SJS&PBS

स्थापना : 18 अगस्त, 2014


: मकसद :

हमारा मकसद साफ! सभी के साथ इंसाफ!!


: अवधारणा :


सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी!

Social Justice, Secularism And Pay Back to Society-SJS&PBS


: सवाल और जवाब :


1-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति में मूल सामाजिक व्यवधान : मनुवादी आतंकवाद!

2-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति का संवैधानिक समाधान : समान प्रतिनिधित्व।


अर्थात्

समान प्रतिनिधित्व की युक्ति! मनुवादी आतंकवाद से मुक्ति!!


29.8.14

हक रक्षक दल-सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वाह!

हक रक्षक दल

Haq Rakshak Dal अर्थात्=HRD

अर्थात्-हमारे, आपके और सभी वंचित वर्गों और समूहों के प्राकृतिक, सामाजिक, कानूनी, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और संवैधानिक हकों/अधिकारों की रक्षार्थ स्थापित एक ऐसा सामाजिक संगठन है, जिसकी मान्यता है कि-"समान भागीदारी के बिना कैसी स्वतंत्रता?" जब तक स्त्रियों सहित समाज के सभी वर्गों को उनकी जनसँख्या के अनुसार संवैधानिक समानता का वास्तविक हक नहीं मिल जाता, तब तब आजादी अर्थात् स्वतन्त्रता के कोई मायने नहीं हैं? क्योंकि-
01. संवैधानिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था पर काले अंग्रेजों का कब्जा : आज भी हम अंग्रेजी के गुलाम है, जिसके कारण सभी वर्गों की स्त्रियों सहित वंचित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक (पिछड़ी जातियों से धर्म परिवर्तित मुस्लिम) और ग्रामीण बच्चे बड़े पदों पर नहीं पहुँच पा रहे हैं। और अंग्रेजी की गुलामी के कारण सम्पूर्ण संवैधानिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था और सभी निकायों पर काले अंग्रेजों का कब्जा है।

02. सबसे महत्वपूर्ण सवाल-कौन हैं काले अंग्रेज? हम सभी जानते हैं कि गौरे अंग्रेज व्यापार करने के मकसद से भारत आये थे, लेकिन बाद में भारत के शासक बन बैठे। शासन चलाने के लिये, उनको अपने अधीन नौकरों की बड़ी फौज की जरूरत थी। चूँकि अंग्रेज तो तत्कालीन विश्‍व का महानतम सम्भ्रान्त शासक वर्ग था, वह खुद तो नौकर हो नहीं सकता था! अत: अंग्रेजों ने भारतीयों को अंग्रेजी सरकार की गुलामी (जिसे नौकरी नाम दिया गया) करने का आदेश दिया, लेकिन मनुवादी व्यवस्था के शिकंजें में पूरी तरह से कैद तत्कालीन भारत में बहुसंख्यक अर्थात् 90 फीसदी आबादी को तो (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को छोड़कर) पढाई करने का धार्मिक आदेश ही नहीं था। एक मात्र जिस ब्राह्मण वर्ग के लोगों के पूर्वज धर्मानुसार आजादी से पूर्व हर प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने को आजाद थे, अर्थात् ब्राह्मणों द्वारा निर्मित धर्म के अनुसार-वेद, पुराण, गीता, महाभारत और अन्य सभी धर्मग्रंथों को संस्कृत और हिन्दी या स्थानीय भाषाओँ में केवल ब्राह्मणों को ही पढने का अधिकार था, ब्राह्मणों को ही ये अधिकार था कि वे शिष्यों को योग्य मानकर शिक्षा दें या अयोग्य मानकर शिक्षा नहीं दें और ब्राह्मणों को ही ये अधिकार था कि पात्र श्रोताओं को धर्म ग्रंथों या नैतिक बातों या शिक्षाओं को सुनाएँ या नहीं। कुल मिलाकर धर्म के साथ-साथ शिक्षा पर भी ब्राह्मणों को धार्मिक एकाधिकार प्राप्त था। इस कारण उस जमाने में केवल ब्राह्मण ही कथित धर्मधारी, विधिवेत्ता, विद्वान, सु-शिक्षित और सर्वगुणसम्पन्न मानव थे। लेकिन अंग्रेजी सरकार को अपनी नौकरी के लिये शिक्षितों या विद्वानों की नहीं, बल्कि अंग्रेजी जानने वाले गुलामों की जरूरत थी।

