SJS&PBS

स्थापना : 18 अगस्त, 2014


: मकसद :

हमारा मकसद साफ! सभी के साथ इंसाफ!!


: अवधारणा :


सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी!

Social Justice, Secularism And Pay Back to Society-SJS&PBS


: सवाल और जवाब :


1-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति में मूल सामाजिक व्यवधान : मनुवादी आतंकवाद!

2-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति का संवैधानिक समाधान : समान प्रतिनिधित्व।


अर्थात्

समान प्रतिनिधित्व की युक्ति! मनुवादी आतंकवाद से मुक्ति!!


10.8.14

चर्चा

आपका मित्रता प्रस्ताव पाकर मुझे खुशी हुई है। इसके लिए मैं आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हैं।

कृपया, कृपा करके  बताने का कष्ट करें कि-
मेरे विचारों में ऐसी कौनसी विशेष बात आपको अच्छी दिखी, जिससे प्रभावित होकर आपने मुझे, अपनी फेसबुक मित्र मंडली में शामिल करके मित्र का सम्मान प्रदान किया?
एक बार फिर से आपका धन्यवाद और आभार!
--आदर सहित आपका अपना
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
प्रमुख-हक रक्षक दल-098750-66111
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3-कृपा करके इतना कष्ट किया जा सकता है कि मेरे द्वारा प्रस्तुत विचारों में ऐसी कौनसी विशेष बात आपको दिखी/लगी, जिसके कारण आपने मुझे, मित्रता का प्रस्ताव प्रस्तुत करके मुझे अपना मित्र बनाया है?

आशा है कि आप अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत कराएँगे।
--आदर सहित आपका अपना
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
प्रमुख-हक रक्षक दल-098750-66111
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दिवाली की शुभकामना

दिवाली का त्यौहार है, जिसे हमारे समाज में सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता रहा है।
मगर इससे ठीक पहले 30 सितम्बर को ही मीणा (MEENA) जाति का आरक्षण खत्म कर दिया गया है। जिसके चलते मीना (Mina) जाति के नाम से भी जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाये जा रहे हैं।

इसके अलावा मीणा जाती के जो लोग पहले से नौकरी कर रहे हैं। यदि उन्होंने हिन्दी में 'मीणा' या अंग्रेजी में MEENA नाम से जाति प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी प्राप्त की है या किसी सरकारी रिकोर्ड में उनकी ओर से जाति के कोलम में कभी भी हिंदी में मीणा या अंग्रेजी में MEENA लिखा गया है। तो ऐसे सभी मीणाओं को भी नौकरी से बाहर करने का षड्यंत्र जारी है। इन हालातों में और मनुवादियों के षड्यंत्रों के चलते आज हम दिवाली की खुशियां मनाने या दिवाली की बधाई लेने और देने की स्थिति में कहाँ रह गए हैं। फिर भी हमें हर हाल में खुश रहना होगा। मजबूत और एकजुट रहना होगा।

अत: मेरी ओर से  और "हक रक्षक दल" परिवार की ओर से इस दिवाली पर आप सभी को यही शुभ कामनाएं है कि सभी कुशल और प्रशन्न रहें। दिवाली के बाद एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए तैयार रहें।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', प्रमुख-हक रक्षक दल-098750-66111

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मीणा- मीना (meena/mina) मुद्दा और "हक रक्षक दल" (Haq Rakshak Dal=HRD) का अभियान

नमस्कार!
हम सब "हक रक्षक दल" के बैनर पर एकजुट होकर मीणा- मीना (meena/mina) मुद्दे वैधानिक और लोकतांत्रिक तरीके से इन्साफ की आवाज उठा रहे हैं। जिसके लिए आप सबका सक्रिय सहयोग, साथ और जरूरीसमर्थन  है। मगर हमारे समाज के कुछ लोग, जिन्हे या तो सच का ज्ञान नहीं है या जिनको सच बताया नहीं गया है या जो राजनैतिक लोगों की अंधभक्ति के चलते सच को देखना या जानना ही नहीं चाहते।

ऐसे लोग मीणा- मीना (meena/mina) मुद्दे को गलत तरीके से हैंडिल कर रहे हैं। यदि इस पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो सारा मीणा समाज भयंकर मुश्किल में फंस जाएगा।

अत: यदि आपको
-मीणा- मीना (meena/mina) पर "हक रक्षक दल" के द्वारा शुरू किये गए जन- जागरण अभियान,
-एक लाख लोगों के हस्ताक्षर करवाकर सरकार को ज्ञापन देने के अभियान और
-मूल मीना (mina) अधिसूचना में मीणा- मीना (meena/mina) संशोधन करवाने की मांग के बारे में की गयी कोशिशों के बारे में कुछ जानकारी है।
तो कृपया बताएं?
जिससे मैं आगे आपके साथ चर्चा जारी कर सकूँ और आपको कुछ जानकारी दे सकूँ?
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', प्रमुख-हक रक्षक दल-098750-66111
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आप से निवेदन है कि निम्न सन्देश की अपनी खुद की फेस बुक वाल पर और अपने दोस्तों की फेस बुक वाल पर जरूर डालें। साथ ही मीणा समाज के हर एक ग्रुप की हर एक पोस्ट के नीचे कमेंट में भी इसे डालकर सहयोग करें :-

1-मीणा- मीना (meena/mina) विवाद 10-12 साल से कागजों पर चलता आ रहा है। मगर सत्ता में रहे हमारे राजनेता और कुछ बड़े क्लास वन अफसरों की ओर से इस मुद्दे का तत्काल समाधान करवाने के बजाय, इसे दबाने का भरसक प्रयास किया गया। इसके साथ-साथ पिछले कुछ समय से आम लोगों को गुमराह भी किया जा रहा है कि हाई कोर्ट में लड़ाई चल रही है। सब ठीक हो जाएगा।

जबकि इसके ठीक विपरीत 30 सितम्बर, 14 का सरकारी पत्र मीणा/meena जाति का आरक्षण समाप्त किया जा चुका है। ये पत्र हाई कोर्ट के एक निर्णय की आड़ में ही जारी किया गया है।

इस प्रकार मीणा/meena जाति के आरक्षण की समाप्ति के लिए मीणा जाति के राजनेता-जनप्रतिनिधि, कुछ बड़े क्लास वन अफसर और कोर्ट में लड़ने की गलत नीति जिम्मेदार है।

इतना होने के बाद भी कुछ क्लास वन अफसर जिन्होंने मीना/Mina नाम से अपने जाति प्रमाण पत्र बनवा रखे हैं, वे फेस बुक पर यहां तक लिख रहे हैं कि अब मीणाओं को आरक्षण की जरूरत ही क्या है?

यदि आगे भी हम राजनेताओं, जाति द्रोही ऐसे क्लास वन अफसरों और ऐसे ही अदूरदर्शी तथा मनुवादी लोगों के इशारों पर नाचने वालों के भरोसे रहे, तो मीणाओं का हाल गुर्जरों से भी बुरा हो जाएगा। मीणा जन जाति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

2-अत: मीणा जाति को यदि वास्तव में आरक्षण बचाना है तो हक रक्षक दल की निम्न नीति का समर्थन करना चाहिए-

(1) आदिवासी मीणा समाज के राजस्थान मूल के सभी लोग क्षेत्र, गोत्र और राजनितिक भेदभाव को भुलाकर एकजुट तुरंत गैर राजनैतिक जन आन्दोलन शुरू करें। जिसकी कमान मीणा- मीना (meena/mina) मुद्दे को सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर जोर शोर से उठाने वाले हक रक्षक दल को सौंपी जावे।

