SJS&PBS

स्थापना : 18 अगस्त, 2014


: मकसद :

हमारा मकसद साफ! सभी के साथ इंसाफ!!


: अवधारणा :


सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी!

Social Justice, Secularism And Pay Back to Society-SJS&PBS


: सवाल और जवाब :


1-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति में मूल सामाजिक व्यवधान : मनुवादी आतंकवाद!

2-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति का संवैधानिक समाधान : समान प्रतिनिधित्व।


अर्थात्

समान प्रतिनिधित्व की युक्ति! मनुवादी आतंकवाद से मुक्ति!!


11.8.14

सम्पूर्ण व्यवस्था पर ब्राह्मणों का कब्ज़ा-लायंस हन्नान अंसारी

ब्राह्मण को पता है की, जब तक उसने ''हिन्दू'' नाम की चादर ओढ़ी है तब तक ही ,उसका वर्चस्व भारत पर है , जिस दिन यह चादर खुल गयी कुत्ते की मौत मारा जाएगा , इसीलिए ब्राह्मण दिन रात हिन्दू हिन्दू रटते रहता है,जब की ब्राह्मण यह जानता है की , हिंदू नाम का कोई धर्म नही है ...हिन्दू फ़ारसी का शब्द है । हिन्दू शब्द न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में । 

स्वयं दयानन्द सरस्वती कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है। 1875 में ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की, हिन्दू समाज की नहीं । अनपढ़ ब्राह्मण भी यह बात जानता है । ब्राह्मणो ने स्वयं को हिन्दू कभी नहीं कहा । आज भी वे स्वयं को ब्राह्मण कहते हैं लेकिन सभी शूद्रों को हिन्दू कहते हैं । जब शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे तथा तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे तब
भी पूना के ब्राह्मणो ने उन्हें शूद्र कह राजतिलक से इंकार कर दिया । घूस का लालच देकर ब्राह्मण गागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया । गगाभट्ट ने "गागाभट्टी" लिखा उसमें उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन राजतिलक के दौरान मंत्र "पुराणों" के ही पढे गए वेदों के नहीं। तो शिवाजी को हिन्दू तब नहीं माना।
ब्राह्मणो ने मुगलों से कहा हम हिन्दू नहीं हैं, बल्कि तुम्हारी तरह ही विदेशी हैं परिणामतः सारे हिंदुओं पर जज़िया लगाया गया लेकिन ब्राह्मणो को मुक्त रखा गया ।
1920 में ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार की चर्चा शुरू हुई । ब्रिटेन में भी दलील दी गई कि वयस्क मताधिकार सिर्फ जमींदारों व करदाताओं को दिया जाए । लेकिन लोकतन्त्र की जीत हुई । वयस्क मताधिकार सभी को दिया गया । देर सबेर ब्रिटिश भारत में भी यही होना था । तिलक ने इसका विरोध किया । कहा "तेली, तंबोली , माली, कूणबटो को संसद में जाकर क्या हल चलाना है"। ब्राह्मणो ने सोचा यदि भारत में वयस्क मताधिकार यदि लागू हुआ तो अल्पसंख्यक ब्राह्मण मक्खी की तरह फेंक दिये जाएंगे। अल्पसंख्यक ब्राह्मण कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन सकेंगे । सत्ता बहुसंख्यकों के हाथों में चली जाएगी । तब सभी ब्राह्मणों ने मिलकर 1922 में  "हिन्दू महासभा" का गठन किया । जो ब्राह्मण स्वयं हो हिन्दू मानने कहने को तैयार नहीं थे, वयस्क मताधिकार से विवश हुये । परिणाम सामने है । भारत के प्रत्येक सत्ता के केंद्र पर ब्राह्मणो का कब्जा है । सरकार में ब्राह्मण ,विपक्ष में ब्राह्मण ,कम्युनिस्ट में

ब्राह्मण ,ममता ब्राह्मण ,जयललिता ब्राह्मण 367 एमपी ब्राह्मणो के कब्जों में है । सर्वोच्च न्यायलयों में ब्राह्मणो का कब्जा ,ब्यूरोक्रेसी में ब्राह्मणो का कब्जा ,मीडिया ,पुलिस ,मिलिटरी ,शिक्षा ,आर्थिक सभी जगह ब्राह्मणो का कब्जा है । एक विदेशी गया तो दूसरा विदेशी सत्ता में आ गया । हम अंग्रेजों के पहले ब्राह्मणो के गुलाम थे अंग्रेजों के जाने के बाद भी ब्राह्मणो के गुलाम हैं । यही वह हिन्दू शब्द है जो न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में । फिर भी ब्राह्मण हमें हिन्दू कहते हैं ।

