SJS&PBS

स्थापना : 18 अगस्त, 2014


: मकसद :

हमारा मकसद साफ! सभी के साथ इंसाफ!!


: अवधारणा :


सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी!

Social Justice, Secularism And Pay Back to Society-SJS&PBS


: सवाल और जवाब :


1-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति में मूल सामाजिक व्यवधान : मनुवादी आतंकवाद!

2-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति का संवैधानिक समाधान : समान प्रतिनिधित्व।


अर्थात्

समान प्रतिनिधित्व की युक्ति! मनुवादी आतंकवाद से मुक्ति!!


6.11.14

मीणा मीना (Meena Mina) विवाद और माधुरी पाटिल केस की अन्यायपूर्ण सिफारिशों से कैसे निपटें?

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' प्रमुख-हक रक्षक दल (अनार्यों के हक की आवाज)

राजस्थान सरकार ने 30 सितमबर, 2014 के अपने लिखित आदेश को यथावत रखते हुए कथित रूप से मीडिया को केवल इतना सा नया कहा है या संकेत दिया है कि-मीणा (Meena) को मीना (Mina) जाति के नाम से जाति प्रमाण पत्र बनाने पर सरकार ने कोई रोक नहीं लगायी है! यह साफ़ तौर पर हमें मूर्ख बनाने का मनुवादी तरीका है! अभी भी हमारे सामने निम्न जटिल और भयावह प्रश्न ज्यों के त्यों खड़े हुए हैं।
जिन्हें दो भागों में विभाजित करके समझना होगा -

पहला : जो मनुवादियों की साजिश का नतीजा है :-
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  • 1-जिन मीणाओं के मीणा (Meena) जाति के नाम से पहले से जाति प्रमाण पत्र बने हुए हैं और जो राजस्थान सरकार के अधीन सेवारत हैं, सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि उनके जनजाति होने पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं किया जायेगा? क्योंकि ऐसे मामलों पर समता आन्दोलन समिति ने लिखित में सरकार के समक्ष सवाल उठाना शरू कर दिया है? और सरकार ऎसी शिकायतों पर वाकायदा विधिक कार्यवाही करावा रही है। 
  • 2-जिन मीणाओं के मीणा (Meena) जनजाति के नाम से पहले से जाति प्रमाण पत्र बने हुए हैं और जो केंद्र सरकार या किसी अन्य राज्य या किसी अर्द्ध शासकीय निकाय के अधीन सेवारत हैं, राजस्थान सरकार का उक्त कथित आदेश/बयान ऐसे लोगों को कोई वैधानिक संरक्षण नहीं दे सकता! क्योंकि यह राजस्थान सरकार की संवैधानिक अधिकारिता से बाहर का मामला है! ऐसे मामलों पर भी समता आन्दोलन समिति ने सवाल उठाना शरू कर दिया है?
  • 3-मुझे (दिनाक : 05.10.14) को मोबाईल पर अपने ही एक भाई ने बताया कि वह एक अर्द्ध शासकीय निकाय में कार्यरत है। उसके मीणा (Meena) जनजाति के जाति प्रमाण पत्र के खिलाफ लिखित में शिकायत की जा चुकी है! और उसे फर्जी जनजाति बताकर नौकरी से निकालने तथा उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की मांग की गयी है! इस कारण हमारा ये भाई अत्यधिक तनाव के दौर से गुजर रहा है! ऐसे में क्या सरकार का कथित बयान कोई मदद कर सकेगा?
  • 4-यदि समता आन्दोलन समिति राज्य सरकार के कथित आदेशों/बयानों को न्यायिक अवमानना बतलाकर हाई कोर्ट में चुनौती देती है तो (और मेरा स्पष्ट मत है कि चुनौती देगी ही) सरकार के ऐसे कथित आदेश/बयान  कहीं नहीं टिकेंगे, क्योंकि सरकार के ये कथित आदेश/बयान असंगत, अनौचित्यपूर्ण, अ-युक्तियुक और कानून की दृष्टी में विधि विरुद्ध हैं! जिनके पीछे कोई संवैधानिक अधिकारिता राज्य सरकार के पास नहीं है! 
  • 5-एक मामले में सुप्रीम कोर्ट का साफ़ कहना है कि-Article 366(25) defines Scheduled Tribes, as meaning such tribes or tribal communities or parts of or groups within such tribes or tribal communities as are declared under Article 342 to be Scheduled Tribes for the purposes of the Constitution. Article 342 gives power to the President to specify the tribe with respect to any State or Union Territory, after consultation with the Governor where it is a State, by public notification, specify the tribes or tribal communities or parts of or groups within tribes or tribal communities which shall, for the purposes of the Constitution, be deemed to be Scheduled Tribes in relation to that State or Union Territory, as the case may be.