(2) जन आन्दोलन के लिए जन बल पहली जरूरत है। जिसे गाँवों के सभी लोगों को पूर्ण करना होगा। दूसरी धन की जरूरत होगी, जिसके लिए सभी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी आर्थिक सहयोग करें। साथ ही मीणा समाज के सभी सम्पन्न लोगों को भी इसमें अधिक से अधिक योगदान करना होगा।
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क्या अभी भी मीणाओं को सोते रहना चाहिए?
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-मीणा जाति के प्रमाण पत्र धारी मीणाओं का नौकरियों में चयन निरस्त करना शुरू किया जा चुका है।
-नौकरी कर रहे जिन मीणा लोगों के जाति प्रमाण पत्र "मीणा" नाम से हैं, उनको नौकरी से निकलवाने के लिए मनुवादी ताकतें लगातार राज्य और केंद्र सरकार पर दबाव डाल रही हैं और खुफिया सूत्रों के अनुसार अंदरखाने इस मुद्दे पर मीणाओं के खिलाफ निर्णय लिए जाने का षड्यंत्र शुरू हो चुका है।
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आज सम्पूर्ण मीणा जाति पर मनुवादी षड्यंत्रों की मार पड़ी है।
जिन लोगों ने हजारों सालों तक हमें अपने पैरों के नीचे रखा और फिर भी हमारे पूर्वज उनके पैर पूजते रहे।
आज वही लोग सम्पूर्ण मीणा समाज की गर्दन काटने को तत्पर है।
मीणाओं की आरक्षण आधारित सांकेतिक उन्नति से जलने वालों ने हमें 
मीणा और मीना दो जातियों में समाज को बांटने का षड्यंत्र रच डाला।
करीब दस वर्ष से यह मामला कागजों में चल रहा था।
मगर मीणाओं में राजनैतिक नेतृत्व ने  इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

"हक रक्षक दल" का गठन सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए किया गया है।
और आरक्षण का मूल मकसद सामाजिक न्याय की स्थापना करना है।
"हक रक्षक दल" की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर "मीणा-मीना" मुद्दा है।

अगस्त, 14 तक राजनैतिक और प्रशासनिक पदों पर बैठे मीणा "मीणा मीना" मुद्दे को मुद्दा ही नहीं मानते थे।
ऐसे हालातों  में "हक रक्षक दल" ने षड्यंत्रकारी लोगों के खिलाफ खड़े होने का निर्णय लिया और "मीणा-मीना" एक जाति है, इसके समर्थन में गाँव-गाँव में जाकर एक लाख लोगों के हस्ताक्षर करवाने का अभियान चलाया।
सोशल मीडिया पर अभियान चलाया।
जिससे लोगों को इस मुद्दे की गंभीरता का ज्ञान हुआ।
कुछ मीणा जन प्रतिनिधियों और अफसरों ने इस अभियान का विरोध किया।
"हक रक्षक दल" को तथा इसके कार्य कर्ताओं को बदनाम करने हेतु दुष्प्रचार भी किया।
मगर "हक रक्षक दल" की मुहिम चलती रही और मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया गया और मुद्दे की हकीकत सरकार, समाज और मीडिया के सामने प्रस्तुत की गयी।

इस सबका असर हुआ और आज मीणा समाज जाग रहा है।
इस प्रकार "हक रक्षक दल" के अभियान का प्राथमिक चरण-समाज को नींद से जगाने और मीणा मीना मुद्दे की हकीकत उजागर करने का कार्य पूर्ण हो चुका है।
कुछ लोग कोर्ट में भी मुकदमें लड़ रहे हैं।
जबकि "हक रक्षक दल" का पहले दिन से कहना रहा है कि कोर्ट से हम नहीं जीत सकते क्योंकि -
-कोर्ट में मनुवादियों का वर्चस्व है। जहाँ हमें ठीक से सुना तक नहीं जाता।
-इतिहास गवाह है की न्यायपालिका ने आरक्षण को हमेशा कमजोर ही किया है।   
-दुष्परिणाम सबके सामने है-
-हाई कोर्ट बिना मुकदमें का अंतिम निर्णय सुनाये मीणा जाति को जनजाति सूची से बाहर कर चुका है।
-जिसके चलते सरकार ने मीणा जाति के लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाने पर  है।
-जिसकी आड़ में तहसीलदार मीना नाम से भी जाति प्रमाण पत्र नहीं बना हैं।
-मीणा जाति के प्रमाण पत्र धारी मीणाओं का नौकरियों में चयन निरस्त करना शुरू किया जा चुका है।
-नौकरी कर रहे जिन मीणा लोगों के जाति प्रमाण पत्र "मीणा" नाम से हैं, उनको नौकरी से निकलवाने के लिए मनुवादी ताकतें लगातार राज्य और केंद्र सरकार पर दबाव डाल रही हैं और खुफिया सूत्रों के अनुसार अंदरखाने इस मुद्दे पर मीणाओं के खिलाफ निर्णय लिए जाने का षड्यंत्र शुरू हो चुका है।
-फिर भी कोर्ट की चोखट पर माथा टेकने का हमारे लोगों का भोलापन अभी तक जारी है।

अब केवल एक ही उपाय है-गैर राजनैतिक जन आंदोलन और भी।
क्योंकि लोकतंत्र में जनता की एकजुट ताकत के सामने झुकना सत्ता की मैंबूरी है।

अत: हमें याद रखना होगा कि-
========एक साथ आना शुरूआत है।
========एक साथ रहना प्रगति है। और
========एक साथ काम करना सफलता है।

आगे की लड़ाई हम सबको सामूहिक रूप से लड़नी होगी।
आज हम मीणा जिन हालातों में पहुंचा हैं, ऐसे में हमें अपने समाज के लिए एकजुट होकर ईमानदारी से योगदान करना होगा।

ऐसे विकट हालातों में हमारे लिए सारे मनमुटाव भुलाकर एक होने का समय है।
हमें मीणाओं के आलावा दूसरे समुदायों और वर्गों का सहयोग मिल सके लेना चाहिए।
--- डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' प्रमुख-हक रक्षक दल (अनार्यों के हक की आवाज)
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आपके फेसबुक पेज पर आपकी ओर से दिया गया परिचय-विवरण अधूरा और अपूर्ण है।
जब हम इस देश के सम्मानित नागरिक हैं तो कुछ भी छुपाने की कहाँ जरुरत है?
आपसे आग्रह है कि अपना परिचय और जरूरी विवरण फेसबुक पर शीघ्रता से पोस्ट करें।
जिससे अनावश्यक आपके बारे में कोई सन्देश नहीं हो।
आशा करता हूँ कि आप मेरी इस बात को अन्यथा नहीं समझेंगे।

आपका शुभेच्छु!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ प्रमुख-हक रक्षक दल
(‘हक रक्षक दल’-अनार्यों के हक की आवाज)
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आपकी ओर से मित्रता प्रस्ताव मिला है मगर आपके फेसबुक पेज पर आपने अपने बारे में परिचयात्मक जानकारी नहीं डाली हुई हैं। क्षमा करें लोगों ने फर्जी पेज भी बना रखे हैं। ऐसे में संदेह होना स्वाभावुक है। आपसे आग्रह है कि आप इसे फेसबुक पर ही फुल फिल करें।
आशा करता हूँ कि आप मेरी इस बात को अन्यथा नहीं समझेंगे।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ प्रमुख-हक रक्षक दल
(‘हक रक्षक दल’-अनार्यों के हक की आवाज)
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HRD=Haq Rakshak Dal

अर्थात="हक़ रक्षक दल"-HRD

अर्थात-हमारे, आपके और सभी वंचितों के सामाजिक, कानूनी और संवैधानिक हक़ों/अधिकारों की रक्षार्थ स्थापित एक सामाजिक संघठन है="हक़ रक्षक दल"

