, ए आर बालाजी, इन्दिरा शाहनी जैसे प्रकरण सर्वविदित हैं।

अब सुप्रीम कोर्ट ने जाट जाति के आरक्षण को गलत करार देते हुए अपने निर्णय में कही गयी कुल चार बातों को मीडिया द्वारा खूब उछाला जा रहा है। जिसके चलते अनेक आरक्षण विरोधी लेखकों की कलम की धार भी दूसरे आरक्षित वर्गों के प्रति भी पैनी और निष्ठुर हो गयी है। अत: मैं इन्हीं चार बातों पर विश्‍लेषण करना जरूरी समझाता हूँ :- 

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि-‘‘केन्द्र सरकार का फैसला कई साल पुराने आंकड़ों पर आधारित है।’’ पहली नजर में सुप्रीम कोर्ट का तर्क सही है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूर्व में भी सवाल किया था कि जनसंख्या के नवीनतम जातिगत आंकड़ों के बिना किसी भी जाति या वर्ग को कितना प्रतिशत आरक्षण दिया जाये, इस बात का सरकार किस आधार पर निर्णय ले रही है? लेकिन इसके ठीक विपरीत जातिगत जनगणना करवाने के एक हाई कोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहते हुए रोक लगा दी कि जनसंख्या की जाति के आधार पर गणना करवाना या नहीं करवाना भारत सरकार का नीतिगत अधिकार है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करने का हक नहीं है। इससे यहाँ सवाल यह उठता है कि "सुप्रीम कोर्ट आखिर चाहता क्या है? जातिगत जनगणना करवाना या इस पर रोक लगाना?"

वहीं इसके ठीक विपरीत वर्तमान निर्णय में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि-‘‘जाट सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं और उन्हें आरक्षण की कोई जरूरत नहीं है।’’ इस टिप्पणी से यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि "जब सरकार के पास जातिगत आंकड़ें उपलब्ध ही नहीं हैं। तो सुप्रीम कोर्ट किस आधार पर इस नतीजे पर पहुँचा है कि जाट जाति सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम है? इससे यह पता चलता है कि न्यायपालिका में आरक्षण का प्रावधान नहीं होने के कारण और सुप्रीम कोर्ट में आर्यों का प्रभुत्व होने के कारण सुप्रीम कोर्ट मनुवादी मानसिकता से ग्रस्त है और कमजोर अनार्य तबकों के प्रति अपने निष्पक्ष नजरिये के प्रति निष्ठावान नहीं है।"

लगे हाथ सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि-‘‘आरक्षण के लिए पिछड़ेपन का आधार सामाजिक होना चाहिए, न कि आर्थिक या शैक्षणिक।’’ यदि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आर्थिक आधार पर ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता तो फिर सुप्रीम कोर्ट की फुल संवैधानिक बैंच द्वारा इन्दिरा शाहनी के मामले में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (ओबीसी) को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण प्रदान करने को हरी झंडी क्यों दी गयी थी? इसके अलावा "सुप्रीम कोर्ट आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की मांग के समर्थन में हड़ताल करने वाले सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों की असंवैधानिक हड़ताल को क्यों जायज ठहरा चुका है।" 

चौथी और सबसे खतरनाक बात सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि-‘‘ओबीसी में आरक्षण के लिए अब तक केवल जातियों को शामिल ही क्यों किया गया है, किसी जाति को इससे बाहर क्यों नहीं किया गया।’’ क्या सुप्रीम कोर्ट का यह रुख क्या सरकार के नीतिगत निर्णयों में खुला हस्तक्षेप नहीं है? एक ओर तो सुप्रीम कोर्ट सरकार के नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करने के बहाने जातिगत जनसंख्या की जनगणना करवाने के आदेश देने वाले हाई कोर्ट के निर्णय को स्थगित करता है, दूसरी ओर सवाल उठाता है कि आरक्षित वर्ग में शामिल जातियों को बाहर क्यों नहीं किया जाता है? मेरा सीधा सवाल यह है कि "क्या सुप्रीम कोर्ट के पास किसी जाति या वर्ग विशेष के बारे में ऐसे आंकड़े हैं, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट को पहली नजर में यह निष्कर्ष निकालने का आधार उपलब्ध हो कि फलां जाति या वर्ग को आरक्षण की जरूरत नहीं है? निश्‍चय ही ऐसे आंकड़े नहीं हैं, फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस प्रकार की टिप्पणी करना किस बात का द्योतक है?"