दूसरा जो मनुवादियों की न्यायिक साजिश को खुद हमारे द्वारा ही गले की हड्डी बनाने का नतीजा है :-
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उक्त सब के साथ-साथ माधुरी पाटिल केस की अन्यायपूर्ण, उत्पीड़क और मनमानी सिफारिशें, जो कि समस्त आरक्षित वर्गों को जीवन भर और कदम कदम पर अपमानित करने वाली हैं। जिनको लागू करवाने की कार्यवाही हमारे ही कुछ विद्वान् भाइयों द्वारा की गयी है! ये सिफारिशें यदि ज्यों की त्यों लागू कर दी गयी तो हमें अनेक प्रकार की ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है, जिनकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती है! माधुरी पाटिल केस की अन्यायपूर्ण सिफारिशें हमें निम्न संभावित मुसीबतों का सामना करने को मजबूर कर सकती हैं :-

  • (1) यदि वर्तमान मीणाओं का मूल आदिवासी मीणा संस्कृति से मेल नहीं तो जनजाति प्रमाण पत्र नहीं बनाया जाये!
  • (2) बेशक किसी आवेदक कि जाति का नाम मीना (Mina) है, मगर यदि पुराने रिकोर्ड में उसके समर्थन में मीना आदिवासी संस्कृति, प्रथा और परम्परा सिद्ध नहीं होती तो ऐसे आवेदक को गैर आदिवासी ठहराने का जांच कमिटी को कानूनी हक होगा!
  • (3) जाँच कमिटी उनके खिलाफ भी बिठायी जा सकती है, जिनके पूर्व से ही मीना (Mina) नाम से जनजाति के प्रमाण पत्र बने हुए हैं! और उनके बारे में जाँच की जा सकती है कि उनकी मीना आदिवासी संस्कृति, प्रथा और परम्परा सिद्ध होती है या नहीं!
  • (4) जांच कमिटियों में जमकर मनमानी भ्रष्टाचार होगा, जिसे रोकना असंभव होगा! 
  • (5) जाँच कमिटी गलत जांच करके, गलत निष्कर्ष निकाल कर, असंगत, मनमानी और अवैधानिक रिपोर्ट दे सकेगी! जिसे रोकने के लिए मनुवादी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाने का आलावा कोई वैधानिक विकल्प इस निर्णय में नहीं! 
  • (6) जनजाति का प्रमाण पत्र उच्च स्तर पर बनेगा! जिसका सीधा अर्थ है कि उच्च स्तर की मुसीबत! एक तहसीलदार के दफ्तर में प्रवेश करना और उप कलेक्टर/कलेक्टर के दफ्तर में प्रवेश करना आम जनजाति के लोगों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत का सबब होगा! 
  • (7) यदि एक लाइन में कहा जाये तो माधुरी पाटिल केस की एक पक्षीय सिफारिशें लागू होते ही सभी आरक्षित श्रेणी के लोग (ST/SC/OBC/SBC/MBC) सरकार की नजर में अविश्वसनीय होंगे, जिन्हें खुद यह सिद्ध करना होगा कि उन पर विश्वास किया जाये वे वास्तव में आरक्षित वर्ग से ही हैं! जो न्याय शास्त्र के मौलिक सिद्धांत के खिलाफ है-जिसमें साफ़ कहा गया है कि किसी व्यक्ति को ये नहीं कहा जा सकता कि वो खुद को निर्दोष सिद्ध करे! दोषी सिद्ध करने का भार आरोप लगाने वाले पर होता है! जबकि माधुरी पाटिल केस की एक पक्षीय सिफारिशों ने तो पूरी की पूरी कॉम को ही आरोपियों की भांति कटघरे  खड़ा कर दिया है।  
  • (8) दूसरे शब्दों में माधुरी पाटिल केस की एक पक्षीय सिफारिशें लागू होते ही आरक्षित वर्गों कि पोजीशन जरायम पेशा एक्ट में शामिल जातियों की जैसी हो सकती है! जिन्हें पुलिस और कानून के सामने नाचना पड़ता था! अब आरक्षित वर्गों को जाँच कमेटी के सामने नाचना और गिडगिडाना पड़ सकता है!
  • नोट : इसके आलावा भी बहुत सारे अन्य दुष्परिणाम आमने आ सकते हैं.