जिसका मानना है कि-समान भागीदारी के बिना कैसी स्वतंत्रता? अर्थात

ये संगठन मनुवादियों के षड्यंत्रों और शोषण के खिलाफ, मनुवाद से पीड़ित उन सभी सभी लोगों के लिए काम करने का सकारात्मक इरादा रखता है, जो खुद भी, खुद अपनी मदद करने के लिए तैयार हैं!
क्योंकि जो इंसान खुद अपनी मदद नहीं करता और हर मन लेता है, इसकी कोई भी मदद नहीं कर सकता !
 क्या आप भी इस सामाजिक जिम्मदारी के निर्वाह करने में भागीदार बनना पसंद करेंगे?
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भाई विक्रम सिंह मीणा जी,

आपने बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। इसके लिए आपका धन्यवाद।  

आर्यों द्वारा "राक्षस" शब्द का प्रयोग इस देश के मूल निवासी अनार्यों के लिए किया गया था। 
अब ये आप/हम पर निर्भर करता है कि-हम अपने आप को आर्य या अनार्य किनका वंशज मानते हैं। 
कम से कम मैं तो खुद को अनार्य पूर्वजों का वंशज मानता हूँ, लेकिन अपनी "आदिवासी" या "मीणा" कौम को "राक्षस" नहीं मानता।

इस विषय पर अन्य विद्वान भाइयों के रचनात्मक विचार आने दो। मैं अभी अन्य किसी महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त हूँ, चर्चा शुरू हुई तो फिर से जुड़ूंगा और यदि कुतर्क पेश किये गए या बहस शुरू हो गयी तो मैं दूर रहूँगा। क्योंकि कुतर्क या बहस हमारी उपयोगी अवधारणाओं को भी गलत दिशा में मोड़ देती हैं। कृपया एडमिन हो सके तो इस और ध्यान दें। 
आपका अपना साथी 
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'  
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एडमिन महोदय भाई विक्रम सिंह मीणा जी, ने एक पोस्ट डाली थी की "क्या हम राक्षस हैं?" क्या उस महत्वपूर्ण पोस्ट/विषय को बिना चर्चा के हटा दिया गया है?



कोई भी हिंदू या मुसलमान सनातन धर्म में सेंध नहीं मार सकता। सभी ये संकल्प लें कि वे शास्त्रों से जुड़े देवी-देवताओं की ही पूजा करेंगे। अप्रमाणिक चरित्रों की नहीं। साईं भगवान नहीं हैं।-स्वरूपानंद सरस्वती, शंकराचार्य ज्योतिष व द्वारिकापीठ

लिखने की शुरुआत कैसे करें? अर्थात लेखक कैसे बनें?
पहला कदम : जब हम इंटरनेट पर किसी लेख, रचना, पोस्ट या किसी की टिप्पणी को पढ़ते हैं और यदि हमें वो अच्छी लगती है तो सामान्यत: हम उसे लाइक करके आगे निकल जाते हैं या पसंद नहीं होती है तो कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, क्योंकि सभी जगह अनलाइक का विकल्प नहीं होता है। लेकिन जहाँ अनलाइक/नापसंद का विकल्प होता है तो अनलाइक करके आगे बढ़ जाते हैं। अच्छे पढ़े लिखे भी अधिकतर यही करते देखे जाते हैं। मगर क्या कभी हम यह सोचते हैं कि हम में से अधिकतर की पसंद या नापसंद एक ही वजह से नहीं होती है। सबका सोचने का ढंग पृथक-पृथक होता है। ऐसे में हम जिस पोस्ट या टिप्पणी पर अपनी लाइक या अनलाइक क्लिक करते हैं, उससे पोस्ट/टिप्पणी के लेखक को हमारी लाइक या अनलाइक के कारणों का पता नहीं चल पाटा है। ऐसे में हमारे द्वारा लाइक/अनलाइक करने का मूल मकसद हम खुद ही समाप्त कर देते हैं। फिर हम किस कारण लाइक/अनलाइक करते रहते हैं? क्या दूसरों की देखादेखी और भेड़चाल में भीड़ का हिस्सा बनने के लिए। वास्तव में यदि हम शिक्षित हैं तो किसी भी पोस्ट/टिप्पणी को पढ़ने के बाद उस विषय पर केवल लाइक/अनलाइक करके नहीं छोड़ें, बल्कि लाइक/अनलाइक करने के कारणों को टिप्पणी के रूप में लिखें। यही लेखक बनने का पहला प्रवेश द्वार है। हम प्रवेश करने से डरते क्यों हैं? आज ही निसंकोच प्रवेश करें? 
:------डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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डॉ पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
प्रमुख-हक़ रक्षक दल-
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भाई श्री अमित कांवट जी

आपने "मनुवादी" शब्द का प्रयोग किया-धन्यवाद।
आपने हक़ रक्षक दल के हस्ताक्षर अभियान का समर्थन किया-धन्यवाद।

मगर-----आपकी टिप्पणी से ऐसा लगता है कि----

----आप हक़ रक्षक दल के हस्ताक्षर अभियान का समर्थन करते कम दिख रहे हैं,
----बल्कि इस में कमियां निकलते और सवाल उठाते अवश्य नजर आ रहे हैं।

भाई श्री अमित कांवट जी मनुवादी सवाल खड़े करें या न करें मगर आप सवाल खड़े कर के इस कमी को पूरी जरूर कर रहे हैं!

शुक्रिया इस मेहरबानी के लिए।

डॉ पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
प्रमुख-हक़ रक्षक दल-9875066111
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हक़ रक्षक दल की मुहिम को पसंद करने, समर्थन देने और उत्साह वर्धन करने वाले सभी मित्रों को
हक़ रक्षक दल के दस राज्यों में सेवारत सभी जुझारू "रक्षकों" की ओर से हार्दिक आभार और धन्यवाद।
 
डॉ पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
प्रमुख-हक़ रक्षक दल-0987506611
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मित्रो,

हम दौड़ना नहीं चाहते, लेकिन हमारी निद्रा टूट चुकी है।

हमें बेशक सोच समझकर कदम उठाने होंगे, लेकिन हमारे कदमों की आहट और पदचिह्न अमिट होने चाहिये।

आप सभी से बातचीत और चर्चा का सिलसिला इसी सोच और विश्‍वास के साथ शुरू कर रहा हूँ।

आशा है कि आप सभी पूरी गम्भीरता और संजीदगी का परिचय देंगे।

हमें अपना लक्ष्य हासिल करने के लिये बौद्धिक और मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है।

क्या आप सब इसके लिये पूरी तरह से तैयार हैं।

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, 17.17, 19.08.2014
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‘हक रक्षक दल’ के समर्पित और अनुशासित सिपाही के रूप में हमें निम्न तीन संवैधानिक बातों को ठीक के सझकर, इन्हें अपने दैनिक व्यवहार और आचरण का हिस्सा बनाने का प्रयास करना चाहिये:-

1. सामाजिक न्याय।
2. धर्मनिरपेक्षता। एवं
3. सामाजिक जिम्मेदारी।

नोट : जिन बन्धुओं को उक्त संवैधानिक अवधारणाओं का सही सही ज्ञान नहीं है, उन्हें सही-सही ज्ञान अर्जित करना चाहिये। 

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, 20.32, 19.08.2014
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भाइयो, ऐसा लगता है कि मनुवादी ताकतें तो हमें तंग, परेशान और प्रताड़ित कर ही रही हैं, लेकिन हमारे कुछ भाई न जाने क्यों-
-उनको समझ नहीं पा रहे हैं?
-इतनी सी बात को नहीं समझना चाहते कि बोलियों से भाषाओँ के शब्दकोषों में लगातर वृद्धि होती रहती है। इसी प्रकार उर्दू, ब्रज सहित अनेक भाषों के मिश्रण से हिंदी लगातार समृद्ध होती जा रही है। इसलिए "मीणा, मीना, मैंना, मैंणा, मेना, मैना, मेंना, मैंना एक ही जाति के हिन्दी नाम हैं"
-जिस प्रकार से बोलियों में भिन्नता के कारण ओबीसी की सूची में एक ही जाती को बोलियों के अनुसार अनेक नामों से शामिल किया गया है , जैसे- (Raika, Rebari(Debasi), (Gadia-Lohar, Gadola), (Gadaria(Gadri), Ghoshi (Gvala), Gaddi, Gayri) , (Nai, Sain, Baid Nai), Mer (Mehrat-Kathat, Mehrat-Ghodat, Cheeta), (Kachhi, Kachhi Kushwaha, Kachhi-Shakya), (Sakka-Bhishti, Saqqa-Bhishti, Bhishti-Abbasi), (Faqir/ Faquir), (Badhai, Jangid, Khati, Kharadi Suthar, Tarkhan), उसी तर्ज पर हमारी भी मांग है कि---मीणा जाती को भी-