यहॉं पर यह बात विशेष रूप से समझने की है कि बादशाहों और राजाओं (क्षत्रियों) ने अपने सुख, सत्ता और ऐश-ओ-आराम के लिए अपनी प्रजा (अपने राज्य/क्षेत्र-वासियों) के हितों की परवाह किये बिना अंग्रेजों की सत्ता में आंशिक भागीदारी के लिये अंग्रेजों से उचित-अनुचित समझौते कर लिये और वैश्यों अर्थात् व्यापारियों को अपने व्यापार में अंग्रेजों ने स्वयं ही आंशिक हिस्सेदार बना लिया। ऐसे में अंग्रेजों की गुलामी (नौकरी) करने के लिये केवल ब्राह्मण वर्ग के ही लोग बचे जो तत्कालीन राजाओं और बादशाहों के दरबारों में शुरू से ही महामंत्री या सलाहकार या खंजाची या प्रशासक भी रहते आये थे।

अत: मनुवादी व्यवस्था में उस समय संस्कृत तथा हिन्दी या स्थानीय भाषा में सर्वाधिक शिक्षित और तत्कालीन सत्ता के सर्वाधिक नजदीक ब्राह्मणों ने अंग्रेजों की गुलामी (नौकरी) करने के लिये अंग्रेजी भाषा सीखी, जो उनके लिये सुलभ और आसान थी और इस प्रकार अंग्रेजी सीखकर ब्राह्मण अंग्रेजों के वफादार काले अंग्रेज/गुलाम अर्थात् अंग्रेजी सरकार के अफसर-कर्मचारी बन गये। जिनका काम था, उक्त तीनों वर्गों को विशेष क्षति पहुंचाए बिना, शेष सभी भारतीयों अर्थात नब्बे फीसदी आम जनता पर अंग्रेजी सत्ता की तानाशाही और मनमानी को हर हाल में कायम और लागू रखना। भेदभावपूर्ण अंग्रेजी कानूनों को क्रियान्वित करना। 

इस प्रकार ब्राह्मण वर्ग संस्कृत और हिन्दी/या स्थानीय भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा को भी पढने, लिखने व समझने में भी सक्षम हो गया। इस प्रकार भारत के आजाद होने तक अधिकतर अंग्रेजी-शिक्षित ब्राह्मण तो अंग्रेजों की गुलामी करते रहे और अंग्रेजी नहीं जानने वाले ब्राह्मण संस्कृत के मंत्रों व श्‍लोकों के जरिये शेष भारत को धार्मिक कर्म-काण्डों के जरिये मानसिक रूप से गुलाम बनाकर रखने में मशगूल रहे। इस प्रकार लम्बे समय तक अंग्रेजों की गुलामी करने वाले काले अंग्रेजों, अंग्रेजों के साथ सत्ता में भागीदारी करने वाले क्षत्रियों और व्यापारिक साझेदारी करने वाले वैश्यों ने आजादी के संघर्ष में भाग लेना तो बहुत दूर, उल्टा अंग्रेजों के प्रति देश भक्ति दिखाई। अनेक तो आजादी के यौद्धाओं की जासूसी करने में भी लिप्त रहे और आजादी के परवानों पर तरह-तरह के अत्याचार करते रहे, जिसके प्रतिफल में वे लोग अन्त समय तक अंग्रेजों के वफादार नौकर बने रहे।