सीधा और साफ मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट अपने विगत इतिहास की भांति आरक्षित वर्गों के प्रति संवेदनशील नहीं है और किसी न किसी प्रकार से आरक्षण व्यवस्था को कमजोर करने के लिये, ऐसे संकेत देता रहता है, जिससे मनुवादी ताकतें आरक्षित वर्गों के विरुद्ध आवाज उठाने को प्रेरित होती रहती हैं। जिससे एक बार फिर से हमारी यह मांग जायज सिद्ध होती है कि-"सामजिक न्याय की स्थापना के लिए न्यायपालिका में भी सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण सुनिश्चत किया जाना जरूरी है।"

इन हालातों मेंं सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय को केवल जाट जाति का मामला मानकर हलके में नहीं लिया जाना चाहिये और सभी आरक्षित वर्गों को एकजुट होकर इस प्रकार के आरक्षण विरोधी निर्णयों के दूरगामी दुष्प्रभावों की तुरन्त समीक्षा करनी चाहिये, अन्यथा माधुरी पाटिल केस की भांति ऐसे निर्णय आरक्षित वर्गों के गले ही हड्डी बन जायेंगे।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (अनार्यों के हक की आवाज), 98750 66  111

14.3.15

सावधान आर्यों की साजिश : 12 % आर्यों की 1% गरीब आबादी को 14 % आरक्षण!

सावधान आर्यों की साजिश : 12 % आर्यों की 1% गरीब आबादी को 14 % आरक्षण!

राजस्थान विधानसभा में आर्य विधायक घनश्याम तिवारी ने 12 मार्च, 15 को मांग की है कि सवर्ण (आर्य) वर्ग को आर्थिक आधार पर 14 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के विधानसभा के पिछले प्रस्ताव को लागू करवाने के लिए तकनीकी अड़चनों को दूर किया जाए।

उल्लेखनीय है कि भाजपा की पिछली सरकार के दौरान राजस्थान विधानसभा ने गरीब सवर्णों को 14 फीसदी आरक्षण प्रदान करने का एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसे न्यायपालिका द्वारा असंवैधानिक करार देकर स्थगित कर दिया था।
हक रक्षक दल सामाजिक संगठन ऐसे किसी भी असंवैधानिक प्रस्ताव का कड़ा विरोध करता है।
क्योंकि-
1-भारत में सवर्णों (आर्यों) की कुल आबादी करीब 12 फीसदी है, जिसमें से बमुश्किल कोई 01 फीसदी ग़रीब होंगे। 
2-कुल 12 फीसदी आबादी वाले आर्य अपनी 01 फीसदी आबादी के कथित संरक्षण के बहाने 14 फीसदी संवैधानिक पदों पर अ-संवैधानिक कब्जा पाने का षड्यंत्र रच रहे हैं। 
3-संविधान की सामाजिक न्याय की अवधारणा के अनुसार आरक्षण उन वर्गों को दिया जाता है, जिनका सत्ता और प्रशासन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो, जबकि भारत में तो सर्वत्र केवल सवर्णों का ही सम्पूर्ण कब्जा है। सवर्णों ने तो अन्य वर्गों के हकों पर भी कब्जा जमाया हुआ है।  
4-अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को उनकी कुल आबादी के बराबर आरक्षण देने के प्रस्ताव/सवाल पर सुप्रीम  कोर्ट ये कहकर रोक लगा देता है कि ओबीसी की जनसंख्या के वास्तविक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
5-इसी प्रकार अजा एवं अजजा वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान किये जाने की संवैधानिक मांग/सवाल पर इस कारण ध्यान नहीं दिया जाता, क्योंकि सत्ता पर काबिज आर्यों का कहना है कि न्यायपालिका द्वारा पचास फीसदी से अधिक आरक्षण प्रदान करने पर रोक है। 
6-ऐसे में सबसे पहला सवाल तो ये है कि सरकार द्वार भारत की जनसंख्या की जातिगत आधार पर जनगणना करवाकर जनसंख्या के आंकड़े सार्वजनिक क्यों नहीं किये जाते?

वास्तविकता यह है कि सवर्ण गरीबों के नाम पर 12 फीसदी आर्य 14 फीसदी आरक्षण पाने का असंवैधानिक और घिनौना षड्यंत्र रच रहे हैं। जिसकी हक रक्षक दल सामाजिक संगठन कड़े शब्दों में निंदा और भर्त्सना करता है।
हमारी मांग है की सभी आनार्यों और आरक्षित वर्गों को एकजुट होकर आर्यों की ऎसी किसी भी असंवैधानिक मांग की साजिश का कडा विरोध करना चाहिए।
सबसे दुखद आश्चर्य तो यह है कि आर्यों के इस असंवैधानिक षड्यंत्र के विरूद्ध अनार्य-आरक्षित वर्गों के जन प्रतिनिधि मौन साधे बैठे हैं?
कडवी हकीकत यह है कि कुल 12 फीसदी आर्यों की 01 फीसदी कथित गरीब आबादी को 14 फीसदी आरक्षण देने का षड्यंत्र शुरू हो चुका है! जिसके माध्यम से आर्य 14 फीसदी संवैधानिक पदों पर अपना कब्जा जमाना चाहते हैं।
अत: यदि हमारे जन प्रतिनिधियों की भांति हम भी मौन साधे बैठे रहे तो आर्यों के इस षड्यंत्र को रोकना अ-संभव होगा। विशेषकर तब जबकि न्यायपालिका पर आर्यों का सम्पूर्ण कब्जा है!
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD), 14.03.2015

