=========29 अक्टूबर के हाई कोर्ट के आदेश के संदर्भ में=========
==========मीणा-मीना विवाद कोर्ट में लड़ना आत्मघाती!========
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मीणा समाज के दूरगामी हित में आज मैं इस बात को स्पष्ट करना जरूरी समझ रहा हूँ कि हाई कोर्ट के जरिये बाहरी और भीतरी मनुवादी हमारे आरक्षण को समाप्त करवा चुके हैं और बचे खुचे को भी बर्बाद करने पर तुले हुए हैं।
सोशल मीडिया के मार्फ़त मिलने वाली जानकारियों से ऐसा लगता है कि अधिकतर मीणाओं का ये मानना है कि-
-श्री जी एस सोमावत जी के नेतृत्व में मीणा-मीना (Meena-Mina) मुद्दे को मीणाओं की ओर से कोर्ट में लड़ा जा रहा है।
-इस कारण श्री सोमावत जी की ओर से और अन्य अनेक लोगों की ओर से आर्थिक सहयोग करने की अपील भी पढने को मिलती रही हैं।
-अनेक लोगों ने बढ़ चढकर आर्थिक सहयोग भी किया है।
जबकि सच ये है कि मीणाओं की ओर हाई कोर्ट में मीणा-मीना (Meena-Mina) मुद्दे पर कोई भी नहीं लड़ रहा है, बल्कि श्री सोमावत जी कोर्ट के समक्ष खुद के संगठन को सम्पूर्ण मीणा समाज का एक मात्र अधिकृत प्रतिनिधि घोषित करके, हाई कोर्ट को मीणाओं की ओर से समानता मंच के आरोपों जवाब और सफाई देते रहे रहे हैं। साथ ही उनकी और से कुछ याचिकाएं भी दायर की गयी हैं।
कुल मिलाकर कोर्ट में श्री सोमावत जी ने जो कुछ भी तथाकथित संघर्ष किया है, उसकी अभी तक की निम्न महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं:-
पहली उपलब्धि : हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि मीणा (Meena) जाति आदिवासी नहीं हैं।
------------जिसके अनुपालन में राजस्थान सरकार ने 30 सितंबर को आदेश जारी किया। मीणा (Meena) जाति का आरक्षण समाप्त किया जा चुका है। मीना (Mina) जाति के नाम से भी जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं।
दूसरी उपलब्धि : 29 अक्टूबर को हाई कोर्ट ने जो दिशानिर्देश दिए हैं, बल्कि सच तो ये है कि श्री सोमावत जी ने जो दिशानिर्देश हाई कोर्ट से मांगे हैं या हाई कोर्ट से दिलवाए हैं, उनके लागू हो जाने के बाद मीणाओं के जाति प्रमाण पत्र बनना शतप्रतिशत बंद हो जाने वाले हैं।
आपको पता है कि श्री सोमावत जी की टीम की ओर से हाई कोर्ट से क्या दिशा निर्देश मांगे गए?
==जानिये : श्री जी एस सोमावत जी की टीम ने रिट दायर करके हाई कोर्ट से लिखित में और मौखिक रूप से निवेदन किया कि हाई कोर्ट राज्य सरकार को निर्देश दे कि----जाति प्रमाण पत्र तहसीलदार के बजाय उप जिला कलेक्टर (SDM) द्वारा बनाये जावें और उप जिला कलेक्टर द्वारा भी आवेदक की बिना सम्पूर्ण जांच पड़ताल के और आवेदक का चालीस-पचास साल का रिकॉर्ड वैरीफाई किये बिना जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाये जावें। हाई कोर्ट ने इस याचिका को मंजूर करके राज्य सरकार को निर्देश जारी किये हैं। जिसको मीणाओं की जीत बताकर कुछ लोग खुशियां मना रहे हैं। इससे पता चलता है कि हम कितने समझदार हैं?
नोट : आज जबकि हम सब अच्छी तरह से जान चुके हैं कि आजादी के बाद से मनुवादियों द्वारा मीणा जाति के रिकॉर्ड में हर स्तर पर लगातार छेड़छाड़ की जाती रही है। कहीं मीणा (Meena) तो कहीं मीना (Mina) ऐसे में मीणाओं का रिकॉर्ड कैसे वैरीफाई होगा? और कैसे जाति प्रमाण पत्र बनेंगे? विशेषकर तब जबकि सामान्य हालातों में ही नहीं बनाये जा रहे हैं? यदि चालीस-पचास साल का रिकॉर्ड वैरीफाई किया जाना अनिवार्य हुआ तो तो यही एक बहाना काफी होगा उप जिला कलेक्टर के लिए। वो महिनों तक टाल सकेगा। तहसीलदार तक तो आसानी से पहुंचा भी जा सकता था। अब उप जिला कलेक्टर के पास पावर होगी!
इन हालातों में, मैं एक बार फिर से सोशल मीडिया के मार्फत सभी मीणाओं को आगाह करना मैं अपना सामाजिक फर्ज समझता हूँ कि-
1-पहले दिन से व्यक्तिगत रूप से मेरा स्पष्ट मत रहा है कि हम कोर्ट में खड़े होकर मीणाओं का नुकसान कर रहे हैं।
2-इस बात को मैं श्री सोमावत जी को भी एक से अधिक बार बता चुका हूँ। वे खुद भी मानते हैं कि जीतना सम्भव नहीं है। इसीलिए मैंने लिखा था कि कोर्ट की लड़ाई हारने के लिए लड़ी जा रही है।
3-कुछ मित्रों ने मेरी इस बात का मजाक उड़ाया और कुछ ने खुलकर मेरी बुराई की।
4-जब हाई कोर्ट ने मीणा जाति का आरक्षण समाप्त कर दिया, तब कुछ लोगों को समझ में आया था। फिर भी कोर्ट में लड़ने का नाटक आज तक क्यों जारी रहा है?
चेतावनी : अभी भी समय है कि हम अपनी नीति में बदलाव लाएं। बाहरी और भीतरी मनुवादियों को पहचानें। कोर्ट में लड़ना आत्मघाती कदम है। इससे अधिक संकेत सार्वजनिक रूप से देना सम्भव नहीं है। फिर से दोहरा दूँ कि-बाहरी और भीतरी मनुवादियों को पहचानें।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-98750-66111
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