इस प्रकार अंग्रेजों की गुलामी में पले-बढे, अंग्रेजी सत्ता के वफादार और अंग्रेजों की मानसिक गुलामी के वंशज, अंग्रेजी जानने वाले अफसर और कर्मचारी आजादी मिलने के तत्काल बाद भारत की प्रशासनिक सत्ता पर ऐसे काबिज हो गये, मानो आजादी केवल उन्हीं के लिये थाल में सजा कर पारोसी गयी हो। इस प्रकार आजाद भारत में, आजादी के साथ ही काले अंग्रेजों का जन्म हो गया। 

03. शासन पर एकाधिकार बनाये रखने के लिए काले अंग्रेजों ने अंग्रेजी को राजकाज की भाषा घोषित करवाया : इन देशद्रोही और अंग्रेजों के वफादार रहे काले अंग्रेजों ने आजाद भारत के
सत्ताधारी राजनेताओं से हाथ मिला लिया, क्योंकि अधिकतर ताकतवर राजनेता भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उक्त तीनों वर्गों से ही सम्बन्धित थे। इस प्रकार राजनेताओं के जरिये काले अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा को समाप्त नहीं होने दिया। यही नहीं, बल्कि अंग्रेजी को ही राजकाज की भाषा बनवा दिया। जिससे की शासन पर उन्हीं का एकाधिकार बना रहे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आजाद भारत में भी सारे नियम कानून अंग्रेजी में ही पारित और लागू होने लगे और इस देश को आजाद कराने के लिये बलिदान देने वाले और अपना लहू बहाने वाले देशभक्तों के वंशज देशद्रोही काले अंगरेजों और अंग्रेजी जानने वाले साहबों के गुलाम बन गये।

04. काले अंग्रेजों का उत्पादन जारी रखने के लिये संघ लोक सेवा आयोगों को जारी रखवाया : आजादी के बाद भी शासन के लिये काले अंग्रेजों का उत्पादन जारी रखने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य स्तर पर प्रदेश लोक सेवा आयोगों का संचालन भी अंग्रेजी में ही करवाना जारी रखने में काले अंग्रेजों ने सफलता हासिल कर ली। जिनमें अंग्रेजी जानने वाले परिवारों के लोगों का आज तक वर्चस्व कायम है। इस कारण भारतीय भाषाओं में विद्वुता और महा कौशल रखने वालों के लिये, अंग्रेजी ज्ञान के अभाव में इन संघ लोक सेवा आयोगों के दरवाजे हमेशा को बन्द हो गये।

05. काले अंग्रेज प्रत्येक संवैधानिक संस्थान पर काबिज : इस प्रकार अंग्रेजों की गुलाम मानसिकता के शिकार काले अंग्रेज आज तक सत्ता के प्रत्येक संवैधानिक संस्थान पर पूरी तरह से काबिज हैं। न्यायपालिका तो पूरी तरह से अंग्रेजों के गुलामों के कब्जे में है, जिसके कारण अंग्रेजी जानने वाले वकीलों को ही सर्वाधिक सफलता मिल रही है। पीड़ित/न्यायार्थी को यह तक ज्ञात नहीं हो पाता है कि उसके हस्ताक्षर से कोर्ट के समक्ष अंग्रेजी में पेश किये जाने वाले आवेदन/याचिका में और कोर्ट की ओर से प्राप्त निर्णयों में आखिर लिखा क्या होता है?

06. ब्राह्मणों की दोहरी गुलामी : इन दुर्भाग्यपूर्ण हालातों में शोषण का शिकार आम भारतीय आजादी के बाद भी लगातार पिसता रहा है। जहॉं एक ओर तो आज भी वह मनुवादी मानसिक गुलामी के कुचक्र में फंसे होने के कारण संस्कृत में संचालित धार्मिक कर्मकाण्डों को मानने को विवश है, वहीं दूसरी ओर आजाद भारत की विधायिका द्वारा थोपे जा रहे अंग्रेजी कानूनों को ढोना उसकी दर्दनाक बाध्यता बन चुकी है। इस प्रकार आम भारतीय आज भी ब्राह्मणों की दोहरी गुलामी झेल रहा है। 