"मीणा, मीना, मैंना, मैंणा, मेना, मैना, मेंना, मैंना" नामों से जनजातियों की सूची में शामिल किया जाये।

-भाइयो आप से निवेदन है कि या तो आप लोग खुद कुछ करो या फिर दूसरे कुछ कर रहें हैं, उनको यदि सहयोग नहीं कर सकते तो कम से कम सामान्य लोगों को दिग्भ्रमित तो मत करो।
आपकी मीणा समाज पर बहुत बड़ी कृपा होगी।

 धन्यवाद!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
प्रमुख-"हक रक्षक दल" (Chief-HRD)
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ये पंक्ति आप "किशन सर्वप्रिय" को सम्बोधित है।
एक बार इस नजरिये से भी पढ़कर तो देखिये।
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"हमसे इतनी बेरुखी किस लिए,
दर्द-ए-सितम हमने भी तो सहे।"
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-यह पंक्ति उन सभी आम मीणा भाइयों का
दर्द भी व्यक्त कर रही है,
जिसको मनुवादियों द्वारा प्रायोजित -
"मीणा/मीना " विवाद के चलते
जाती प्रमाण पत्र तक नहीं मिल रहा हैं
और कवि हृदय, लेकिन किन्हीं अप्रकट कारणों से
ऐसे परेशान मीणाओं के प्रति
असंवेदनशील "किशन सर्वप्रिय"
उनको न्याय दिलाने में सहयोगी के बजाय
फेसबुक पर विरोध में टिप्पणी करते हैं।

याद रखो अफसर बनने से कोई भी इंसान
"अमानव या महामानव" नहीं बन जाता है।

मेरी ओर ये पंक्ति आपको सम्बोधित है।
एक बार आप मेरे इस नजरिये से भी
पढ़कर तो देखिये। हो सकता है आपके दिल के
दर्द में आपको मीणाओं का दर्द महसूस होने लगे।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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एम्स नई दिल्ली में अनुसूचित जनजाति के चिकित्सकों को पद के अयोग्य मानकर उनकी सीटें रिक्त रख दी गई हैं। ऐसा पूरे भारत में राज्य सरकारें भी करती रही हैं। कोई व्यक्ति विशेष कैसे तय कर सकता है कि अच्छे अंक अच्चा अनुभव और शोधपत्र प्रकाशित होने के बावजूद भी छात्र अयोग्य है।
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भाई भेद न्यायालय नहीं कर रहे, बल्कि न्यायालयों में बैठे न्यायमूर्तियों के मनोमस्तिष्क (अवचेतन मन) में विद्यमान मनुवादी मानसिकता विभेद करवा रही है। आज भी राजस्थान हाई कोर्ट के मुख्य दरवाजे पर मनु की मूर्ती स्थापित है! वो किसलिए? स्वाभाविक है कि मनु के आदर्शों और आदेशों का अनुसरण करने के लिए ही ना

और

मनु महाराज कहते हैं कि-

ब्राह्मण को अन्य सभी वर्णों का धन, स्त्री और सम्पत्ती छीनने का जन्मजात हक़ है।

ब्राह्मण किसी अन्य वर्ण के व्यक्ति की हत्या कर दे तो उस ब्राह्मण को कुछ दान करने से इस छोटे से पाप से मुक्ति मिल जाती है,

लेकिन यदि कोई अनार्य (ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य) को छोड़कर शेष अर्थात अनार्य अर्थात शूद्र या आदिवासी (आज के सन्दर्भ में कहें तो-SC/ST/OBC) द्वारा ब्राह्मण की हत्या करना तो दूर यदि एक तिनके से भी ब्राह्मण को मारे या मारने की चेष्टा भी करे तो उसे मृत्यु दंड दिया जाये

और मनु महाराज फरमाते हैं कि ब्राह्मण को तिनके से भी मारने की चेष्टा करने वाला अनार्य इक्कीस जन्मों तक कुत्ते बिल्ली आदि पाप योनियों में जन्म लेगा।

भाई विश्राम जी मैंने इसी वर्ष मार्च में एक लेख लिखा था "मनुवादियों ने संविधान को मजाक बनाया!"
लिंक दे रहा हूँ, हो सके तो पढ़ने का कष्ट करें।

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हर बरसाती मौसम में सामान्यत: पीलिया के रोगी अधिक देखे जा सकते हैं। इन दिनों भी पीलिया (Jaundice) रोग फैला हुआ है। इस वजह से अस्पतालों में और अंध विश्वास के चलते झाड़-फूँक व गंडा ताबीज करने वालों के यहाँ, पीलिया के रोगियों की लाइन लगी देखी जा सकती है।

मैं एक दशक से अधिक समय से पीलिया की दवाई मुफ्त में सेवार्थ दे रहा हूँ और हजारों रोगी स्वस्थ हो चुके हैं।

मेरे पास हर दिन रोगी दवाई लेने आ रहे हैं।

जनहित में यह जानकारी जारी की जा रही है :-

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मित्रो इमेज को एडिट करते समय असावधानीवश पोस्ट और सभी टिप्पणियां डिलीट हो गयी, जिसके लिए मुझे खेद है। आशा है पोस्ट को पसंद कर चुके और टिप्पणी कर चुके साथी अन्यथा नहीं लेंगे।

-------डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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भाई श्री विक्रम जी आपकी बात ऊपरी तौर पर दिखने में, पढ़ने में और लिखने में सही लगती है कि-

"पूरा देश हमारी न्याय प्रणाली पर विश्वास एवं आस्था रखता है और हमें भी रखना चाहिए!"

मगर क्या आपको नहीं पता कि----

1-न्यायपालिका द्वारा संविधान लागू होने से अभी तक लगातार आरक्षण व्यवस्था को कमजोर करने वाले निर्णय सुनाये गए हैं।
2-न्यायपालिका के अन्यायपूर्ण निर्णयों को सुधारने के लिए संसद को प्रथम संशोधन से लेकर इक्यासीवें में संविधान संशोधन तक लगातार संविधान में संशोधन करने पड़े हैं।
3-इसके बाद भी आरक्षण व्यवस्था को आज तक कमजोर किया जा रहा है।
4-जो न्यायपालिका दलित भंवरी बलात्कार मामले में सरेआम निर्णय सुनाती है कि उच्च जाती के भद्र पुरुष एक दलित महिला के साथ बलात्कार करेंगे, इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता? और दोषियों को दोषमुक्त कर दिया जाता है।
5-लोक सेवकों द्वारा हड़ताल करने को जो न्यायपालिका असंवैधानिक करार देती है, वही न्याय पालिका उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षितों को आरक्षण देने के केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ हड़ताल करने वाले सवर्ण लोक सेवकों की हड़ताल को न मात्र जायज ठहराती है, बल्कि केंद्र सरकार को निर्देश देती है कि न्याय की मांग करने वालों (आरक्षितों के हकों का विरोध सुप्रीम कोर्ट की नज़र में न्याय की मांग है) के प्रति सरकार हृदयहीन नहीं हो सकती।
6-आरक्षित वर्ग के एक व्यक्ति का मेडीकल बीमा होने के बाद भी बीमा कम्पनी द्वारा इलाज का खर्च नहीं दिए जाने के कारण उसकी मौत हो जाती है, जिसके लिए न्यायपालिका बीमा कम्पनी को दोषी मानती है, लेकिन मृतक की विधवा को मुआवजा मात्र पचास हजार रूपये। जबकि एक सवर्ण को  भोजन परोसने में विलम्ब हो जाने के कारण उसकी प्लेन छूट जाती है तो न्यायपालिका उसको एक लाख का मुआवजा दिलाती है।
7-बिलासपुर जेल में बंद हत्या के कैदियों में से नब्बे फीसदी आदिवासियों दोषी ठहराया जाता है।  जबकी नब्बे फीसदी सवर्णों को निर्दोष करार डाकर जेल से रिहा कर दिया जाता है।    
8-हमारे खिलाफ दायर याचिकाओं पर हमारे खिलाफ बहुत जल्दी निर्णय सुना दिए जाते हैं, जबकि हमारी और से दायर याचिकाओं में तुलनात्मक रूप से कई गुना अधिक समय लिया जाता है और लंबे विलम्ब के बाद ज्यादातर मामलों में निर्णय हमारे खिलाफ सुनाये जाते हैं!
9-यदि न्यायपालिका न्याय करती होती तो सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व जज और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक जज कभी के जेल में होते।
10-सड़सठ फीसदी जजों की नियुक्ति न्यायपालिका द्वारा सीधे की जाती है, लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट के इतिहास में आज तक न्यायपालिका को एक भी ऐसा योग्य दलित आदिवासी व्यक्ति नहीं मिला जिसे जज बनाया जा सकता?

