SJS&PBS

स्थापना : 18 अगस्त, 2014


: मकसद :

हमारा मकसद साफ! सभी के साथ इंसाफ!!


: अवधारणा :


सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी!

Social Justice, Secularism And Pay Back to Society-SJS&PBS


: सवाल और जवाब :


1-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति में मूल सामाजिक व्यवधान : मनुवादी आतंकवाद!

2-बहुसंख्यक देशवासियों की प्रगति का संवैधानिक समाधान : समान प्रतिनिधित्व।


अर्थात्

समान प्रतिनिधित्व की युक्ति! मनुवादी आतंकवाद से मुक्ति!!


26.11.19

संविधान दिवस: आखिर ऐसे चुपचाप कब तक सिसकते रहोगे? (After all, how long will you keep sobbing quietly?)

संविधान दिवस: आखिर ऐसे चुपचाप कब तक सिसकते रहोगे?
(After all, how long will you keep sobbing quietly?)

सुबह जागते ही वाट्सएप, टेलीग्राम तथा फेसबुक पर संविधान दिवस मनाने की नोटंकी करने वाले अंधभक्तों के संदेशों की लाइन लग चुकी है। सबसे दु:खद पहलु संविधान दिवस पर संविधान को समझने या संविधान की वर्तमान हकीकत को समझने के बजाय, संविधान को पढे बिना ही संविधान की महिमा का बखाने करने या कथित संविधान निर्माता के गुणगान में अपना और दूसरों का समय बर्बाद कर रहे हैं।

जबकि वर्तमान दौर में संविधान से जुड़े अनेकों महत्वपूर्ण सवाल चीख रहे हैं:-


  • 1. नरेन्द्र मोदी सरकार ने संविधान दिवस मनाने की शुरूआत क्यों की?
  • 2. नरेन्द्र मोदी सरकार संविधान का कितना पालन और सम्मान करती है?
  • 3. 1950 से वर्तमान तक संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट ने वंचित समुदायों को इंसाफ दिलाने हेतु संविधान की क्या-क्या और कैसी-कैसी व्याख्याएं की हैं?
  • 4. नियम, कानून और लोकतंत्र के स्थापित मानदंडों की धज्जियां उड़ाने वालों प्रशासन और सरकार को संविधान नियंत्रित करने में क्यों असफल रहा है?
  • 5. डॉ. अम्बेड़कर जिन्होंने खुद को संविधान निर्माता नहीं, बल्कि भाड़े का टट्टे माना, और जो खुद संविधान को जलाना चाहते थे? उनके नाम को संविधान दिवस से जोड़ने का औचित्य?
  • 6. वर्तमान हालातों में संविधान की सर्वोच्चता को कैसे कायम रखा जा सकता है?
  • 7. संविधान के प्रावधानों के विपरीत न्यायपालिका पर कुछेक परिवारों के जजों का स्थायी कब्जा हो चुका है, ऐसे में न्यायपालिका को संविधान संरक्षक माना जाने का कोई औचित्य शेष रह गया है?
  • 8. संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति और राज्यपाल केन्द्र सरकारों के इशारों पर संविधान और लोकतंत्र विरोधी दस्तावेजों पर आंख बंद करके दस्तखत करने की मशीन बन चुके हैं! इस स्थिति पर संविधान के मौन को कैसे तोड़ा जाये?
  • 9. ईवीएम की संदिग्धता और चुनावी धांधली और प्रतिपक्ष के आश्चर्यजनक मौन के उपरांत सत्ता पर काबिज कथित जनप्रतिनिधि राष्ट्रीय संस्थानों को पंगु बनाने या सरकारी संस्थानों को बेरोकटोक पूंजीपतियों को बेचने में शामिल रहे और मीडिया सहित सम्पूर्ण संवैधानिक तथा लोकतांत्रित व्यवस्था मौन साध ले। फिर भी हम संविधान का गुणगान करते रहें। यह कितना उचित और भयावह है?
  • 10. संविधान के मुताबिक सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित सांसद-विधायक और आज एवं अजजा के लिये आरक्षित पदों पर चयनित प्रशासनिक अफसर संविधान की इज्जत का चीरहरण होते हुए देखकर भी सुविधाभोगी बन कर मौन साधे रहें या खुद भी इस दुष्कृत्य में शामिल हो जायें और आम जनता चुपचाप देखने को विवश रहे। इस स्थिति का संवैधानिक समाधान क्या हो?
  • 11. सबसे बड़ी बात जो संविधान स्वयं ही स्वयं की रक्षा नहीं कर सकता हो, संविधान दिवस के दिन उस संविधान का गुणगान करके हम क्या हासिल करना चाहते हैं?

यहां कुछ प्रतिनिधि और ज्वलंत सवाल ही लिखे गये हैं, यद्यपि सवालों की लिस्ट बहुत लम्बी है! फिर भी मेरा मानना है कि हो सकता है, कुछ अधिक अनुभवी, ज्ञानी और विद्वानों के अंतर्मन में इनसे भी अधिक चुभते हुए सवाल कौंध तथा उबल रहे हों, जबकि दूसरी ओर मेरे उक्त सवालों से कुछ विद्वानों की मान्यताएं भरभराकर टूटकर बिखरने को बेताब हों?

वजह और हालात जो भी हों, लेकिन यदि हम इंसाफ की आकांक्षा करते हैं, संविधान को लागू करने या करवाने की जरूरत को रेखांकित करते हैं और साथ ही लोकतंत्र को बचाना जरूरी समझते हैं तो सवाल तो उठाने ही होंगे! अन्यथा अंत में फिर से यही लिखूंगा कि आखिर ऐसे चुपचाप कब तक सिसकते रहोगे? (After all, how long will you keep sobbing quietly?) बोलोगो नहीं तो कोई सुनेगा कैसे? लिखोगे नहीं तो कोई पढेगा कैसे? लड़ोगे नहीं तो जीतोगे कैसे? और अंतिम बात अपने-अपने हिस्से का सच सबको खुद ही बोलना तथा लिखना ही होगा? क्योंकि देश, संविधान और आवाम को को बचाने हेतु कोई कृष्ण सुदर्शन लेकर नहीं आने वाला है?

आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल सामाजिक संगठन
9875066111, 8561955619 (10 से 22 बजे)
25 नवम्बर, 2019, जयपुर, राजस्थान।

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