07. हम जानते हैं कि मनुवादी व्यवस्था से ब्राह्मणों का पोषण और हमारा शोषण हो रहा है फिर भी मुनवादी धार्मिक मानसिकता की गुलामी के कारण लगता है, मानो सीधे वैकुण्ठ का टिकिट मिल जायेगा : धर्म की दशा भी कमोबेश ऐसी ही है। हम में से जो भी लोग मनुवादी धर्म-व्यवस्था से शासित होते हैं, उनके सभी धार्मिक अनुष्ठान संस्कृत में सम्पादित किये जाते हैं। जिसके चलते, जिस व्यक्ति के हित के लिये या जिस व्यक्ति की भलाई के लिये ये अनुष्ठान किये जाते हैं, उनको खुद को यह ज्ञात ही नहीं हो पाता कि संस्कृत के मंत्रों और श्‍लोकों में ब्राह्मण देवता द्वारा क्या उच्चारित किया जा रहा है? इसके चलते परिस्थितिजन्य कारणों से विवश होकर मनुवादी मानसिक गुलामी को और कथित धर्म व्यवस्था को अपनाने वाली हजारों सालों की धार्मिक गुलामी आज भी बदस्तूर जारी है। यही नहीं धर्म के नाम पर अन्ध विश्‍वास इस सीमा तक हमारे अवचेतन मन में स्थापित कर दिए गये हैं कि हम रामचरितमानस जैसे आम भाषा में लिखित ग्रंथ में खुद सम्पूर्ण नारी जाती और हमारी अपनी-अपनी कौम के स्वाभिमान और ब्राह्मणों द्वारा पोषित मनुवादी धर्म व्यवस्था को सींचने के लिये लिखी गयी अपमानकारी बातों को भी श्रृद्धापूर्वक पढने/गाने में गौरव की अनुभूति का अहसास करते हैं। जिस श्रृद्धा से इसे पढते और गाते या ब्राह्मणों से गवाते/पढवाते हैं, उसे देखकर तो ऐसा लगता है, मानो रामचरितमानस का पाठ करने/करवाने वालों के लिये सीधे वैकुण्ठ का टिकिट मिल जाने वाला है। जबकि कहीं वैकुण्ठ नाम का कोई धाम या स्थान है भी या नहीं, इस बात का आज तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। यही तो है-वास्तविक मुनवादी मानसिक गुलामी। कितने दु:ख और आश्‍चर्य की बात है कि मुनवादी मानसिक गुलामी का आज हमने स्वेच्छा से वरण किया हुआ है। आज तो हम खुद ही इस कारावास में कैद हैं। हमें पता है कि हमें मनुवादियों ने मानसिक रूप से गुलाम बनाया हुआ है, मगर हम हैं कि इसी में गौरवानुभूति अनुभव करते हैं। जिस प्रकार से अनेक समाजों में स्त्रियां अपने पैरों, हाथों और कमर में कई किलो चांदी के जेवरों को धारण करके भी, उन्हें बंधन, या बेड़ियां नहीं मानकर, इन्हें अपने श्रंगार सूचक मानकर स्वेच्छा से पहनने में गर्भ का अनुभव करती हैं, उसी प्रकार से हम अपनी आत्मा पर मनुवाद की गुलामी को ढोकर भी धार्मिक होने का गर्व करते रहते हैं। इस कारनामें को अंजाम देने वाले मनुवादी कितने चालाक और बुद्धिजीवी हैं? इसका हमको तनिक भी एहसास नहीं होता! जबकि हम जानते हैं कि मनुवादी व्यवस्था से ब्राह्मणों का पोषण और हमारा शोषण हो रहा है।   