11-------------------भाइयो यदि कोर्ट से ही न्याय मिलता तो न्याय व्यवस्था के स्तम्भ माने जाने वाले जयपुर के वकील कोर्ट में रिट लगाकर न्याय प्राप्त कर लेते, लेकिन उनको पता है कि कोर्ट से न्याय नहीं केवल निर्णय मिलते हैं। जिनसे वकीलों की रोजी रोटी तो चल सकती है, मगर उनको न्याय नहीं मिल सकता। यही कारण है कि जयपुर के वकील हाई कोर्ट में याचिका दायर करके न्याय की मांग करने के बजाय सड़कों पर उतर कर न्याय मांग रहे हैं।

इसके बाद भी न्यायपालिका के न्याय पर अति आत्मविश्वास रखना है तो मुझे कुछ नहीं कहना।


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
प्रमुख - हक़ रक्षक दल-098750-66111
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सुनियोजित षड्यंत्रों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना यदि
अराजकता है तो मीणाओं को न्याय की उम्मीद नहीं करनी चाहिए!
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भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर-
"जब हमें लगे कि संवैधानिक उपाय हमारे लिए नाकाफी बना दिए गए हैं, जो अक्सर हमारे मामलों में बना दिए जाते हैं, तब असंवैधानिक उपाय भी उचित जान पड़ते हैं। परंतु न्याय प्राप्ति हेतु हमें आंदोलन और सड़कों पर उतरने के लिए विवश करने वाली शोषक और सामंती ताकतें हमारे इस मार्ग को अराजकता कहकर हमें डराने और कुचलने की कुचेष्टा करेंगी! जिसके सामने डटे रहने पर ही न्याय की आशा की जा सकती है!
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

भारत में इसे जिस तरह से अन्याय के विरोध में उठने वाली आम जनता की आवाज को शोषक और सामंती प्रवृत्ति के मनुवादी लोगों द्वारा अराजकता बतलाकर, कानून और संविधान का अपमान बतलाकर विलाप किया जाता रहा हैं उसके कारण दूसरे हैं। वास्तव में सत्ता पर काबिज लोग नहीं चाहते कि आम लोगों में इतनी ताकत पैदा हो कि आम आदमी सवाल करने की हिम्मत जुटा सके! इसलिए कुछ खाश लोग यानि सत्ता पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काबिज लोग कानून और न्याय व्यवस्था को किसी भी कीमत पर कायम रखने के नाम पर आम लोगों को अन्याय तथा शोषण को चुपचाप सहते रहने के लिए लच्छेदार प्रवचन देते रहते हैं। इतना ही नहीं बल्कि अराजकता के नाम पर लोगों को डराया और धमकाया भी जाता है।

मीणाओं की समस्याओं पर चुप बैठे जनप्रतिनिधियों ने मनुवादियों की इसी कूटनीति का उपयोग करते हुए अपने कुछ अंध भक्तों को इसी काम में लगा रखा है।  

जबकि कड़वा सच ये है कि दुर्भाग्य से मनुवादियों और काले अंग्रेजों द्वारा संचालित हमारी न्यायपालिका सहित तकरीबन सभी  संवैधानिक संस्थान ऐसी ही स्तिथि में आ गए हैं। जहां न्याय भी मैनेज किया जाने लगा है। न्याय बिकने लगा है! विधायिका में सवाल पूछने के लिए रूपये लिए जाते हैं या अपने या अपने परिवार के व्यावसायिक हितों के लिए सवाल पूछे जाते हैं !

जिसे खुद न्याय पालिका द्वारा भी अनेकों बार स्वीकारा जा चुका  है। मनुवादी, पूंजीपति और काले अंग्रेज अफसरशाही के बल पर शोषण की व्यवस्था को नियम-कायदे कानून की आड़ में किसी भी कीमत पर बनाए रखना चाहते हैं। उसमें जरा से भी परिवर्तन की मांग या परिवर्तन की आहट या अन्याय का जरा सा विरोध भी ऐसे लोगों को "अराजकता" की स्थिति लगती है। जबकि ऐसे लोगों को सच्चे अर्थों में ये तक पता नहीं होता कि अराजकता कहते किसे हैं?

अराजकता के मायने :
------"अराजकता (anarchy) एक आदर्श है जिसका सिद्धांत अराजकतावाद (Anarchism) है। अराजकतावाद राज्य की सधाक्ति को न्यूनतम या समाप्त कर के व्यक्तियों, समूहों और राष्ट्रों के बीच स्वतंत्र और सहज सहयोग द्वारा समस्त मानवीय संबंधों में न्याय स्थापित करने के प्रयत्नों का सिद्धांत है। अराजकतावाद के अनुसार कार्यस्वातंत्र्य जीवन का गत्यात्मक नियम है और इसीलिए उसका मंतव्य है कि सामाजिक संगठन व्यक्तियों के कार्य स्वातंत्र्य के लिए अधिकतम अवसर प्रदान करे। मानवीय प्रकृति में आत्मनियमन की ऐसी शक्ति है जो बाह्य नियंत्रण से मुक्त रहने पर सहज ही सुव्यवस्था स्थापित कर सकती है। मनुष्य पर अनुशासन का आरोपण ही सामाजिक और नैतिक बुराइयों का जनक है। इसलिए हिंसा पर आश्रित राज्य तथा उसकी अन्य संस्थाएँ इन बुराइयों को दूर नहीं कर सकतीं। मनुष्य स्वभावत: अच्छा है, किंतु ये संस्थाएँ मनुष्य को भ्रष्ट कर देती हैं। बाह्य नियंत्रण से मुक्त, वास्तविक स्वतंत्रता का सहयोगी सामूहिक जीवन प्रमुख रीति से छोटे समूहों से संभव है; इसलिए सामाजिक संगठन का आदर्श हैं।"

------डॉ. आंबेडकर अराजकता बारे में कहते हैं कि --".....प्रजातंत्र को केवल नाम के लिए नहीं बल्कि वास्तव में बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए? मेरी समझ से, हमें सबसे पहला काम यह करना चाहिए कि अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए संभव हो तो संवैधानिक उपायों का सहारा लेना चाहिए। लेकिन इसका अर्थ यह कतई भी नहीं है कि दूसरे लोग हमारे खिलाफ संविधान की ताकत का दुरूपयोग करते हैं तो हमें हमें सड़कों पर उतर कर  सविनय अवज्ञा आंदोलन, विरोध, असहयोग और सत्याग्रह के तरीके छोड़ने होंगे! यह और कि जब हमें लगे कि संवैधानिक उपाय हमारे लिए नाकाफी बना दिए गए हैं, जो अक्सर हमारे मामलों में बना दिए जाते हैं, तब असंवैधानिक उपाय भी उचित जान पड़ते हैं। परंतु न्याय प्राप्ति हेतु हमें आंदोलन और सड़कों पर उतरने के लिए विवश करने वाली शोषक और सामंती ताकतें हमारे इस मार्ग को अराजकता कहकर हमें डराने और कुचलने की कुचेष्टा करेंगी! जिसके सामने डटे रहने पर ही न्याय की आशा की जा सकती है!.... "