2.3.15

सरकारी उपक्रमों में जाति प्रमाण-पत्र अंग्रेजी प्रारूप में बनवाने की अनिवार्यता क्यों?-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

प्रेस-नोट/02.03.2015
सरकारी उपक्रमों में जाति प्रमाण-पत्र अंग्रेजी प्रारूप
में बनवाने की अनिवार्यता क्यों?-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

जयपुर। हक रक्षक दल सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कानूनी सवाल उठाया है कि बिना किसी कानूनी प्रावधान के भारत सरकार के उपक्रमों में आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों से अंग्रेजी प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र बनवाने की मनमानी व्यवस्था क्यों लागू की जा रही है?
डॉ. मीणा ने अपने पत्र में लिखा है कि भारत सरकार के नियन्त्राणाधीन संचालित संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड तथा अन्य केन्द्र सरकार के सरकारी व अर्द्ध-सरकारी उपक्रमों द्वारा नौकरी प्राप्ति के इच्छुक आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को हर बार अंग्रेजी की भिन्न-भिन्न भाषा/शब्दावलि में जाति प्रमाण का अंग्रेजी प्रारूप और केवल अंग्रेजी में बनवाने के निर्देश जारी किये जा रहे हैं। जिसके कारण अभ्यर्थियों को एक ही वर्ष में अनेक बार जाति-प्रमाण-पत्र बनवाने पड़ते हैं। जिसमें बेरोजगार अभ्यर्थियों का गैर-जरूरी खर्चा तो होता ही साथ ही साथ, विशेषकर हिन्दी भाषी या गैर-हिन्दी व गैर अंग्रेजी भाषी राज्यों में सरकारी कार्यालयों में कार्यरत लोक सेवकों द्वारा अंग्रेजी में बनाये जाने वाले जाति प्रमाण-पत्रों में अंग्रेजी भाषा में प्रवीणता नहीं होने के कारण, अनेक प्रकार की त्रुटियॉं भी छोड़ दी जाती हैं। जिनका खामियाजा अन्तत: जाति प्रमाण-पत्र धारी अभ्यर्थियों को ही भुगतना पड़ता है।

उपरोक्त के अलावा डॉ. मीणा ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि भारत सरकार के अधीन कार्यरत सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी उपक्रमों में नौकरी प्राप्त करने एवं शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्राप्ति हेतु आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को जाति प्रमाण-पत्र बनवाकर प्रस्तुत करने हेतु अंगे्रजी भाषा में मनमाने प्रारूप बनाकर जारी किये जा रहे हैं, जो राजभाषा अधिनियम, 1976 का खुला उल्लंघन और अपमान है। क्योंकि ऐसा करने से राजभाषा अधिनियम के अनुसार भारत के ‘क’ एवं ‘ख’ क्षेत्रों में हिन्दी भाषा में कार्य करने के संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने में खुद सरकारी उपक्रमों द्वारा ही रुकावट पैदा की जा रही है।

पत्र के अन्त में डॉ. मीणा ने लिखा है कि उक्त मनमानी एवं असंवैधानिक प्रक्रिया पर तत्काल पाबन्दी लगायी जावे और आरक्षित वर्गों के संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा निम्न कार्यवाही की जावे-

  • 1. भारत सरकार की ओर से हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में जाति प्रमाण-पत्रों के प्रारूप जारी किये जावें।
  • 2. अभ्यर्थियों को उनकी सुविधानुसार किसी भी भाषा के भारत सरकार के निर्धारित प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र बनवाने की संवैधानिक आजादी है, जिसकी सुरक्षा के लिये प्रशासन को सख्त निर्देश जारी किये जावें।
  • 3. अंग्रेजी में या मनमाने तरीके से निर्धारित किये जाने वाले प्रारूपों में हर बार नये-नये प्रारूपों में केवल अंग्रेजी में ही जाति प्रमाण-पत्र बनवाने के निर्देश जारी करने पर पाबन्दी लगायी जावे।
  • 4. उक्त निर्देशों की पालना नहीं करने वाले प्राधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही की जावे।

सधन्यवाद।
भवदीय
(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’)
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल

22.2.15

‘मीना जनजाति’ के जाति प्रमाण-पत्र बनाने में तहसीलदारों द्वारा की जा रही मनमानी और उत्पीड़न पर अंकुश लगाया जावे।
























मुख्यमंत्री, राजस्थान को हक रक्षक दल की और से पत्र लिखकर मांग की गयी कि -‘मीना जनजाति’ के जाति प्रमाण-पत्र बनाने में तहसीलदारों द्वारा की जा रही मनमानी और उत्पीड़न पर अंकुश लगाया जावे।पत्रांक : HRD/2015-1                  दिनांक : 22.02.2015