08. धर्म की चासनी में लपेटकर थोपे गए मनुवाद की मानसिक गुलामी के कुपरिणामों की जानकारी देना जरूरी : यहॉं पर यह साफ कर देना बहुत जरूरी है कि धर्म हर व्यक्ति का निजी विषय है। प्रत्येक इंसान को अपनी धार्मिक आस्थाओं के अनुसार ईश वन्दना करने का सम्पूर्ण संवैधानिक हक है। जिसका सम्मान करना हम सभी का कर्तव्य है, लेकिन धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने या अंध विश्‍वास को बढावा देने वाली सभी बातों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करना भी हर एक नागरिक का हक है। अत: धर्म की चासनी में लपेटकर थोपे गए मनुवाद की मानसिक गुलामी के कुपरिणामों के बारे में जानकारी देना देश और समाज के विकास के लिये बहुत जरूरी है। 

09. जन्म से मृत्यु तक लोग मनुवादी व्यवस्था के आतंक में जीने को विवश हैं और भारत के करीब 90 फीसदी लोगों का हर रोज, बल्कि हर क्षण राजनैतिक, सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक और शारीरिक शोषण हो रहा है : उपरोक्त विवरण के प्रकाश में इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि हमारे देश और समाज में वर्ग विशेष के हित-साधन में भेदभावपूर्ण और मनमानी व्यवस्था संचालित की जा रही है। मनुवादी कुव्यवस्था की मानसिक गुलामी ने धीमे जहर का स्थान ले लिया है। जो जन्मजातीय विभेद को धार्मिक मान्यता प्रदान करके इंसान-इंसान में एक दूसरे के प्रति घृणा और नफरत का पोषण और समर्थन करता है। जन्म से मृत्यु तक लोग मनुवादी व्यवस्था के आतंक में जीने को विवश हैं। इसके कारण आजादी के इतने दशकों बाद भी भारत के करीब 90 फीसदी लोगों का हर रोज, बल्कि हर क्षण राजनैतिक, सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक और शारीरिक शोषण हो रहा है। आज भी मनुवादी व्यवस्था के मानसिक आतंक के चलते स्त्रियों के हालात भयंकरतम हैं, बद से बदतर हैं। वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में सामाजिक न्याय एवं धार्मिक स्वतन्त्रता के प्रति केवल दिखावटी संवैधानिक जिम्मेदारी नजर आती है। देशभर के आदिवासियों को जबरन उनके प्रकृति पूजक आदिम धर्म से दिग्भ्रमित करके दूसरे धर्मों द्वारा अपने-अपने शिकंज में कैद किया जा रहा है। आदिवासियों की आदिम पहचान को समाप्त करने के लिये उनको वनवासी और गिरिवासी नाम दिये जा रहे हैं। इस सब के चलते वंचित वर्ग और अधिक वंचित होता जा रहा है, जबकि सक्षम वर्ग सम्पन्नता के नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। विशेषकर जिन आदिवासियों के पूर्वजों के नाम से भारत देश का नाम भारत रखा गया, उसी देश के मूल निवासी अर्थात् आदिवासियों के राजनैतिक, सामाजिक,  सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी हालात अत्यन्त दर्दनाक और असहनीय हो गये हैं। नक्सलवाद इन्हीं हालातों का दुष्परिणाम है। 

10. घोषणा : अत: उपरोक्त हालातों में जब कहीं कोई आशा की किरण नजर नहीं आती, तब अन्याय, भेदभाव, शोषण, तिरस्कार, चालबाजियों और ना-ना प्रकार के अत्याचारों से व्यथित होकर हम "हक रक्षक दल" के रूप में संगठित होकर अपने हकों की रक्षा करने को उसी प्रकार से विवश हुए हैं, जिस प्रकार से आर्यों के लगातार अत्याचारों से त्रस्त होकर हमारे पूर्वजों ने अपनी रक्षा और सुरक्षा हेतु अपने बलवान और साहसी लोगों को "रक्षकों" के रूप में तैनात किया और आगे चलकर ये हमारे "रक्ष" सैनिकों के रूप में प्रसिद्ध हुए। जिसके फलस्वरूप भारत में "रक्ष" संस्कृति का जन्म हुआ और कालान्तर में इसी "रक्ष" संस्कृति को आक्रमणकारी आर्यों ने अपमानित करने के दुराशय से तिरस्कार के रूप में "राक्षस" संस्कृति और हमारे "रक्षों" को राक्षस नाम दे दिया। "रक्षों" के सिर में सींग उगा दिये। अपनी अस्मिता की रक्षा करने वाले "रक्षों" को "राक्षस" करार देने वाले आर्यों ने खुद, अपनी स्त्रियों और भारत के लोगों के साथ कितने अन्याय किये, इस ओर ध्यान देने की उन्होंने जरूरत ही नहीं समझी।  