''ब्राह्मण'' ''ब्रह्म'' के मुह से पैदा हुआ है , इसलिए सभी जगहों पर उसका ज्यादा कब्जा है ,ऐसा ब्राह्मण मानते होंगे, पर हम लोग तो यही मानते है की ब्राह्मणों का कब्ज्जा इस देश पर इसलिए है क्यों की वो विदेशी है और जैसा एनी विदेशी मतलब ,हच ,हून,मुग़ल और अंग्रेज यहाँ के लोगो को षड्यंत्रों द्वारा आपस में लड़ाकर कब्ज्जा करते थे ,विदेशी ब्राह्मण भी यहाँ के मूलनिवासियो (ओबीसी SC ST ) के साथ भी वही षड्यंत्र कर कब्ज्जा किये हुए है !!
मूलनिवासी बहुजन पिछड़ी जातियों की असली औकात ........हम सभी जानते हैं कि आज देश की नीति का निर्धारण आई. ए. एस.  अधिकारी ही करते हैं. मोहर मंत्रिमंडल अवश्य लगाता है-

रिपोर्ट के अनुसार सन् 1990 में कुल 2483 आई.ए.एस. अधिकारी देश में थे, जिनमें_
675 ब्राह्मण,
353 कायस्थ,
317 अग्रवाल,
228 बैकवर्ड,
213 राजपूत,
204 अरोड़ा-खत्री,
54 मराठे,
47 मुस्लिम,
37 ईसाई,
298 अनसूचित जनजाति,
31 सिक्ख-जाट,
14 हिन्दू जाट,
6 गुर्जर,
3 सैनी, 
1 रोड,  
1 बिशनोई,
1 बाल्मीकि
कुल - 2483 जिसमें शहरी क्षेत्रों से 2350 तथा ग्रामीण क्षेत्र से मात्र 133 हैं. जहां भारत की 75 प्रतिशत जनसंख्या रहती है. 

केन्द्र में ब्राह्मण जाति की अवस्था सन 1990 में इलाहाबाद पत्रिका अंक 1-11-1990 के पेज नं० 4 के अनुसार इस प्रकार थी -तालिका
पद कुल ब्राह्मणों की संख्या प्रतिशत
गवर्नर-लै०, जनरल पद कुल 27, ब्राह्मणों की संख्या 18 , ब्राह्मणों की संख्या 65%
सचिव पद कुल 24 ब्राह्मणों की संख्या 13 ,56%
मुख्य सचिव पद कुल 26 ब्राह्मणों की संख्या13 ,50%
केन्द्रीय मन्त्री (कैबिनेट) पद कुल 18 ब्राह्मणों की संख्या 9, 50%
राज्यमन्त्री व उपमन्त्री पद कुल 49 ब्राह्मणों की संख्या 34 ,71%
सभी केन्द्रीय मन्त्रालयों में सचिव पद कुल 500 ब्राह्मणों की संख्या 310 ,64.5%
वाइस चांसलरपद कुल 98 ब्राह्मणों की संख्या 50 ,52%
हाईकोर्ट व सह-जज पद कुल 336 ब्राह्मणों की संख्या 169 ,50%
राजदूत-कमिश्नर पद कुल 140 ब्राह्मणों की संख्या 58 ,41.8%
पब्लिक इन्टरप्राइस पद कुल 158 ब्राह्मणों की संख्या 91 ,57%
१) देश के 8676 मठों के मठाधीश सवर्ण : 96 प्रतिशत (इसमें ब्राह्मण 90 प्रतिशत)
ओबीसी : 4 प्रतिशत
एससी : 0 प्रतिशत
एसटी : 0 प्रतिशत स्रोत : डेली मिरर,
२) प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरियों में जातियों का विवरण
सवर्ण : 76.8 प्रतिशत
ओबीसी : 6.9 प्रतिशत
एससी : 11.5 प्रतिशत
एसटी : 4.8 प्रतिशत
स्रोत : वी. नारायण स्वामी, राज्यमंत्री,
प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत सरकार द्वारा संसद में शरद यादव के एक प्रश्न
का उत्तर देते हुए.
३) देश का कोई भी विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. इन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों का जातीय विवरण निम्न प्रकार से है:
सामान्य - 90 प्रतिशत
ओबीसी - 6.9 प्रतिशत
एससी - 3.1 प्रतिशत
एसटी - 0 प्रतिशत

स्रोत : डेली मिरर

४) हमारे शिक्षा संस्थानों में से एक भी दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 8852 शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व निम्न प्रकार है :-
सवर्ण : 7771
ओबीसी : 1081
एससी : 568
एसटी : 268
स्रोत : RTI No. Estt./P10/69-2011/I.I.T. K267Jan
------------Lions Hannan Ansari > Scheduled Castes of India (भारत की अनुसूचित जातियाँ )---------

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