संस्कृत और अंग्रेजी के बल पर आम लोगों को न्याय की आवाज़ को दबाने को कटिबद्ध महान लोग  अराजकता या अन्य किसी भी नाम से लोग़ों को फोबियाग्रत (भयाक्रांत) करने वाले लोगों की आम जनता से इतनी दूरी है कि इन्हें पता ही नहीं कि जनता किस हाल में जी रही है? वे जिस वातानुकूलित दुनिया में रहते हैं-वहाँ से वे जनरल रेल डिब्बे की यात्रा, बस में चढती भीड़ या राशन की दुकान के सामने राशन लेने के लिए मारा-मारी को ही ये लोग अराजक भीड़ मान कर बेहोश हो कर गिर पड़ेंगे।

दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों के नाम के साथ कुछ भी लिखा हो उनको जाती प्रमाण पात्र तत्काल बना दिए जाते हैं , जबकि हमारे जिन आवेदकों के नाम के साथ मीणा लिखा है उन मीणाओं के लड़कों के "मीना" जाती प्रमाण पत्र नहीं बनाने वाले तहसीलदार हमारे ही लोगों को देवपुरुष नज़र आते हैं और इस खुली अन्याय की चुनौती के खिलाफ लोकतान्त्रिक आवाज उठाने के आह्वान को ये लोग अराजकता कहकर दबाना चाहते हैं? आखिर क्यों? क्यों इस आवाज को नियम कायदे और कानून से दबा देना चाहते हैं?

यह विरोध की आवाज ही तो लोकत्रंत की असली शक्ति है! या कहिए इस आवाज को लोकत्रंत ने ही इतनी शक्ति दी है कि वह सुनी जाये और जिस समाज की पहचान (आरक्षण) के नाम से आप आज समाज का सरकार में प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रशासन में पदस्थ हैं, वहां आपका अनिवार्य संवैधानिक कर्त्तव्य है कि सामजिक न्याय की स्थापना के लिए अपने पद के साथ न्याय करते हुए आप अन्याय की शिकार अपनी कौम का साथ दें! बजाय इसके आप ही अन्याय के खिलाफ न्याय की आवाज़ को अराजक बतलाकर कुचलना और दबाना चाहते हो? यही नहीं बल्कि लोगों को न्याय के लिए लोकतान्त्रिक तरीके से लड़ने से रोकने के लिए डराना भी चाहते हो!

संविधान द्वारा प्रदात्त आरक्षण के खिलाफ नंगा नाच करने वाले आपको अराजक नजर नहीं आते? हमारे ही आदिवासी भाइयों को हमारे विरुद्ध भड़काने वाले अराजक नजर नहीं आते? आखिर मकसद क्या है? लोगों को अन्याय के समक्ष दंडवत प्रणाम करने को प्रेरित किया जाये?  

हम सब को ध्यान देना चाहिए जब हम ऐसी आवाजों पर ध्यान नहीं देते हैं! अनसुना करते हैं! अराजक कह कर दबा देते हैं! तब यही आवाजें कुछ समय बाद विस्फोट के रूप में सुनाई देती हैं! अच्छा हो समय रहते इस लोकतान्त्रिक देश में हर छोटी बड़ी आवाज को ध्यान से सुना जाये!
---डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-प्रमुख - हक़ रक्षक दल- 098750-66111
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मीणा-मीना विवाद पर न्यायपलिका से न्याय की कितनी उम्मीद  
न्यायपालिका और कार्यपालिका पर एक विधि विशेषज्ञ के विचार

भाई श्री विक्रम जी का कहना है कि- 

A-"पूरा देश हमारी न्याय प्रणाली पर विश्वास एवं आस्था रखता है और हमें भी रखना चाहिए!"

B-आप क्या चाहते है निरंकुश जी? हम भी विद्रोह एवं अराजकता फैलाने वाले कार्य कर करना शुरू करें? आपको ना न्यायपालिका पर विश्वास है और ना ही कार्यपालिका पर! आपका उद्देश्य आख़िर क्या है?

आपके उक्त दोनों सवालों और आपकी जैसी सोच रखने वालों की संकाओं के उत्तर निम्न विवरण को पढ़ने के बाद मिल जाने चाहिए। बशर्ते आप बिना पूर्वाग्रह के इसे पढ़ेंगे?

=========="जनतांत्रिक अधिकार" नामक ब्लॉग के लेखक श्री मनी राम शर्मा (ब्राह्मण) जो एक विद्वान अधिवक्ता है और बहुत लम्बे समय से सूचना अधिकार पर काम करते हुए जिन्होंने व्यवस्था में अनेक परिवर्तन करवाये हैं। श्री मनी राम शर्मा जी सुप्रसिद्ध लेखक और कानूनविद के रूप में जाने जाते हैं :--- 

==1== इन्होंने "बलात्कार की सजा क्या और कैसे ?" शीर्षक से लेख में लिखा है कि-------- 

1---------"पद ग्रहण करते समय न्यायाधीश शपथ लेते हैं कि वे राग, द्वेष व भयमुक्त होकर कार्य करेंगे| न्यायाधीश ऐसी धातु से बने होने चाहिए जो किसी भी तापमान पर नहीं पिघले| किन्तु आज से लगभग बीस वर्ष पूर्व एक छोटे स्तर की सरकारी कर्मचारी भंवरी देवी ने बाल विवाह की रिपोर्ट की और फिर भी बाल विवाह संपन्न हो गया| बदले की आग से धधकते विरोधी लोगों ने उसके पति के सामने ही भंवरी देवी से सामूहिक बलात्कार किया और सत्र न्यायाधीश ने यह कहते हुए सभी बलात्कारियों को मुक्त कर दिया कि सामान्यतया बलात्कार किशोरों द्वारा किया जाता है और चूँकि अभियुक्त मध्यम उम्र के हैं इसलिए उन्होंने बलात्कार नहीं किया होगा| इतना ही नहीं न्यायाधीश ने आगे लिखा कि एक ऊँची जाति का व्यक्ति नीची जाति की औरत से बलात्कार कर अपने आपको अपवित्र नहीं कर सकता|"

2-----------"न्यायाधीशों ने अपनी शपथ, यदि उसका कोई मूल्य हो तो, किस प्रकार निर्वाह किया है, समझ से परे है| इस प्रकार देश का तथा कथित सम्पूर्ण लोकतान्त्रिक ढांचा पीड़ित व्यक्ति के अनुकूल नहीं है| जैसा कि एक बार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने कहा था कि प्रजातंत्र के चार स्तंभ होते हैं और भारत में उनमें से साढ़े तीन स्तम्भ क्षतिग्रस्त हो चुके हैं| अत: देश की विद्यमान व्यवस्था में आम आदमी के लिए न्याय पीड़ादायी और कठिन मार्ग है| जब तक पीड़ित को न्याय नहीं मिले न्याय हेतु किया गया सारा सार्वजानिक खर्च राष्ट्रीय अपव्यय है और पीड़ित के दृष्टिकोण से न्यायतंत्र एक भुलावा मात्र है| यदि आम आदमी के लिए न्याय सुनिश्चित करना हो तो देश के संविधान, विधायिका, कानून, न्याय एवं पुलिस सभी औपनिवेशिक प्रणालियों का पूर्ण शुद्धिकरण करना होगा तथा सस्ती लोकप्रियता व तुष्टिकरण मूलक नीतियों का परित्याग करना होगा|"