प्रतिष्ठा में,
मुख्यमंत्री
राजस्थान सरकार, जयपुर।
विषय : केन्द्र सरकार के प्रारूप में ‘मीना जनजाति’ के जाति प्रमाण-पत्र बनाने में तहसीलदारों द्वारा की जा रही मनमानी और आवेदकों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के सम्बन्ध में।

उपरोक्त विषय में ध्यान आकृष्ट कर अवगत करवाया जाता है कि-

1. ‘मीना जनजाति’ के जाति प्रमाण-पत्र जारी करने के सम्बन्ध में राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से दिनांक : 30.09.2014 एवं दिनांक : 23.12.2014 को राजस्थान के समस्त जिला कलेक्टर्स के नाम से जारी किये गये राजस्थान सरकार के आदेशों की आड़ में अनेक तहसीलदार इन आदेशों की मनमानी व्याख्या करते हुए केन्द्र सरकार के प्रारूप में ‘मीना जनजाति’ के  आवदकों को जाति प्रमाण-पत्र जारी नहीं कर रहे हैं और ‘मीना जनजाति’ के आवेदकों के साथ दुर्व्यवहार करते हुए उनका उत्पीड़न और अपमान भी कर रहे हैं। ऐसे तहसीलदारों का कहना है कि जब तक मामला न्यायपालिका के अधीन विचाराधीन है, तब तक ‘मीना जनजाति’ के आवेदकों के जाति प्रमाण-पत्र जारी नहीं किये जायेंगे।

2. उपरोक्त कारणों से ‘मीना जनजाति’ के आवेदकों को सरकारी सेवाओं में नियुक्ति/शिक्षण संस्थानों में प्रवेश इत्यादि कार्यों में केन्द्र सरकार के प्रारूप में ‘मीना जनजाति’ के प्रमाण-पत्र के न बनने से भयंकर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ‘मीना जनजाति’ के अनेक प्रत्याशियों को केन्द्र सरकार के प्रारूप में ‘मीना जनजाति’ के जाति प्रमाण-पत्र नहीं मिल पाने के कारण उनको अपने संवैधानिक मूल अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है। जिसके लिये सम्बन्धित तहसीलदार और अन्तत: राजस्थान सरकार जिम्मेदार है।

3. उक्त बिन्दु 1 एवं 2 में वर्णित कारणों और हालातों के चलते ‘मीना जनजाति’ के युवा वर्ग, विद्यार्थी वर्ग और आम लोगों में भी राजस्थान सरकार के प्रशासन और राजस्थान सरकार के प्रति लगातार असन्तोष और गुस्सा बढता जा रहा है, जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में चिन्ता का कारण होना चाहिये।

आग्रह एवं अपेक्षा

अत: उपरोक्तानुसार उत्पन्न अप्रिय और असंवैधानिक हालातों से अवगत करवाते हुए आप से आग्रह है कि ‘मीना जनजाति’ के सम्बन्ध में सभी समानार्थी शब्दों के साथ केन्द्र सरकार से संशोधित अधिसूचना जारी होने तक ‘मीना जनजाति’ के आवेदकों को आवश्यकतानुसार राज्य एवं केन्द्र सरकार के प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र जारी करने में तहसीलदारों की असंवैधानिक मनमानी पर पाबन्दी लगायी जावे और उनको सख्त निर्देश जारी किये जावें कि ‘मीना जनजाति’ के जाति प्रमाण-पत्र हेतु आवेदन करने वाले आवेदकों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करते हुए तत्काल जाति प्रमाण-पत्र जारी किये जावें।

सधन्यवाद। भवदीय

   (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’)
     राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल



17.11.14

हक रक्षक दल प्रमुख डॉ. निरंकुश की निवाई में कार्यशाला

हक रक्षक दल प्रमुख डॉ. निरंकुश की निवाई में कार्यशाला

निवाई-टोंक। एम. के. मेमोरियल स्कूल, खणदेवत रोड़, जमात, निवाई, में 16 नम्बर, 2014 को हक रक्षक दल की एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य रूप से हक रक्षक दल के प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, उप प्रमुख डीएस देवराज, राजस्थान प्रदेश प्रभारी विमल कुमार मीणा आदि ने सम्बोधित किया।

कार्यशाला करीब चार घंटे तक चली, जिसमें भाग लेने वालों ने पूर्ण अनुशासन, शान्ति और धैर्य के साथ डॉ. डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ जो सुना।

-डॉ. निरंकुश जी ने मीणा-मीना विवाद के बारे में जानकारी देने से पहले आरक्षण के बारे में अनेक ऐतिहासिक, संवैधानिक और व्यावहारिक जानकारियॉं प्रदान की।