मीणा मीना (Meena Mina) विवाद के समाधान : जो हक रक्षक दल द्वारा सुझाये जा रहे हैं और जिन पर हक रक्षक दल के लाखों समर्थक और सक्रिय रक्षक दिन रात काम कर रहे हैं:-
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1-मीणा मीना : राजस्थान सरकार को इस बात के लिए सहमत या मजबूर किया जाये कि वह केंद्र सरकार को तुरंत निम्न सिफारिश भेजे :
राजस्थान की जनजातियों की सूची में क्रम 9 पर दर्ज मीना/Mina जनजाति  के साथ/स्थान पर मीणा जाती के सभी पर्यायवाची नाम मीणा, मीना, मैना, मैणा, मैंणा, मैंना, मेना, मेणा लिख कर मूल अधिसूचना को संशोधित कर जारी की जाये।
2-मीणा मीना विवाद क्या है, इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं और इसका समाधान क्या है? इन सवालों के सही जवाब आम मीणाओं को ज्ञात नहीं हैं। इस बारे में गलत, अधूरी और निराधार जानकारी देने से लोग भ्रमित होते हैं।  अत: ऐसी जानकारी देने के बजाय कुछ न बताया जाना बेहतर हैं।

3-पैनल बनाया जावे : समाज के प्रबुद्ध गैर राजनैतिक लोगों को अपने-अपने अहंकार या निहित स्वार्थों को त्यागकर अविलम्ब आपस में बैठकर मीणा मीना मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए और वर्तमान में ईमानदारी से सक्रिय सभी लोगों में से एक मजबूत पैनल बनाया जावे जो मीणा मीना मुद्दे पर संघर्ष की नीति का निर्धारण करे। हक रक्षक दल इसमें हर तरह से सहयोग करने को तत्पर है। हक रक्षक दल ऐसा पैनल बनाने पर काम करना शुरू कर चुका है। 

4-शांतिपूर्ण और अनुशासित जन आंदोलन : उक्त पैनल, उक्त बिंदु एक में प्रस्तावित संशोधित अधिसूचना को जारी करवाने के लिए राजस्थान सरकार को कैसे सहमत/मजबूर करें, इसके लिए रणनीति तय करे। हक रक्षक दल की राय में इसका  एक मात्र रास्ता है :
---------------------------"शांतिपूर्ण और अनुशासित जन आंदोलन।"------------------

5-व्यक्तिगत आक्षेप लगाने से बचना होगा : हम मीणाओं को सोशल मीडिया पर और सार्वजनिक मंचों पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाने से बचना होगा और आपस में सहयोग बढाकर एकता कायम करनी होगी। जो नासमझ या अपरिपक्व या भ्रमित मीणा इसमें बाधक हों, उनको समझकर कैसे साथ लिया जाये, इस बारे में भी मिलकर तुरंत सकारात्मक निर्णय लेना जरूरी है। 
  
6-गैर-मीणा आदिवासी जनजातियों से संवाद कायम किया जावे : राजस्थान की सभी गैर-मीणा आदिवासी जनजातियों को मनुवादियों की साजिशों के बारे में को अविलम्ब समझाया जाना बहुत जरूरी है। उनके साथ किसी भी तरीके से प्रेमपूर्ण और सम्मानजनक संवाद कायम किया जावे। क्योंकि संवादहीनता हमेशा दूरियां बढ़ाती है।
  
7-दलितों का सहयोग : हम मीणाओं को दलितों के प्रति सम्मानजनक, सहयोगात्मक और बराबरी के रिश्ते कायम करने ही होंगे। जिससे एक दूसरे की मुसीबतों में मिलकर संघर्ष किया जा सके। हक रक्षक दल इस मुहिम को पहले से ही आगे बढ़ा चुका है।