आज के सन्दर्भ में देखें तो काले अंग्रेजों और उनके सहयोगी मनुवादी आतंकियों द्वारा हर क्षेत्र में लगातार जारी-नाइंसाफी, कुटिल विभेद, असमानता और षड्यंत्रों से परेशान होकर जन्मा यह "हक रक्षक दल" सुहृदयतापूर्वक साफ कर देना चाहता है कि-
(1) कथित बौद्धिक श्रेष्ठता का स्वांग रचने वालों का संवैधानिक संस्थानों पर एकाधिकार समाप्त हो : "हक रक्षक दल" चाहता है कि सामाजिक न्याय की स्थायी स्थापना के लिए सभी वर्गों को प्रगति के समान अवसर मिलें और बहुसंख्यक देशवासियों को हेय दृष्ठि से देखने वाले वर्ग विशेष की जन्मजातीय और कथित बौद्धिक श्रेष्ठता का स्वांग तत्काल समाप्त हो तथा सभी संवैधानिक संस्थानों पर से उसका एकाधिकार तुरंत खत्म हो।
(2) जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व मिले : "हक रक्षक दल" चाहता है कि हमारे देश के सभी लोगों को ईमानदारी से सामाजिक न्याय मिले अर्थात् देश के सभी प्रकार के संसाधनों, सभी संवैधानिक संस्थानों व निकायों और सभी उपक्रमों में देश के सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व मिले।
(3) प्रथम नियुक्ति से सर्वोच्च पद तक जनसंख्या के अनुपात में समान प्रतिनिधित्व : "हक रक्षक दल" चाहता है कि सामाजिक न्याय की स्थायी स्थापना के लिए देश की सेना, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सहित सभी सरकारी, अर्द्ध सरकारी और सरकार की ओर से विभिन्न प्रकार की परोक्ष रियायतों (छूटों) और या लाभों को प्राप्त करके चलाये जाने वाले या सेवकों को लोक सेवक की परिभाषा के दायरे में लाया जाये और लोक सेवकों के सभी पदों पर प्रथम नियुक्ति से सर्वोच्च पद तक सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में समान प्रतिनिधित्व प्राप्त करने का अवसर मिले। सरकारी अनुदान प्राप्त करके चलाये जाने वाले सभी गैर सरकारी निकायों, संस्थानों और उपक्रमों के संचालन हेतु नियुक्त
(4) समान प्रतिनिधित्व स्थापित नहीं होने तक सामाजिक न्याय से सम्बंधित किसी भी विषय
की "न्यायिक समीक्षा" नहीं : "हक रक्षक दल" चाहता है कि सामाजिक न्याय की स्थायी स्थापना के लिए सामाजिक न्याय से सम्बंधित किसी भी विषय या कानून या नियम की "न्यायिक समीक्षा" तब तक नहीं हो जब तक कि न्यायपालिका सहित सभी संवैधानिक संस्थानों में सभी वर्गों का समान प्रतिनिधित्व स्थापित ना हो जाये।
(5) विपन्न आर्यों के तीनों वर्णों को उन्हीं के तीनों वर्णों/वर्गों के अंदर ही जनसंख्या के अनुसार विशेष संरक्षण और आरक्षण : आर्यों के तीनों वर्णों का बड़ा तबका उन्हीं के
अग्रणी तबके के कारण विपन्नता का जीवन जीने को विवश है, अत: "हक रक्षक दल" चाहता है कि सामाजिक न्याय की स्थायी स्थापना के लिए आर्थिक रूप से विपन्न आर्यों के तीनों वर्णों (ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय) के वंचित तबके को समाज और देश के विकास की मूल धारा के साथ जोड़ने के लिए उनको उन्हीं के तीनों वर्णों/वर्गों के अंदर ही जनसंख्या के अनुसार अलग-अलग विशेष संरक्षण और आरक्षण प्रदान करने के लिए संवैधानिक प्रावधान किये जावें।