-डॉ. निरंकुश जी ने 1932 में हुए गोल मेज सम्मेलन से चर्चा की शुरुआत की और मोहनदास कर्मचंद गॉंधी द्वारा दो वोट के हक को छीनने के लिये आरक्षित वर्गों के हितों के खिलाफ किये अनशन और पूना पैक्ट के बारे में जानकारी प्रदान करने के बाद अपनी बात को आगे बढाया।

-डॉ. निरंकुश जी ने संविधान सभा में आरक्षण पर हुई बहस और चर्चाओ के बारे में विस्तार से बताया और जानकारी दी कि डॉ. अम्बेड़कर जी के अथक प्रयासों के बाद भी मनुवादियों के गठजोड़े के सामने एक वोट से हारने के कारण मूल संविधान में नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की पुख्ता संवैधानिक व्यवस्थाएं नहीं की जा सकी।

-डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि संविधान लागू होने के दिन से ही मनुवादियों द्वारा न्यायपालिका की ओट में लगातार आरक्षण को समाप्त किये जाने के षड़यंत्र रचे जाते रहे हैं, जो आज तक भी लगातार जारी हैं। 

-डॉ. निरंकुश जी ने विस्तार से बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण को कमजोर करने के लिये दिये गये मनमाने निर्णयों को कैसे ससंद पर दबाव बनाकर बेअसर करवाया गया। और संसद द्वारा आरक्षण को न्यायपालिका के निर्णयों से बचाने के लिये संविधान में कब-कब संशोधन किये गये।

-डॉ. निरंकुश जी ने ‘अजा एवं अजजा संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ’ में राष्ट्रीय महासचिव के रूप में अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा संवैधानिक आरक्षण को कमजोर करने के लिये अनेकों बार मनमाने निर्णय दिये गये। उनको ससंद पर दबाव बनाकर कैसे बेअसर करवाया गया। और सामाजिक न्याय में विश्‍वास रखने वाले बहुत से सांसदों के सहयोग से संसद द्वारा आरक्षण को न्यायपालिका के निर्णयों से बचाने के लिये संविधान में कब-कब कितने संशोधन किये गये। इस सब की विस्तार से जानकारी दी गयी।

-डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि मुनवादियों द्वारा राजस्थान में मीणा जाति को टार्गेट किया हुआ है, जबकि दूसरे राज्यों में अन्य जातियों को टार्गेट किया हुआ है। इस सबके पीछे आरक्षण को समाप्त करने का सुनियोजित षड़यंत्र है, जिसे मनुवादी ताकतें संचालित कर रही हैं और अनेक आरक्षित वर्ग के लोगों को मनुवादियों ने अपने जाल में फंसा रखा है। इस कारण समाज की एकता कमजोर हो रही है।

-डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि माधुरी पाटिल के केस में बीस साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षित वर्गों के फर्जी जाति प्रमाण-पत्र रोकने के नाम पर एक अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक निर्णय सुनाया था। जिसका छद्म मकसद- 
(1) आरक्षित वर्गों की अस्मिता को चुनौती देना रहा है।
(2) आरक्षित वर्गों के मान सम्मान को तार-तार कर देना है।
(3) जो जॉंच के नाम पर आरक्षित वर्गों के हर एक व्यक्ति को अपराधियों की भांति कटघरे में खड़ा करके उसकी अपराधियों से भी बदतर जॉंच पड़ताल करने की मनमानी शक्तियॉं प्रशासन को प्रदान करता है।
(4) निर्णय में जॉंच के नाम पर आरक्षित वर्गों को जाति प्रमाण-पत्र जारी करने से पूर्व उनके सम्पत्ति, शिक्षा आदि के दस्तावेजों के साथ-साथ रूढिगत, परम्परागत, संस्कृति, धार्मिक-रीति रिवाज और प्रथाओं तक की परीक्षा करने की खुली छूट प्रशासन को प्रदान की गयी है।
(5) जिसमें संविधान की मूल भावना और मूल अधिकारों के हनन का भी ध्यान नहीं रखा गया है।
-डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि माधुरी पाटिल केस की सिफारिशें हर प्रकार से अन्यायपूर्ण, अपमानकारी, शर्मनाम और असंवैधानिक हैं, इसके उपरान्त भी बीस साल से दबे पड़े इस मामले को राजस्थान में लागू करवाने क लिये मीणा समाज के कुछ कथित विद्वानों की ओर मीणा समाज के रुपयों से ही हाई कोर्ट में याचिका दायर करके आदेश जारी करवाये गये हैं कि माधुरी पाटिल केस की सिफारिशें राजस्थान में भी तुरन्त लागू की जावें। जिसका सीधा अर्थ है कि अब आरक्षित वर्गों के जाति-प्रमाण-पत्र चाहने वाले हर एक व्यक्ति को हर दिन और हर कदम पर अग्नि परीक्षा देने के लिये तैयार रहना होगा। जो मीणा-मीना विवाद से भी भयंकर समस्या सिद्ध हो सकती है। 

-डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि जब मीणा जाति के लोग निम्न से लेकर उच्चतम स्तर की हर प्रकार की सरकारी नौकरी में अपनी प्रशासनिक और प्रबन्धकीय दक्षता और योग्यता का लोहा मनवा चुके हैं, इसके बावजूद भी राजस्थान हाई कोर्ट में सीधी भर्ती के जरिये जियुक्त किये जाने वाले 67 फीसदी जजों में आजादी के बाद से आज तक अजा एवं अजजा के एक भी जज का नियुक्त नहीं किया जाना क्या मनुवादियों की कुटिलता और द्वेषतापूर्ण नीति का प्रमाण नहीं है? यही कारण है कि न्यायपालिका आरक्षित वर्गों के मामले में 1951 से आज तक लगातार आरक्षण को कमजोर करने वाले निर्णय ही सुनाती आ रही है।

-डॉ. निरंकुश जी ने सभी आरक्षित और वंचित वर्गों की एकता पर जोर देते हुए कहा कि जब तक वंचित वर्ग के लोग एक नहीं होंगे, मनुवादी हमें मनमाने तरीके से कुचलते रहेंगे।
-अंत में डॉ. निरंकुश जी ने बताया कि समाज में जागरूकता लाने के लिए लगातार मीटिंगें की जावें और लोगों को सच बताया जावे। जिससे मूल अधिसूचना में संशोधन करवाने के लिए सरकार पर लपकतांत्रिक दबाव बढ़या जा सके। डॉ. निरंकुश जी ने साथ ही आगाह भी किया कि हमारे संघर्ष का आधार अनुशासन और अहिंसा। 
-डॉ. निरंकुश जी ने उपरोक्त के अलावा भी बहुत सारी जानकारियॉं लोगोंं को दी। जिसके चलते लोग भाव विभोर हो गये और डॉ. साहब का सभी ने दिल से आभार मानते हुए शीघ्र ही निवाई में बड़ी सभा आयोजित करने और हक रक्षक दल की आवाज को गॉंव-गॉंव तक पहुँचाने का विश्‍वास दिलाया।

हक रक्षक दल की कार्यशाला से बाहर निकलने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया

हक रक्षक दल की कार्यशाला से बाहर निकलने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया

निवाई-टोंक। एम. के. मेमोरियल स्कूल, खणदेवत रोड़, जमात, निवाई, में 16 नम्बर, 2014 को को हक रक्षक दल की एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य रूप से हक रक्षक दल के प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, उप प्रमुख डीएस देवराज, राजस्थान प्रदेश प्रभारी विमल कुमार मीणा आदि ने सम्बोधित किया।

कार्यशाला का आयोजन हक रक्षक दल के स्थानीय प्रतिनिधि बाबूलाल मीणा, आलोक मीणा, बुधराम मीणा, तेजराम मीणा और उनके अनेकानेक सहयोगियों ने किया। जिसमें स्थानीय युवा और बुजुर्गों के साथ-साथ टोंक, कोटा, दौसा और जयपुर जिले के हक रक्षकों न सक्रिय रूप से भाग लिया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में सुप्रसिद्ध लेखक एवं चिन्तक और हक रक्षक दल के प्रमुख श्री डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ जी का कार्याशाला में उपस्थित समाज के वयोवृद्ध श्री रामकुमार मीणा जी ने माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। साथ ही उपमुख्य प्रमुख श्री डीएस देवराज, प्रदेश प्रभारी श्री विमल कुमार मीणा, कोटा के हक रक्षक प्रतिनिधि शशि मीणा का भी आयोजकों ने माल्यार्पण करके स्वागत किया। 

कार्यशाला का प्रारम्भ करते हुए डॉ. निरंकुश जी ने कार्यशाला में उपस्थित नये लोगों से सीधा सवाल किया कि कितनों को ज्ञात है कि-मीणा-मीना विवाद क्या है? जिस पर अधिकांश ने अनभिज्ञता जताई और कुछ ने कहा कि केवल बोलने और लिखने का फर्क है, बाकी कोई फर्क नहीं है।

डॉ. निरंकुश जी ने सवाल किया कि मीणा जाति में वैवाहिक रिश्तों का समाधान करने का अधिकार मीणा समाज के पंच पटेलों के पास क्यों है और समाज के पंच पटेलों द्वारा वैवाहिक मामलों के निपटारे को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती, क्यों? मगर किसी के पास भी इस सवाल का जवाब नहीं था।

डॉ. निरंकुश जी ने जब सवाल किया कि कितनों को जानकारी है कि हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रावधान आदिवासियों के ऊपर लागू नहीं होते हैं, क्योंकि हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, तो लोगों के बीच सन्नाटा छा गया।