8-ओ बी सी का सहयोग : समस्त आरक्षित वर्गों को एकजुट हो करके ताकत दिखने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग को भी साथ में लिया जाना समय की मांग है। हक रक्षक दल इस मुहिम को पहले से ही आगे बढ़ा चुका है।
         
माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों  के बारे में विचार :
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मेरी व्यक्तिगत रूप से स्पष्ट राय है (हक रक्षक दल के सभी जागरूक रक्षक साथ हैं) कि-

1-आरक्षित वर्गों की और से माधुरी पाटिल केस की अन्यायपूर्ण सिफारिशों को निरस्त करवाने के लिए संवैधानिक कार्यवाही होनी चाहिए! यहाँ यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि पूर्व में दर्जनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अपने खुद के ही निर्णयों को ये कहते हुई पलटा है कि पिछला निर्णय उचित नहीं था या पिछ्ला निर्णय संकीर्ण न्यायिक व्याख्या पर आधारित था। इसका एक ऐतिहासिक उदाहरण है : मेनका गांधी बनाम भारत संघ, ए आई आर, 1978. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही कई पिछले निर्णयों को पलटा था।  

2-यह कोनसा न्याय है कि सुप्रीम कोर्ट देश की पिच्यासी फीसदी आरक्षित आबादी की अस्मिता और सत्यनिष्ठा की जांच/परीक्षण करने का आदेश उन कुछ अपराधियों को रोकने के लिए दे रहा है जो असत्य जानकारी देकर आरक्षित वर्गों के जाति प्रमाण पत्र बनवाने वाले, यह नजरिया आरक्षित वर्गों के प्रति अन्यायपूर्ण और मनमानी मनुवादी प्रक्रिया है। जो अविलम्ब रोकी जावे।

3-यदि न्यायपालिका आरक्षित वर्गों के संरक्षण हेतु वास्तव में न्यायपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय करने में सक्षम है तो और गलत जाति प्रमाण पत्र जारी बनवाने वाले अपराधियों और जाति प्रमाण पत्र बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ वाजिब और तथ्यपूर्ण शिकायत मिलने के बाद (उनको कड़ी सजा दिलवाना चाहती है तो) शिकायत की निष्पक्ष जाँच की जाये और दोषियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक कार्यवाही करके कम से कम दस साल के कठोर कारावास की सजा का प्रावधान किया जाए! अपने आप ही गलत जाति प्रमाण पत्र बनना बंद हो जाएंगे। 

4-यह तो कोई न्याय नहीं हुआ कि कुछ मनुवादी या अपराधी लोग या अनारक्षित या दूसरे वर्गों की जातियां अपने आप को आरक्षित घोषित करके और अफसरों से मिलकर आरक्षित वर्गों के जाति प्रमाण पत्र जारी करावा सकती या करवा रही हैं, इसलिए ऐसे अपराधियों को दण्डित करने करने के बजाय समस्त आरक्षित वर्गों को संदेह ही नजर से देखा जाये और सभी का अपराधियों की भांति परीक्षण किया जाये। जिसमें उनकी मूल संस्कृति, प्रथा, परम्परा, रिवाज और जीवन शैली का परीक्षण भी शामिल किया जाये। ऐसा तो आतंकवादियों/अपराधियों के साथ भी नहीं किया जाता है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के विरुद्ध है।  

5-जबकि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण को जानने वाले जानते हैं की मनुष्य का समाजीकरण जिन हालातों में होता है, उसका उसके जीवन और आचरण पर गहरा प्रभाव होता है! जिससे मूल संस्कृति, प्रथा, परम्परा, रिवाज और जीवन शैली आदि सभी में बदलाव आते हैं।

आशा है कि सभी प्रबुद्धजन, इस अत्यंत गम्भीर और चिंतनीय विषय पर गंभीरता से चिंतन कर के समाज को मुसीबतों से बाहर निकलने के लिए अपने रचनात्मक विचार और सुझाव प्रस्तुत करेंगे।
------------------------डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' प्रमुख-हक रक्षक दल (अनार्यों के हक की आवाज)

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