3------------"न्यायालयों में सामान्यतया समय पर निर्णय नहीं होते और मामले पुराने होने पर ऊपर से दबाव बढ़ने पर आनन फानन में ताबडतोड निर्णय देते हैं जिसमें निर्णय की गुणवता भेंट चढ जाती है| लगभग 15 वर्ष पूर्व बीकानेर में अपने कनिष्ठ पुलिस अधिकारी की पत्नि के साथ अशोभनीय व्यवहार के लिए हाल ही में अभियुक्त पुलिस अधिकारी पर भी जुर्माना ही लगाया गया है, उसे किसी प्रकार के कारावास की सजा नहीं दी गयी है|"

4-------------"दक्षिण अफ्रिका में न्यायालयों की कार्यवाही का सही और सच्चा रिकार्ड रखने के लिए 1960 से ही ओडियो रिकार्डिंग की जाती है और भारत में न्यायालय अपनी कार्यवाही का सही और सच्चा रिकार्ड रखने से परहेज करना चाहते हैं| यदि कोई पक्षकार किसी इलेक्ट्रोनिक साधन से न्यायिक कार्यवाही का रिकार्ड रखे तो बड़ी ही तत्परता से उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ बताकर हिरासत में भेज दिया जाता है और उस पर न्यायिक अवमान का मुकदमा अलग से ठोक दिया जाता है| "

==2== श्री मनी राम शर्मा जी एक अन्य लेख "भारतीय न्याय व्यवस्था पर श्वेत-पत्र" शीर्षक से लिखा है जिसमें वे लिखते हैं कि---

1-------------"श के पुलिस आयोग के अनुसार 60% गिरफ्तारियां अनावश्यक हो रही हैं| गिरफ्तार व्यक्ति की प्रतिष्ठा को तो अपुर्तनीय क्षति होती ही है, इसके साथ साथ उसका परिवार इस अवधि में उसके स्नेह, संरक्षा व सानिद्य से वंचित रहता है| गिरफ्तार व्यक्ति हिरासती यातनाएं सहने के अतिरिक्त अपने जीविकोपार्जन से वंचित रहता है जिसका परिणाम उसके आश्रितों व परिवार को अनावश्यक भुगतना पड़ता है| कमजोर और भ्रष्ट न्याय व्यवस्था के चलते देश में मात्र 2% मामलों में दोष सिद्धियाँ हो पाती हैं और बलात्कार जैसे संगीन अपराधों में भी यह 26% से अधिक नहीं है| एक लम्बी अवधि की उत्पीडनकारी कानूनी प्रक्रिया के बाद जब यह व्यक्ति हिरासत से मुक्त हो जाता है तो भी उसे इस अनुचित हिरासत के लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती जबकि सरकारी कर्मचारियों के दोषमुक्त होने पर उन्हें सम्पूर्ण अवधि का वेतन और परिलब्धियां भुगतान की जाती हैं|"

2-------------"वाई अड्डों की सुरक्षा में तैनात पुलिस आगंतुकों के साथ, जो उच्च वर्ग के होते हैं, बड़ी शालीनता से पेश आती है| वही मौक़ापरस्त पुलिस थानों में पहुंचते ही गाली-गलोज, अभद्र व्यवहार और मार पीट पर उतारू हो जाती है क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान और विश्वास है कि आम आदमी उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता चाहे वह किसी भी न्यायिक या गैर-न्यायिक अधिकारी के पास चला जाये, कानून और व्यवस्था उसका साथ देगी|"

3-------------"भारत में न्यायाधीश मामलों को निरस्त करने में बड़ा परिश्रम करते हैं| एक अनुमान के अनुसार भारत के न्यायालयों में दर्ज होने वाले मामलों में से 10% तो प्रारंभिक चरण में या तकनीकी आधार पर ही ख़ारिज कर कर दिये जाते हैं, कानूनी कार्यवाही लम्बी चलने के कारण 20% मामलों में पक्षकार अथवा गवाह मर जाते हैं| 20% मामलों में पक्षकार थकहार कर राजीनामा कर लेते हैं और 20% मामलों में गवाह बदल जाते हैं परिणामत: शेष 30 % मामले ही पूर्ण परीक्षण तक पहुँच पाते हैं वहीं वकील फीस पूरी ले लेते हैं| "

4-----------------"विधान के अनुच्छेद 227 में वकीलों की फीस तय करने के लिए उच्च न्यायालय अधिकृत हैं किन्तु देश में आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय को छोड़कर यह कार्य शायद ही किसी अन्य उच्च न्यायालय ने संपन्न किया हो|"

5-------------"भारत में एक महाबली सांसद पर अपहरण और बलात्कार के मुकदमें की सुनवाई में एक ओर सत्र न्यायालय में वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को अभी समन नहीं मिले हैं वहीं उच्च न्यायालय में उसी दिन याचिका दायर कर इस समन पर 2 घंटे के भीतर स्टे ले लिया गया| यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग और उसका उपहास करने का अच्छा उदाहरण है| हैरानी की बात है कि एक ओर माननीय “न्यायमूर्ति” इसे मूकदर्शक बने देख रहे हैं वहीं समाचार जगत में प्रकट होने वाले कुछ समाचारों पर स्वप्रेरणा से संज्ञान ले लेते हैं|"

6-------------"एक अध्यन में पाया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के 40% न्यायाधीश किसी न्यायाधीश या वकील के पुत्र रहे हैं| इसी अध्ययन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के 95% न्यायाधीश धनाढ्य या ऊपरी माध्यम वर्ग से रहे हैं अत: उनके मौलिक विचारों, संस्कारों और आचरण में सामजिक व आर्थिक न्याय की ठीक उसी प्रकार कल्पना नहीं की जा सकती जिस प्रकार एक बधिक से दया की अपेक्षा नहीं की जा सकती|"

7----------------"दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में एक दिन में एक न्यायालय के सामने सुनवाई की सूची सामान्यतया 40 तक सीमित रखी जाती है व उन सब में सुनवाई होती है वहीं भारत के उच्च न्यायालयों में तो एक दिन में 400 तक मामले सुनवाई हेतु अनावश्यक ही लगा दिए जाते हैं और सुनवाई हेतु शेष बचे मामले स्थगित कर दिए जाते हैं| यह भी एक कूटनीति है कि मामले न्यायालय के सामने लगाये जाते रहें ताकि जनता में भ्रम बना रहे कि उनकी सुनवाई हो रही है|"

8-----------------"उच्चतम और उच्च न्यायालयों में प्रमुखतया सरकारों के विरुद्ध मामले दर्ज होते हैं और यदि सरकार अपना पक्ष सही सही और सत्य रूप में प्रस्तुत करे तो मुकदमे आसानी से निपटाए जा सकते हैं किन्तु सरकरी पक्ष अक्सर सत्य से परे होते हैं फलत: मुकदमे लम्बे चलते हैं| यदि मामला सरकार के विरुद्ध निर्णित हो जावे तो भी उसकी अनुपालना नहीं की जाती क्योंकि सरकारी अधिकारियों को विश्वास होता है कि न्यायाधीश उनके प्रति उदार हैं अत: वे चाहे झूठ बोलें या अनुपालना न करें उनका कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है, एक नागरिक को ही गीली लकड़ी की भांति अन्याय की अग्नि में सुलगना है और आखिर चूर और व्ययभार से जेरबार होकर लगभग अन्याय के आगे घुटने टेकना है| "

9----------------"एक बार एक अपर सत्र न्यायालय का कैम्प कोर्ट स्थायी न्यायालय में तव्दील हो गया और बेंच के साथ बार की मीटिंग थी| इस मीटिंग में न्यायाधीश महोदय के मुंह से निकल गया कि यदि पूरी ऊर्जा से कार्य किया जाए तो ये सारे मुक़दमे मात्र 6 माह में निपट सकते हैं| वकीलों ने न्यायाधीश महोदय से अनुनय-विनय की कि वे ऐसा नहीं करें अन्यथा बड़े प्रयासों के बाद जो स्थायी न्यायालय खुला है वह बंद हो जाएगा|"