इस प्रकार के कुछ सवालों के साथ डॉ. निरकुश जी ने मीणा-मीना विवाद पर कार्यशाला की शुरूआत की तो उपस्थित लोग आश्‍चर्यचकित होकर डॉ. साब की एक-एक बात को ध्यान से सुनते रहे। बीच-बीच में डॉ. निरंकुश जी ने उपस्थित लोगों से कुछ रोचक और ज्ञानवर्धक सवालों के जवाब भी पूछे, लोगों को भी सवाल पूछने को प्रेरित किया और लोगों को परिवार के सदस्यों की भांति अपने साथ जोड़ लिया। ऐसी-ऐसी जानकारियॉं लोगों को दी, जिनके बारे में लोगों को तनिक भी जानकारी नहीं थी। डॉ. निरंकुश जी को सुनने के बाद कार्यशाला में भाग लेने वालों की निम्न प्रतिक्रियाओं को पढकर कार्यशाला कैसी रही होगी, इस बात का सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है।

सेवानिवृत सत्तर वर्षीय फौजी : मेरे जीवन में मैंन कभी सोचा भी नहीं था कि मीणा समाज में डॉ. पुरुषोत्तम मीणा के रूप में ऐसा व्यक्ति भी मौजूद है, जिसे आजादी से पहले से मीणा-मीना विवाद तक की आरक्षण सम्बन्धी सभी संवैधानिक, कानूनी और सामाजिक बातों की जानकारी पर इतनी अच्छी पकड़ है। हम तो डॉ. साहब को सुनकर धन्य हो गये।

क 25 वर्षीय युवा : आज डॉ. साहब को नहीं सुनता तो मैं बहुत बडे़ ज्ञान से वंचित रह जाता। डॉ. साहब ने हमें जो जानकारियां दी हैं, उनसे हमें पहली बार पता चला है कि हमारे समाज की असली समस्या क्या हैं!

एक अध्यापक : डॉ. साहब को सुनकर आँखों की और दिमांग की धूल साफ हो गयी। डॉ. साहब ने हमें सच का आईना दिखा दिया। आज हम नहीं आते तो बहुत बड़ी भूल होती।

एक अन्य युवा : डॉ. साहब ने जिस तरीके से लगातार चार घंटे तक जानकारी दी है, उसे सुनकर तो हमारी आंखें खुल गयी है और इस बात का अहसास हो गया है कि मनुवादी और राजनेता हमें लगातार गुमराह करते आये हैं।

एक अन्य कर्मचारी : डॉ. साहब ने जो जानकारी दी हैं, उनकोे हमें गॉंव-गॉंव तक पहुंचाना होगा। डॉ. साहब का हक रक्षक दल रूपी ज्ञान और जागरूकता अभियान अब रुकने वाला नहीं है। हम इसे हर जगह पहुंचायेंगे।

एक अन्य बजुर्ग : मुझे तो पता ही आज चला है कि मीणा-मीना विवाद की हकीकत क्या है? आज से पहले तो बस यही समझता था कि लिखने और बोलने का ही फर्क है।

कार्यशाला के दौरान श्री डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी और उप प्रमुख श्री डीएस देवराज जी की अनुमति से राजस्थान प्रदेश प्रभारी श्री विमल कुमार मीणा जी ने करौली जिले के युवा और जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. रामलखन मीणा जी को हक रक्षक दल का राजस्थान प्रदेश प्रभारी (युवा प्रकोष्ठ), श्री आलोक मीणा जी को टोंक जिला अध्यक्ष (युवा प्रकोष्ठ) और श्री बुधराम मीणा जी को निवाई तहसील अध्यक्ष (युवा प्रकोष्ठ) नियुक्त किया गया। उपस्थित सभी लोगों ने नवनियुक्त पदाधिकारियों का कर्तलध्वनि से स्वागत करते हुए माल्यार्पण करके उनका सम्मान भी किया। नवनियुक्त पदाधिकारियों ने हक रक्षक दल की आवाज को जन जन की आवाज बनाने का विश्‍वास दिलाया। उपस्थित सभी लोगों ने एक स्वर में हक रक्षक  दल के पदाधिकारियों का सहयोग करने का आश्वासन दिया।  

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी कार्यशाला से निकलने के बाद हर कोई डॉ. साहब के विचारों के बारे में चर्चा करने में मशगूल देखा गया। यही हक रक्षक दल के नेतृत्व की ऐसी अनोखी प्रतिभा और क्षमता है, जिसके कारण लगातार हक रक्षक दल का कारवां हर दिन बढता ही जा रहा है।

15.11.14

प्रथम आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद वीर बिरसा मुण्डा की 140वीं जयंती पर नमन

प्रथम आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद
वीर बिरसा मुण्डा की 140वीं जयंती पर नमन