(6) अनुच्छेद 13 (1) के अनुसार असंगत साहित्य के प्रकाशन, विक्रय, पठन और प्रदर्शन पर संवैधानिक प्रतिबंध लगे : "हक रक्षक दल" चाहता है कि सामाजिक न्याय की स्थायी स्थापना के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 (1) के अनुसार असंगत ऐसे समस्त साहित्य के प्रकाशन, विक्रय, पठन और प्रदर्शन पर संवैधानिक प्रतिबंध लगे जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 (3) (क) के अनुसार विधि का प्रभाव रखता हो। इसके उल्लंघन को कठोरतम दंड से दंडनीय अपराध
घोषित किया जावे।     
(7) सामाजिक न्याय की स्थायी स्थापना नहीं हो जाने तक अजा, अजजा एवं अपिव को प्रथम नियुक्ति से सर्वोच्च पद तक पदोन्नतियों में आरक्षण : "हक रक्षक दल" चाहता है कि उक्त उप बिंदु (2) से (6) तक के अनुसार सामाजिक न्याय की स्थायी स्थापना नहीं हो जाने तक-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के सभी लोगों को हर क्षेत्र में लोक सेवकों की सभी प्रकार की नियुक्तियों में और सर्वोच्च पद तक पदोन्नतियों में आरक्षण का संवैधानिक प्रावधान किया जावे।
(8) अजा, अजजा एवं अपिव के बौद्धिक कोटे में चयनित अभ्यर्थियों को आरक्षित कोटे (हिस्से) में समाहित नहीं किया जावे : "हक रक्षक दल" चाहता है कि बौद्धिक कोटे के जरिये मेरिट में चयनित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षित पदों के निर्धारित कोटे (हिस्से) में समाहित नहीं किया जावे।    
(9) धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकार मिले चोट पहुँचाना दंडनीय अपराध हो : "हक रक्षक दल" चाहता है कि देश के हर व्यक्ति को उसकी आस्था और विश्वासों के अनुसार सच्चे अर्थों में धार्मिक आजादी का मौलिक अधिकार संरक्षित हो और धार्मिक आस्था को चोट पहुँचाना अक्षम्य और दंडनीय अपराध हो।
(10) सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह : "हक रक्षक दल" चाहता है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का अहसास हो कि केवल जन्म लेने से कोई व्यक्ति सामाजिक नहीं बन जाता, बल्कि समाज ही व्यक्ति को सामाजिक बनाता है। इसलिए हर व्यक्ति की सामाजिक जिम्मेदारी होती है कि वह समाज के ऋण को चुकाए। जिसका अहसास लोगों में समाप्त होता जा रहा है। इसी कारण से समाज टूट और बिखर रहा है। सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करने के कारण ही समाज में ना-ना प्रकार की बुराईयॉं और अपराध जन्म ले रहे हैं। इस जिम्मेदारी का अहसास करवाना भी  "हक रक्षक दल" का लक्ष्य है।  
अत: "हक रक्षक दल" के हम सभी संस्थापक यह घोषणा करते हैं कि हम सभी भारतवासी हैं। अत: भारत के संविधान में आस्था और विश्वास व्यक्त करते हुए हम ऐसी संवैधानिक और सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के लिये अन्तिम सांस तक सकारात्मक कार्य करेंगे-जिसमें हर भारतवासी को इस बात का अहसास हो कि सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वाह करना समाज और राष्ट्र की एकता, अखण्डता और उन्नति के लिये अत्यन्त जरूरी हैं।