10--------------------"शांति के लिये सहअस्तित्व एवं न्यायपूर्ण दृष्टिकोण ही नहीं आचरण को जिंदा करना भी जरूरी है। न्यायपूर्ण आचरण न होने के कारण ही आज समाज में अन्याय को ही न्याय मान लिया गया है। आज वक्त आ गया है न्यायपूर्ण समाज की रचना के लिये केवल विचार ही व्यक्त ना करे बल्कि न्यायपूर्ण आचरण भी करे तभी दुनिया में न्यायपूर्ण समाज की रचना संभव हो पायेगी। न्यायपूर्ण समाज में ही शांति, सदभाव, मैत्री, सहअस्तित्व कायम हो पाता है। देश के प्रबुद्ध, जागरूक, जिम्मेदार और निष्ठावान नागरिकों से अपेक्षा है कि वे इस स्थिति पर मंथन कर देश में अच्छे कानून का राज पुनर्स्थापित करें|"
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Rahul Singh Marmat Malwa-16.09.2014
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मैं श्री चन्द्र प्रकश मीणा जी, श्री मनोज जोरवाल जी, श्री दुर्गेश मीणा जी, श्री दिनेश मीणा जी, श्री गजानंद मीणा सेहरा जी, श्री पंकज कुमार मीणा जी, श्री हरी गोपाल मीणा जी, श्री राजू मीणा जी , जैसे हजरों विद्वान साथियों के विचारों को आप समझना नहीं चाहते और आप जबरन सब पर निम्न बातें लागु करना चाहते हैं :

१-आप ने इस ग्रुप बनाया है इसलिए आप खुद को इस ग्रुप का सबसे ज्यादा मालिक मानते हैं। क्या आपको पता है जनसंघ बनाने वाले और भाजपा बनाने वाले बाहर बैठे हैं।
२-आप इस बात को नहीं समझते की ये आपका दफ्तर नहीं बल्कि समाज के नाम पर बनाया गया ग्रुप है, जिस पर आप लोगों को ऑर्डर देकर अपने मनमाने आदेश मनवाना चाहते हैं।
३-आप नहीं चाहते की इस ग्रुप के और संयुक्त जनजाती संस्थान के आलावा कोई और मीणा-मीना मुद्दे पर कुछ भी कार्यवाही करे।
4-आप संयुक्त जनजाती संस्थान को आर्थिक मदद नहीं देने वालों का मजाक उड़ाते हैं। आप गारंटी दे सकते हो की  संयुक्त जनजाती संस्थान में सब ईमानदार हैं और संयुक्त जनजाती संस्थान पक्का जीत दिल देगा। यदि हैं तो मैं इंदौर में मेरे डेढ़ करोड़ के मकान को बेचकर संयुक्त जनजाती संस्थान को दान करने को तैयार हूँ।
५-आप कोर्पस फंड के लिए और संयुक्त जनजाती संस्थान के लिए जबरन वसूली करवाने पर आमादा हैं। आपने कभी सोचा है की ये सब जबरन करवाने का इस ग्रुप के संथापक होने के आलावा आपके पास क्या नैतिक हक है। आप हिंदी भाषा तक तो जानते नहीं और आदिवासियों के मुखिया बनने के गलत फहमी पाले हुए हो।
६-समाज को आप इसी ग्रुप के कुछ चुनिंदा अपने चेलों में देखते हो। समाज के सैलाब को अपनी दौलत के बल पर न तो आप गुमराह कर सकते हो न आप अपने हिसाब से चला सकते हो।
७-आपने हरीश जी का ग्रुप पर प्रचार किया वो तो समाज सेवा है और दूसरे लोग राजनीतिक विचारधारा पर चर्चा भी करें तो अमित कांवट और आप उनके पोस्ट और कॉमेंट डिलीट कर देते हो।
अब आपका असली मकसद और आपकी तानाशाही सबको पता चल चुकी है।
आप चाहें तो मुझे आप ग्रुप से हटा दें मगर आप सच को दबा नहीं सकते। यही ये ही हाल रहे तो आपको खुद को दूसरा ग्रुप बनाना होगा ये आपकी प्रॉपर्टी नहीं है। इसमें हर सदस्य का हिस्सा और योगदान है।
श्री विक्रम जी आपकी ये पोस्ट और इस पर आपके और आपके असली नकली समर्थकों के कमेंट इस बात के सबूत हैं की आप समाज के लिए सच्चा काम करने वाले दूसरे लोगों के बढ़ते कद और इस ग्रुप पर इनके विचारों को मिलते समर्थन से बोखला गए हैं।
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गांधी जयंती के उपलक्षय पर गांधी का कुछ सच!!

आइए आज गाँधी की कुछ असलियत जानते हैँ, जो हमे
हमारी स्कूली किताबो मे पढ़ने को नही मिला -

1. गाँधी – वो शख्स, जो कहता था कि उसके मन मे
कभी बलात्कार करने की भावना नही आती. हाँ, ये सच
है कि वो बलात्कार नही कर सकते थे. लेकिन
इस चीज को वो साबित करने के लिए अपने साथ
किसी गरीब घर की लड़की को नंगा करके उसके साथ
नंगा सोते थे. क्या ये सही था?

2. आजादी के बाद अखंड भारत को तीन हिस्सो मे
तोड़ने की स्वीकृति इसी गाँधी ने दी थी. क्या ये
सही था?

3. सरदार पटेल की जगह नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने
के लिए भी गाँधी ने
ही कहा था. क्या ये सही निर्णय था?

4. ये वही गाँधी था जिसने सुभाष चंद्र बोस
का कांग्रेस के अध्यक्ष पद से
इस्तीफा दिलवाया था. क्या ये सही था?

5. जब नेहरू की बेटी इंदिरा एक मुस्लिम के साथ
शादी कर चुकी थी और नेहरू ने उसे अपने घर से, अपने
नाम से,अपनी हर चीज से बेदखल कर दिया था, तब
इसी गाँधी ने इंदिरा और फिरोज
को अपना SURNAME देकर गाँधी बनाया! क्या ये सही था ?

6. जब सरदार भगतसिंह को फाँसी होने
वाली थी तो गाँधी और नेहरू ही वो शख्स थे जो इस
फाँसी को रुकवा सकते थे. लेकिन वो गाँधी ही था जिसने
भगतसिंह की फाँसी रुकवाने की बजाए
उसकी फाँसी की तिथि बदलवाकर पहले करवा दी,
क्योकि अंग्रेज एक हफ्ते के अंदर
सभी क्रांतिकारियो को रिहा करने वाले थे और
भगतसिंह उस वक्त इतने लोकप्रिय हो गए थे
कि लोग उनकी एक आवाज पर अपनी जान दे देते.
लेकिन गाँधी को अपनी दबती हुई
छवि मंजूर नही थी.क्या ये सही निर्णय था?

7. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिनकी एक आवाज पर
लोगो ने अपने गहने जेवरात बेचकर 24 घंटे के अंदर
लाखो रुपए इकठ्ठे कर लिए थे सुभाष का साथ देने के
लिए, उस लोकप्रिय सुभाष को गाँधी और नेहरू ने
मिलकर भारत से बाहर भेजकर एक
गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया और
उनकी मृत्यु की झूठी खबर
फैला दी ताकि लोगो की सुभाष के लिए बढ़ती आवाज
को दबा सके, क्योकि वो नही चाहते थे कि आजादी के
समय गाँधी से ज्यादा कोई और लोकप्रिय नेता हो.
क्या ये सही फैसला था?
8. सेपरेट इलेक्ट्रोल का हक छीना : 

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