संक्षिप्त जीवन परिचय :
वीर बिरसा मुण्डा का जन्म 15 नवम्बर, 1872 को खुट्टी के चकलेद गॉव में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा मिहानरी विद्यालय में हुई थी। 1899 में इन्होंने उलगुलान आंदोलन छेड़ा, जिसे सामंतों और अंग्रेजों ने मिलकर दबा दिया और 3 फरवरी, 1900 को उन्हें गिरफ्तार कर जेल में दाल लिया गया। अंतत: 5 जून 1900 को रांची के कारागार में ही उनकी हत्या कर दी गयी जिसे हैजा के कारन हुई मृत्यु कहकर प्रचारित किया गया।

जनजातीय विद्रोह :

-जनजातीय विद्रोह में सबसे संगठित एवं विस्तृत विद्रोह 1895 ई. से 1901 ई. के बीच मुण्डा विद्रोह था, जिसका नेतृत्व आदिवासी वीर बिरसा मुण्डा ने किया था।

-वीर बिरसा मुण्डा का जन्म 1875 ई. में रांची के तमार थाना के अन्तर्गत चालकन्द गाँव में हुआ था। उसने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी।

-वीर बिरसा मुण्डा ने, मुण्डा विद्रोह नाम से प्रसिद्ध विद्रोह पारम्परिक मनुवादी सामंतशाही एकाधिकारवादी भू-व्यवस्था के खिलाफ आदिवासियों को जमींदारी हक प्रदान करने की व्यवस्था में परिवर्तन हेतु सामजिक-धार्मिक-राजनीतिक आन्दोलन का स्वरूप प्रदान किया।

-वीर बिरसा मुण्डा को स्थानीय भाषा में उल्गुहान (महान विद्रोही) कहा गया है। जिन्होंने धर्म के नाम पर अन्ध विश्वास पैदा करने वाली मनुवादी व्यवस्था के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया और एकेश्वरवाद का संदेश दिया।   

-वीर बिरसा मुण्डा ने अपनी सुधारवादी प्रक्रिया का सामाजिक जीवन में एक आदर्श प्रस्तुत किया। इसलिए उन्होंने निजी जीवन में नैतिक आचरण की शुद्धता, आत्म-सुधार और एकेश्‍वरवाद का उपदेश दिया।

-वीर बिरसा मुण्डा ने स्थानीय सामंतों के मार्फ़त संचालित ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकारते हुए अपने अनुयायियों को सामंतों के मार्फ़त सरकार को लगान न देने का आदेश दिया।

-नाइंसाफी से विरुद्ध संघर्षरत वीर बिरसा मुण्डा की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर, कुछ धोखेबाज आदिवासियों के सहयोग से सामंतों और अंग्रेजों ने  उनको 1900 ई. गिरफ्तार कर, जेल में डाल दिया जहाँ। जहाँ  हैजा की बीमारी से उनकी मृत्यु होना प्रचारित किया गया। जबकि हकीकत में मनुवादियों और अंग्रेजों ने सामूहिक षड्यंत्र रचकर बिरसा को जेल में मार डाला।

प्रतिज्ञा करें :
आज उनकी 140वीं जयंति है।
इस अवसर पर हम सभी आदिवासी और
वीर बिरसा के जीवन संघर्ष को जानने और
मान्यता प्रदान करने वाले सभी भारतवासी
प्रथम आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और
अमर शहीद वीर बिरसा मुंडा के अन्याय के खिलाफ किये गए संघर्ष को नमन करते हैं।
और अमर शहीद वीर बिरसा मुंडा के जीवन से प्रेरणा लेते हुए
हम अपनी-अपनी सामूहिक सामाजिक जिम्मेदारी मानते गए
सच्चे मन से स्वेच्छा प्रतिज्ञा करें कि-
  • 01-हम सभी आदिवासी किसी के अन्याय और भेदभाव को नहीं सहेंगे।
  • 02-हम सभी आदिवासी एक दूसरे की पीड़ाओं को साझा करेंगे। 
  • 03-हम सभी आदिवासी संघर्ष करने के लिए हमेशा एकजुट रहेंगे।
  • 04-हम सभी आदिवासी धोखेबाज आदिवासियों से सावधान रहेंगे।
  • 05-हम सभी आदिवासी अन्यायपूर्ण मनुवादी गुलामी से मुक्त होंगे।
  • 06-हम सभी आदिवासी अन्धविश्वास और कुरूतियों को तोड़ेंगे।
  • 07-हम सभी आदिवासी आर्यों के विरूद्ध अनार्यों को एकजुट करेंगे।
  • 08-हम सभी आदिवासी अपने मौलिक और संवैधानिक हकों की रक्षा करेंगे।
  • 09-हम सभी आदिवासी प्रकृति नाशक विकास का विरोध करेंगे।
  • 10-हम सभी आदिवासी सभी सामान भागीदारी के लिए संघर्ष करेंगे।
  • 11-हम सभी आदिवासी धर्म निरपेक्षता का सम्मान और समर्थन करेंगे।
लेखक-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-098750661111-