11. आश्वासन : हम "हक रक्षक दल" के संस्थापक यह साफ़ कर देना चाहते हैं कि-
(1) "हक रक्षक दल" तथ्यपरक तथा वैज्ञानिक जानकारी देगा : "हक रक्षक दल" लोगों की धार्मिक आस्था को आहत किये बिना, धर्म के नाम पर किये जा रहे भेदभाव और अंधविश्वासों के बारे में लोगों को तथ्यपरक तथा वैज्ञानिक जानकारी देगा। जिससे धर्म के नाम पर लोगों का शोषण बंद हो सके और लोगों में इतनी समझ पैदा हो सके कि वे धर्म तथा ढकोसलों में अंतर कर सकें।
(2) दूसरों के इशारों पर जीने का मतलब जिंदगी नहीं : हम "हक रक्षक दल" के सभी साथी लोगों को उनके जीवन को जीने में बाधक कारणों के बारे में आवश्यक मानवी जानकारी प्रदान करेंगे और उनको बताएँगे की जिंदगी का मतलब, आजादी के अनुसार जीना है, ना की किसी दूसरे के इशारों पर चल कर जीवन को पल-पल काटना जीवन है।
(3) खुद अपनी मदद करेंगें तो दूसरे साथ देंगे : "हक रक्षक दल", मनुवादियों के हजारों सालों से जारी षड्यन्त्रों और मनुवादियों द्वारा थोपी गयी मानसिक गुलामी के खिलाफ, मनुवाद से पीड़ित केवल उन ही लोगों के लिए ही आगे बढकर सहयोग और काम करने का सकारात्मक इरादा रखता है, जो लोग खुद, अपनी मदद करने के लिए तैयार हैं! क्योंकि जो इंसान खुद अपनी मदद नहीं करता और जो इंसान मानसिक रूप से हार मान लेता है, कहते हैं कि "उसकी मदद तो खुदा भी नहीं कर सकता!"
(4) हर वर्ग के लोगों की समस्याओं का समाधान : "हक रक्षक दल" किसी न किसी माध्यम से हर गाँव और ढाणी तक जायेगा और मेहतर से लेकर ब्राह्मणों तक हर वर्ग के लोगों की समस्या को सुनेगा, समझेगा और न्याय संगत समाधान तलाशेगा।
(5) दोहरी गुलामी से मुक्ति : नाइंसाफी और भेदभाव की चक्की में पीसे जा रहे लोगों को, विशेषकर स्त्रियों और युवा पीढ़ी को मनुवाद की दोहरी गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिये "हक रक्षक दल" हर वह काम करेगा जिसकी दरकार होगी।
(6) "हक रक्षक दल" कभी साथ नहीं छोड़ेगा : अंत में हम आश्वस्त करते हैं कि जो भी साथी सच्चे मन और नेक इरादों के साथ "हक रक्षक दल" से जुड़ेंगे, "हक रक्षक दल" उनका साथ कभी नहीं छोड़ेगा।
12. आह्वान : ‘हक रक्षक दल’ को लाखों-करोड़ों जांबाज फौजियों की दरकार : "हक रक्षक दल" द्वारा शुरू किये गये इस बड़े, बल्कि बहुत बड़े सामाजिक बदलाव के कार्य को मंजिल तक पहुँचाने के लिये मनुवाद की गुलामी के शिकंजे की कैद से मुक्ति पाने की तीव्र लालसा रखने वाले लाखों-करोड़ों जांबाज फौजियों की दरकार है। जिससे कि "हक रक्षक दल" के विचारों और कार्यों को जन-जन तक पहुँचाया जा सके और जितना जल्दी संभव हो "हक रक्षक दल" को सामाजिक जनान्दोलन का रूप दिया जा सके। एक ऐसा जनान्दोलन जिसे आगे बढाने में देश के 90 फीसदी लोगों का भला है।-----29.08.2014

No comments:

Post a Comment